अखिल- दोस्तों, चीन की राजधानी बीजिंग में एक अनोखी प्रतियोगिता आयोजित हुई.'स्पेस आउट' के नाम से आयोजित इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वालों को शहर के सबसे भीड़भाड़ वाले इलाक़े के बीच कई घंटों तक बुत बन कर बैठे रहने की चुनौती दी गई थी.
शिन्हुआ न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक़, शहर के व्यावसायिक इलाक़े में एक बड़े शॉपिंग स्ट्रीट के पास इस 'इंटरनेशनल स्पेस आउट'प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए 80 लोग इकट्ठा हुए. प्रतिभागियों के सामने चुनौती थी कि वो अपने आस-पास के शोर शराबे के बीच बिल्कुल स्थिर और ध्यान की मुद्रा में दो घंटे तक बैठे रहें.
शिन्हुआ के अनुसार, इसलिए स्मार्टफ़ोन और संगीत को प्रतिबंधित कर दिया गया था. प्रतिभागियों को केवल बाहरी तौर पर स्थिर नहीं रहना था बल्कि उन्हें अपनी धड़कनों पर नियंत्रण रखना था, जिसकी जांच वहां मौजूद कार्यकर्ताओं का समूह कर रहा था.
आपको बता दें कि इस तरह की प्रतियोगिता दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में साल 2014 में आयोजित की गई थी और उसके बाद यह सलाना आयोजन बन गया.
आसमान पर नजर गड़ाए रखने वाली इस प्रतियोगिता में बाज़ी मारी विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर निकले शिन शियू ने. उन्होंने शिन्हुआ को बताया कि उन्हें बिना भागदौड़ वाली ज़िंदगी जीना पसंद है. हालांकि अन्य प्रतिभागियों ने इसे दौड़भाग वाली ज़िंदगी से फ़ुर्सत लेने के मौके के रूप में लिया.
एक महिला ने बीजिंग टीवी को बताया, "दो घंटे तक खुद को बाहरी दुनिया से अलग करना और एक जगह बैठकर सोचना- मैं समझती हूं कि वाकई यह बहुत अहम बात है."
आयोजनकर्ताओं में से एक वांग शेनबो ने समाचार चैनल को बताया कि आसमान में टकटकी बांधे देखना, आज के समय में 'अनोखा एहसास'जैसा है. उन्होंने कहा, "लोगों की रोज़मर्रे की ज़िंदगी का ढर्रा इतना तेज़ है कि वो बहुत कड़ी मेहनत करते हैं." उनके मुताबिक़, "इसलिए मैं समझता हूं कि आधुनिक इंसान के नज़रिए से, 'स्पेस आउट'का मौका तलाशना बहुत आसान नहीं है."
लिली- चलिए दोस्तों, मैं एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रही हूं जिससे हजारों हाथी मिलने आते हैं।
दोस्तों, दुनिया के लोग भले ही जानवर और इंसान में अंतर समझते हैं। लेकिन एक महिला ऐसी भी है जिसने इस अंतर को कभी नही माना और वह जानवरों को भी उतना ही स्नेह करती है।
आपको बता दें इस महिला का नाम डाफ्ने शेलडरिक है, जिन्होंने हाथियों के लिए ओर्फनेज भी खोला है जहां हाथियों की पूरी तरीके से देखभाल की जाती है। इतना ही नहीं, डाफ्ने शेलडरिक ने अपनी पूरी जिन्दगी हाथियों को पालने में लगा दी और दुनिया में आज इंसानियत के नाम पर एक नई मिसाल कायम की है। शेलडरिक ने बताया कि हाथी के नवजात बच्चे की अगर सही तरीके से देखभाल नही की जाये तो वह तीन दिन के भीतर मर भी सकता है। इसलिए वह हाथी के नवजात बच्चे की देखभाल ठीक उसी तरह करती हैं जैसे कि कोई इंसान अपने छोटे बच्चे का खयाल रखता है।
अखिल- अरे वाह.. बहुत दिलचस्प बात बताई आपने लिली जी। चलिए दोस्तों, मैं आपको एक ऐसी परंपरा के बारे में बताता हूं जिसे सुनकर आप जरूर हैरान हो जाएंगे।
भारत देश के हर क्षेत्र का रहन-सहन, भाषा जिस प्रकार अलग-अलग है उसी तरह हर जगह की परंपराये और रीति-रिवाज भी कुछ अलग हैं।
आज हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश के किन्नौर क्षेत्र की यहां एक युवती का विवाह परिवार के सभी सगे भाईयों से एक साथ किया जाता है। यहां रहने वाले लोग इस प्रथा को पांडवों के अज्ञातवास से जोड़ते हैं। यहां आज भी बहु-पति विवाह किए जाते हैं।
विवाह योग्य युवती का विवाह एक ही परिवार के सगे भाईयों से एक साथ किया जाता है। सभी एक ही परिवार के साथ एक ही घर में साथ रहते हैं। अगर किसी महिला के कई पतियों में से किसी एक की मौत भी हो जाए तो भी महिला को दुख नहीं मनाने दिया जाता है।
विवाह के बाद की यह परंपरा एक टोपी पर निर्भर करती है। किसी परिवार में पांच भाई है। सभी का विवाह एक ही महिला से हुआ है। अगर कोई भाई अपनी पत्नी के साथ है तो वह कमरे के दरवाजे के बाहर अपनी टोपी रख देता है। भाईयों में मान मर्यादा इतनी रहती है कि जब तक टोपी दरवाजे पर रखी है कोई दूसरा भाई उस स्थान पर नहीं जा सकता। यहां के परिवारों में महिलायें ही घर की मुखिया होती हैं। अत्याधिक ठंड और बर्फबारी के मौसम में यह लोग घर में अपना समय व्यतीत करते हैं।
लिली- हम्म्म... वाकई में यह परंपरा आश्चर्यजनक है। दोस्तों, आपको एक ख़बर बताती हूं कि कैसे 22 साल की गुलामी के बाद मां से मिला बेटा
दोस्तों, अपनों से बिछडऩे के गम क्या होता है यह तो वही जान सकता है जिसने यह महसूस किया हो। म्यांमार का यह शख्स पूरे 22 साल तक गुलामी की जिंदगी बिताने के बाद अपनी मां से मिला। दरअसल, मिंट नैंग नाम का शख्स 1993 में म्यांमार से निकलकर थाइलैंड में काम करने जा रहा था। लेकिन उसे इंडोनेशिया में पकड़कर गुलाम बना लिया गया। उसे समुद्री जहाज में बंधक बनाकर रखा गया था। इस दौरान उसे सालों तक क्रूर यातनाएं दी जा रही थी, उसे बांध के रखा जाता था और जमकर काम भी करवाया जाता। इस दौरान वह जब भी वह मां से मिलने की बात करता, उसे गुलाम बनाने वाले खूब पीटते। कई बार उसकी पिटाई ऐसी होती थी कि उसे लगता था वह मर ही जाएगा। गुलामी का कोई भी दिन ऐसा नही गया जिस दिन उसने अपनी मां से मिलने की दुआ न की हो। उसने कहा कि धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा जैसे कि उसके दिमाग में मां की छवि कुछ धुंधली होने लगी है। वह जहाज पर कई बार कैप्टन का पैर पकड़कर घर जाने की भीख मांगा करता था लेकिन उसे जान से मार देने की धमकी मिलती थी। इसके बाद वह अपनी जिंदगी के बारे में सोचकर बेचैन हो जाता था। लेकिन सालों गुलाम बने रहने के बाद एक दिन वह अचानक वहां से भाग निकला हालांकि भागने के बाद उसे काफी दिन उसे जंगल में बिताने पड़े। हालांकि वास्तविकता यह है कि इंडोनेशिया और आसपास के इलाकों में हर साल मिंट की तरह और भी सैकड़ों लोगों को पकड़कर गुलाम बना दिया जाता है। खराब माहौल में उनसे काम कराया जाता है और क्रूर यातनाएं दी जाती हैं। जिसकी वजह से मिंट का दायां हाथ खराब हो गया है। लेकिन परिवार से मिलने के बाद अब उसकी खुशी का कोई ठिकाना नही है।
लिली- चलिओ दोस्तों, अभी हम सुनते हैं यह हिन्दी गाना... उसके बाद आपको ले चलेंगे हमारे मनोरंजन के दूसरे सेगमेंट की तरफ...
अखिल- दोस्तों, आपका एक बार फिर स्वागत है हमारे इस मजेदार कार्यक्रम संडे की मस्ती में... मैं हूं आपका दोस्त एन होस्ट अखिल।