विद्यार्थियों को तिब्बती ऑपेरा सिखाते हुए
कई सौ वर्षों के विकास के चलते तिब्बती ऑपेरा में कई पारंपरिक नाटक पैदा हुए। इनके प्रदर्शन का समय अलग-अलग होता है, जैसे कई घंटों का या कई दिनों का नाटक हो सकता है। आज तक आठ सुप्रसिद्ध तिब्बती ऑपेरा आम जनता के बीच लोकप्रिय हैं। अतीत में लोग तिब्बती ऑपेरा के अभिनय से जीवन की भलाई, शांति, सुरक्षा और जनसंख्या की समृद्धि की प्रार्थना करते थे।
तिब्बती ऑपेरा नागरिकों की प्रार्थना केलिए अभिनय किया जाता है। इसके आलावा, विरासत के रुप में प्राप्त करते हुए इसका विकास करने के लिए कुछ पेशेवर तिब्बती ऑपेरा समूह भी प्रयासरत हैं। दक्षिण ल्हासा में छी च्यालिन नामक लोक कला समूह है, जो वर्ष 1962 में स्थानीय नागरिकों ने गठित किया। इस समूह को गठित हुए लगभग 50 वर्ष हो चुके हैं। समूह के सदस्य स्वाभाविक रूप से एक साथ इकट्ठे होकर तिब्बत के भिन्न उत्सवों में भिन्न शहर और काउंटी जाकर तिब्बती ऑपेरा का अभिनय करते हैं। वर्ष 1999 में कला समूह ने राष्ट्र स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लिया, तथा ऑपेरा जगत में सर्वोच्च पुरस्कार-- पेओनी पुरस्कार हासिल किया। लेकिन पूंजी के अभाव की वजह से कला समूह को बंद करने पर भी विचार हुआ, पर तत्काल में कला समूह के अध्यक्ष के रुप में ईसी ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने कहा:
" मेरी दृष्टि से तिब्बती ऑपेरा के लिए मैं पेशेवर व्यक्ति नहीं हूं। इस प्रकार वाली तिब्बती जातीय संस्कृति पर हमारा राष्ट्र बहुत महत्व देता है, तो हम खुद तिब्बती लोग इसपर क्यों नहीं ध्यान देते, उसका संरक्षण और विकास क्यों नहीं करते?"
पुराने जमाने में तिब्बती ऑपेरा के अभिनेता का जीवन मुश्किल होता है, क्योंकि उन्हें हर जगह जाकर प्रदर्शन करके अपने घर का चूल्हा जलाना पड़ता है। लेकिन आज स्थानीय सरकार लोक तिब्बती ऑपेरा समूह को अधिक महत्व देती है और उन्हें खास सहायता के लिए राशि मुहैया कराती है। युवाओं को सरकारी नौकरी उपलब्ध कराती है। चीन सरकार परंपरागत गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण पर ख्याल रखती है। वर्ष 2005 में गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासतों के समरक्षण के लिए वित्तीय समर्थन मिलने लगा, तो कई तिब्बत में लोक तिब्बती ऑपेरा समूहों का धीरे-धीरे पुनर्गठन हुआ। अब तक गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासतों की सूची में शामिल लौकिक तिब्बती ऑपेरा समूहों की संख्या 119 हो चुकी है।
"परी बहनें" कहलाने वाला तिब्बती ऑपेरा आम नागरिकों और पेशेवर समूहों के संयुक्त संरक्षण के चलते अपनी चमकदार रोशनी दिखाता है और उनकी विशेष रोशनी हर जगह फैलेगी। तिब्बती जातीय कला अनुसंधान संस्थान के उप अनुसंधानकर्ता सांग्डोंग ने कहा:
"भविष्य को लेकर, मेरे विचार से लोक तिब्बती ऑपेरा अपने मार्ग पर चलेगा और पारंपरिक तिब्बती ऑपेरा भी कायम रहेगा, तथा पेशेवर तिब्बती ऑपेरा भी अपने तरीके से चलेगा। सभी लगातार नए नाटकों की रचना कर वर्तमान स्थिति का प्रदर्शन करते हैं। चाहे लौकिक तिब्बती ऑपेरा हो, या पेशेवर तिब्बती ऑपेरा, वे दोनों अपने आप में खास नाटक के विषय हैं, जो एक उचित और स्वस्थ विकास का मॉडल है। इसलिए भविष्य में उसके बेहतर विकास की प्रबल संभावना है।"
(रूपा)