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संडे की मस्ती 2015-07-05
2015-07-03 16:49:27 cri

श्याओ यांग- आइए दोस्तों, आज हम संडे स्पेशल में बात करेंगे कि कहां खो गए चिट्ठी-पत्री और टेलीग्राम?

अखिल- दोस्तों, आधुनिक दुनिया में संचार के माध्यमों का तेजी से विकास हो रहा है। इस समय तो देश-दुनिया के किसी भी हिस्से में मौजूद व्यक्ति वीडियो कॉलिंग के जरिए कहीं भी पहुंच जाता है। पर, पहले किसी को कोई संदेश पहुंचाना बेहद कठिन कार्य था। चिट्ठियों के जमाने में संदेश पहुंचने में तो कई दफे महीनों का समय लग जाता था। बाद में टेलीफोन आए। टेलीग्राम आया। पेजर आया और अब दुनिया 4जी तकनीकी के साथ ही 5जी तकनीक पर हाथ आजमा रही है। आज हम संडे स्पेशल की इस पेशकश में संचार के उन 10 माध्यमों के बारे में बता रहे हैं, जो कभी बेहद लोकप्रिय थे। पर धीरे धीरे खो गए।

1. पोस्टकार्ड: पोस्टकार्ड का आविष्कार आस्ट्रिया में 1869 को हुआ था। अगले सात बरस बाद 1879 में भारत में भी पोस्टकार्ड जारी कर दिया गया। पहले पोस्टकार्ड की कीमत तीन पैसे थी। मोबाइल फोन, ई-मेल क्रांति, वीडियो कॉलिंग के दौर में पोस्टकार्ड अपनी उपयोगिता नहीं बचा पाया।

2. अंतर्देशीय: अंतर्देशीय कार्ड भी पोस्टकार्ड की तरह ही संदेशवाहक था। पोस्टकार्ड पर लिखा संदेश जहां खुला ही रहता था, तो अंतर्देशीय कार्ड में पर्ची डालने या अंदर से मोड़ने की सुविधा दी गई। पोस्टकार्ड के साथ ही अंतर्देशीय कार्ड भी अपनी उपयोगिता गवां बैठा। नई पीढ़ी शायद ही पोस्टकार्ड या अंतर्देशीय कार्ड से परिचित होगी।

3. टेलीग्राम: टेलीग्राम से दूर रहते तुरंत संदेश भेजा जाता था। अब टेलीग्राम का युग खत्म हो चुका है। टेलीग्राम की जगह पहले फैक्स, फिर ई-मेल ने ले ली। अब टेलीग्राम का सेना से संबंधित संक्षिप्त काम ही बचा हुआ है। टेलीग्राम का उपयोग नई पीढ़ी ने शायद ही कभी किया हो।

4. पेजर: 1998 के आसपास की बात है जब कमर में खोंसा गया घड़ी से कुछ बड़ा चौकोर यंत्र 'स्टेटस सिंबल' हुआ करता था। इससे एसएमएस भेजे जाते थे या फिर उस व्यक्ति का नंबर आता था, जो आपसे बात करना चाहता है। अब जब हर दूसरे हाथ में मोबाइल है तो पेजर की भला क्या जरूरत।

5. मोटोरोला के मोटे मोबाइल फोन: मोबाइल फोन मार्केट में आए तो स्टेटस सिंबल बन गए। हालांकि तब के मोबाइल आज के फोन से काफी अलग थे। मोटे और भारी भरकम बहुत कुछ कॉडलैस फोन की तरह। लेकिन आजकल उससे कहीं ज्यादा कम कीमत पर स्मार्टफोन मिल जाते हैं।

6. एसटीडी बूथ: देश में फोन की संख्या बढ़ी तो एसटीडी बूथ की बाढ़ आ गई। हर चौराहे, नुक्कड़ पर पीले रंग से पुते एसटीडी बूथ दिखने लगे लेकिन आज जब 4जी ने दस्तक दे दी है तो ऐसे बूथ यदा-कदा ही दिखते हैं।

7. चक्कर वाले लैंडलाइन फोन: आज की पीढ़ी में से बहुतों ने ऐसे लैंडलाइन फोन पुरानी फिल्मों में ही देखे होंगे, जिनमें नंबर डायल करने के लिए घिर्रियां हुआ करती थीं। समय के साथ ऐसे फोन का वजूद भी खत्म हो गया और उनका स्थान ले लिया नंबर वाले फोनों ने।

8. एएम (मीडियम वेब-रेडियो): पहले रेडियो के रूप में सिर्फ एफएम चैनल ही नहीं हुआ करते थे, बल्कि रेडियो चैनल अधिकर मीडियम वेब या शॉर्ट वेब पर चलते थे। शहरी इलाकों से बाहर अब भी मीडियम वेब पर ही रेडियो चलते हैं। शहरी बच्चों को मीडियम वेब रेडियो चैनलों के बारे में नहीं पता, पर अब भी विविध भारती जैसे मीडियम वेब रेडियो चैनलों की पहुंच घर-घर तक है। देश में कुल 153 मीडियम वेब चैनल अलग-अलग क्षेत्रों में खुले, पर मौजूदा समय में एफएम स्टेशन ही लोकप्रिय हैं।

9. टेलीप्रिंटर: पहले समाचार पत्रों के कार्यालयों या सरकारी कार्यालयों में टेलीप्रिंटर हुआ करते थे। जिनसे खबरों को प्रेषित किया जाता था। खबरों को टेलीप्रिंटर पर पाने के बाद तुरंत नोट कर लिया जाता था। मौजूदा समय की तरह इंटरनेट के साधन तब सीमित थे, और न ही सब टेलीप्रिंटर का उपयोग करते थे।

10. फैक्स: फैक्स का नाम इतना पीछे इसलिए कि ग्रामीण क्षेत्रों में ये लोकप्रिय भी नहीं हो पाया था, कि इसकी महत्ता घटती चली गई। पहले फैक्स के माध्यम से जरूरी कागजात भेजे जाते थे, पर इनका स्थान पर स्कैनिंग मशीनों ने ले लिया है। लोग स्कैन करके अपने महत्वपूर्ण पेपर्स ई-मेल कर देते हैं। हालांकि कार्यालय में अब भी फैक्स का अहम स्थान है।

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