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दोस्तों, आज हम आपको चीन में मिला लंबी गर्दन वाला डायनासोर के बारे में बताने जा रहे हैं। जी हां, चीन में लंबी गर्दन वाले डायनासोर की एक नई प्रजाति की खोज हुई है, जिसे 'किजियांगलॉन्ग' कहा जाता है। इस खोज को अल्बर्टा विश्वविद्यालय के पुरातत्व विज्ञानियों ने अंजाम दिया है। किजियांगलॉन्ग का अर्थ है ड्रैगन ऑफ किजियांग। यह 15 मीटर लंबा है और 16 करोड़ साल पहले जुरासिक काल के उत्तरार्ध तक इसका अस्तित्व था। जिस जगह पर यह जीवाश्म पाया गया है, उसकी खोज निर्माण मजदूरों ने साल 2006 में की थी। खुदाई के दौरान यह जीवाश्म मिला था।
अल्बर्टा विश्वविद्यालय में पीएचडी के छात्र टेटसूटो मियाशिता ने कहा कि किजियांगलॉन्ग को देखकर यह पता चलता है कि लंबी गर्दन वाले डायनासोर एशिया में जुरासिक काल के दौरान बेहद उन्नत तरीके से विकसित हुए। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि डायनासोर की गर्दन अभी भी उसके धड़ से लगी हुई थी। लंबी गरदन वाले डायनासोर के धड़ के साथ गर्दन का पाया जाना बेहद दुर्लभ है, क्योंकि इसका सिर इतना छोटा होता है कि उसकी मौत के बाद वह धड़ से आसानी से अलग हो जाता है।
यह नई प्रजाति डायनासोरों के समूह मामेनचिसाउरिड्स से संबंधित है, जो अपनी लंबी गर्दन के लिए जाने जाते हैं। कभी-कभी इसके गर्दन की लंबाई शरीर की लंबाई की आधी होती है। लंबी गरदन वाले डायनासोर हम चीन के अलावा और कहीं नहीं देख सकते। नई प्रजाति का यह डायनासोर हमें यह बताता है कि दुनिया के अन्य डायनासोर से अलग होकर यह किस प्रकार विकसित हुआ। यह निष्कर्ष पत्रिका 'वर्टिबेट्र पेलीयन्टोलॉजी' में प्रकाशित हुआ है।
लिली- जी अखिल जी, यह हमारे श्रोता दोस्तों के लिए कमाल की जानकारी है।
अखिल- हम्म्म.. वाकई लिली जी। चलिए, मैं अब एक ऐसे इंसाम के बारे में बताने जा रहा हूं जो विदेश में लाखों की नौकरी छोड़ बन गया अपने गांव का सरपंच। वो कैसे, मैं बताता हूं।
दोस्तों, शानदार करियर और बड़ी तनख्वाह के लिए हमारे देश के युवा विदेश जाने का सपना देखते हैं, लेकिन राजस्थान के नागौर में एक युवा ने अलग ही नजीर पेश की है। लाखों की नौकरी छोड़कर नागौर के हनुमान ने अपने गांव की सेवा के लिए सरपंच का चुनाव लड़ा और बन गया सरपंच। अब अपने पिछड़े गांव की तकदीर बदलना ही उसका मकसद है।
हनुमान ने सिंगापुर में होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की थी। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई की और ऑस्ट्रेलिया के एक बड़े रिजॉर्ट में मैनेजर की नौकरी करने लगे। लाखों की कमाई के साथ हनुमान जिंदगी का लुत्फ उठा रहे थे। उनके बड़े भाई भी लंदन में डॉक्टर हैं। ऐसे में जब राजस्थान सरकार ने सरपंच के लिए शिक्षित होने का नियम लागू किया तो गांव को हनुमान में ही अपना भविष्य दिखा। गांव का प्रस्ताव हनुमान ठुकरा नहीं पाए।
हनुमान अब अपने गांव को फ्लोराइड के पानी से निजात दिलाना चाहते हैं। खेती में सुधार के लिए कृषि विश्वविद्यालयों से मदद लेना चाहता है। उसका मानना है कि गांव के विकास के लिए पढ़े-लिखे नौजवानों को आगे आना होगा।
लिली- वहां, क्या कहने उस व्यक्ति के। वाकई, यह सही बात है कि गांव के विकास के लिए पढ़े-लिखे नौजवानों को आगे आना चाहिए।