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संडे की मस्ती 2015-06-28
2015-07-03 16:35:55 cri

अखिल- दोस्तों, एक भिखारी किसी स्टेशन पर पेँसिलोँ से भरा कटोरा लेकर बैठा हुआ था। एक युवा व्यवसायी उधर से गुजरा और उसनेँ कटोरे मेँ 50 रूपये डाल दिया, लेकिन उसनेँ कोई पेँसिल नहीँ ली। उसके बाद वह ट्रेन मेँ बैठ गया। डिब्बे का दरवाजा बंद होने ही वाला था कि अधिकारी एकाएक ट्रेन से उतर कर भिखारी के पास लौटा और कुछ पेँसिल उठा कर बोला, "मैँ कुछ पेँसिल लूँगा। इन पेँसिलोँ की कीमत है, आखिरकार तुम एक व्यापारी हो और मैँ भी।" उसके बाद वह युवा तेजी से ट्रेन मेँ चढ़ गया।

कुछ वर्षों बाद, वह व्यवसायी एक पार्टी मेँ गया। वह भिखारी भी वहाँ मौजूद था। भिखारी नेँ उस व्यवसायी को देखते ही पहचान लिया, वह उसके पास जाकर बोला-" आप शायद मुझे नहीँ पहचान रहे है, लेकिन मैँ आपको पहचानता हूँ।"

उसके बाद उसनेँ उसके साथ घटी उस घटना का जिक्र किया। व्यवसायी नेँ कहा-" तुम्हारे याद दिलानेँ पर मुझे याद आ रहा है कि तुम भीख मांग रहे थे। लेकिन तुम यहाँ सूट और टाई मेँ क्या कर रहे हो?"

भिखारी नेँ जवाब दिया, " आपको शायद मालूम नहीँ है कि आपनेँ मेरे लिए उस दिन क्या किया। मुझ पर दया करने की बजाय मेरे साथ सम्मान के साथ पेश आये। आपनेँ कटोरे से पेँसिल उठाकर कहा, 'इनकी कीमत है, आखिरकार तुम भी एक व्यापारी हो और मैँ भी।'

आपके जानेँ के बाद मैँने बहूत सोचा, मैँ यहाँ क्या कर रहा हूँ? मैँ भीख क्योँ माँग रहा हूँ? मैनेँ अपनीँ जिँदगी को सँवारनेँ के लिये कुछ अच्छा काम करनेँ का फैसला लिया। मैनेँ अपना थैला उठाया और घूम-घूम कर पेंसिल बेचने लगा। फिर धीरे-धीरे मेरा व्यापार बढ़ता गया, मैं कॉपी– किताब एवं अन्य चीजें भी बेचने लगा और आज पूरे शहर में मैं इन चीजों का सबसे बड़ा थोक विक्रेता हूँ।

मुझे मेरा सम्मान लौटानेँ के लिये मैँ आपका तहेदिल से धन्यवाद देता हूँ क्योँकि उस घटना नेँ आज मेरा जीवन ही बदल दिया ।"

दोस्तों, आप अपनेँ बारे मेँ क्या सोचते है? खुद के लिये आप क्या राय स्वयँ पर जाहिर करते हैँ? क्या आप अपनेँ आपको ठीक तरह से समझ पाते हैँ? इन सारी चीजोँ को ही हम indirect रूप से आत्म-सम्मान कहते हैँ। दुसरे लोग हमारे बारे मेँ क्या सोचते हैँ ये बाते उतनी मायनेँ नहीँ रखती या कहेँ तो कुछ भी मायनेँ नहीँ रखती लेकिन आप अपनेँ बारे मेँ क्या राय जाहिर करते हैँ, क्या सोचते हैँ ये बात बहूत ही ज्यादा मायनेँ रखती है। लेकिन एक बात तय है कि हम अपनेँ बारे मेँ जो भी सोँचते हैँ, उसका एहसास जानेँ अनजानेँ मेँ दुसरोँ को भी करा ही देते हैँ और इसमेँ कोई भी शक नहीँ कि इसी कारण की वजह से दूसरे लोग भी हमारे साथ उसी ढंग से पेश आते हैँ।

दोस्तों, याद रखेँ कि आत्म-सम्मान की वजह से ही हमारे अंदर प्रेरणा पैदा होती है या कहेँ तो हम आत्मप्रेरित होते हैँ। इसलिए आवश्यक है कि हम अपनेँ बारे मेँ एक श्रेष्ठ राय बनाएं और आत्मसम्मान से पूर्ण जीवन जीएं।

आइए.. हम आपको एक ओडियो सुनवाते हैं...

लिली- चलिए दोस्तों, अभी हम आपको ले चलते हैं हंसी-खुशी की दुनिया में जहां सुनाए जाएंगे चटपटे और मजेदार जोक्स।

एक दिन टीचर क्लास में छोटे मोंटू से पूछती है : अच्छा मोंटू, यह बताओ, ऐसा कौन-सा पौधा है, जिसका रस बहुत मीठा होता है?

छोटा मोंटू बोलता है : जी टीचर, मुझे नहीं पता।

टीचर कहती है : याद करो, तुम्हें चीनी कहां से मिलती है?

छोटा मोंटू : टीचर, हम तो पड़ोसियों से मांगकर लाते हैं।

पापा अपने बेटे से कहता है : ये लो बेटा 1500 रुपए।

बेटा बड़ी हैरानी से पुछता : पिताजी, यह 1500 रुपए किसलिए?

पापा बोले : बेटा, तुमने जब से वॉटसएप शुरू किया है, तब से रात को चौकीदार नहीं रखना पड़ता है। ये तेरी मेहनत की कमाई है पगले।

टीचर मोनू से गुस्से में बोली : तुम लेट क्यों आए हो?

मोनू बोला: जी मैम, मम्मी-पापा आपस में लड़ रहे थे।

टीचर बोली : वे लड़ रहे थे तो तुम क्यों लेट आए?

मोनू बोला: मेरा एक जूता मम्मी के पास था और दूसरा पापा के पास!

लिली- दोस्तों, भागलपूर, बिहार से भाई हेमंत कुमार जी ने हमें बड़ा ही मजेदार जोक भेजा है। आइए.. सुनते हैं..

अखिल- एक औरत हाथ में हथौड़ा लिये अपने बेटे के स्कूल में पहुंची और चपरासी से पूछ्ने लगी, "शुक्ला सर की क्लास कौन सी है?"

"क्यों पूछ रही हैं?" हथौड़े को देखकर चपरासी ने डरते हुए पूछा।

"अरे वो मेरे बेटे के क्लास टीचर है।" हथौड़ा हिलाते हुए वो औरत उतावलेपन से बोली।

चपरासी ने दौड़कर शुक्ला सर को खबर दी, कि एक औरत हाथ में हथौड़ा लिये आपको ढूंढ रही है। शुक्ला सर के छक्के छूट गये। वो दौड़कर प्रिसिंपल की शरण में पहुंचे। प्रिंसिपल तत्काल उस औरत के पास पहुंचा और विनय पूर्वक बोला, "कृपया करके आप शांत हो जाईये।"

"मै शांत ही हूं।" वो औरत बोली।

प्रिंसिपल: आप मुझे बताईये कि बात क्या है?

औरत: बात कुछ भी नही हैं। मैं बस शुक्ला सर की क्लास में जाना चाहती हूं।

प्रिंसिपल: लेकिन क्यों?

औरत: क्यों, क्योंकि मुझे वहाँ उस बेंच की कील ठोकनी है, जिस पर मेरा बेटा बैठता है। क़ल वो स्कूल से तीसरी पेंट फ़ाड़ कर आया है।

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