स्कूल में क्लासरूम
छात्रावास की झलक
सोंग मिंग के श्वेत्वेपाई तिब्बती पारंपरिक हस्तकला स्कूल के मूर्तिकला से जुड़ी कक्षा में शिक्षक और विद्यार्थी धुएं से भरे कमरे में पढ़ाते और सीखते हैं। क्लासरुम में तापमान ऊंचा होता है। लोगों को बिल्कुल कल्पना नहीं होगी कि बाज़ार में बहुत सी सुन्दर और श्रेष्ठ मुर्तियां ऐसे वातावरण में बनाई जाती है। सोंग मिंग ने कहा कि खराब कार्य वातावरण और समाज में अवमानना जैसे कारणों से स्कूल में छात्रों की दाखिला दर कम है। लेकिन वे इसी क्षेत्र में लगातार कोशिश करते रहेंगे। सोंग मिंग ने कहा:
"हम दूसरों के अवमानने की बातें नहीं सुनते और कदम ब कदम आगे विकास करते रहेंगे। धीरे-धीरे इस कोर्स के छात्रों की संख्या ज़रुर बढ़ेगी। मुझे लगता है कि अगर इसी क्षेत्र में पेशेवर लोगों की संख्या 400-500 तक पहुंचेगी, तो इस व्यवसाय का थोड़ा स्थिर विकास हो सकेगा।"
पहले सोंग मिंग ऑइल-पेट वाले कोर्स से स्नातक हुए। वर्ष 1998 में वे भीतरी इलाके के बड़े शहर में अच्छा रोज़गार छोड़कर तिब्बत आए और ल्हासा नार्मल उच्च स्तरीय स्कूल में एक ललितकला शिक्षक बने। तिब्बत में सोंग मिंग को अपना जीवन बहुत अच्छा लगता है। लेकिन यहां ठहरने के दौरान उन्होंने देखा कि स्कूल से स्नातक हुए छात्र और ल्हासा के दूसरे कई युवा लोग बड़ी कठिनाई से रोज़गार प्राप्त कर पाते थे। सोंग मिंग मन ही मन उनके लिए कुछ न कुछ करना चाहते थे। अंत में उन्होंने श्वेत्वेपाई पारंपरिक हस्तकला स्कूल की स्थापना की। उन्हें आशा है कि इस स्कूल में तिब्बती पारंपरिक संस्कृति को विरासत में लेते हुए उसका विकास किया जा सकेगा। इसके साथ ही युवाओं और छात्रों को रोज़गार भी मिल सकेगा। सोगं मिंग ने कहा:
"मैं चीनी हान जाति का हूँ। तिब्बत आकर मैं तिब्बती संस्कृति से प्रभावित हुआ और मैंने इस जाति की संस्कृति से बहुत कुछ सीखने को मिला। मुझे लगता है कि जिंदगी का समय सीमित है। मैं तिब्बती संस्कृति और कला के क्षेत्र में अधिक से अधिक तकनीक और ज्ञान हासिल करना चाहता हूँ। इसके साथ ही तिब्बत की सेवा करने की यथासंभव कोशिश भी करने को तैयार हूँ।"
एक स्कूल खोलने के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है। लेकिन सोंग मिंग के इस श्वेत्वेपाई स्कूल में विद्यार्थियों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है। यही नहीं स्कूली छात्रों को खाने और रहने की फ़ीस भी मुहैया कराई जाती है। स्कूल की स्थापना की शुरुआत में सोंग मिंग दोस्तों व सहयोगी कलाकारों के परिचय से स्कूल में छात्रों को दाखिला करवाते थे। उन्होंने छात्रों के साथ समान रुप से रची गई थांगखा चित्र, तिब्बती शैली के फर्निचरों को बाज़ार में बेचा। प्राप्त सभी पैसे से स्कूल के संचालन और रोजमर्रा के खर्चों में उपयोग किया जाता था। स्कूल में शिक्षा और जीवन स्तर में सुधार होने के चलते ज्यादा से ज्यादा तिब्बती किसान और चरवाहे परिवारों के बच्चे श्वेत्वेपाई स्कूल में पढ़ने आए। धीरे-धीरे स्कूल में विद्यार्थियों को पढ़ाना, कलात्मक वस्तुओं का उत्पादन करना और उन्हें बेचना जैसे चक्रिय प्रचालन नमूना कायम हुआ। वर्तमान में श्वेत्वेपाई स्कूल में मात्र 13 शिक्षक, 68 विद्यार्थी हैं। लेकिन स्कूल के भविष्य के प्रति सोंग मिंग आशावान हैं। उनका कहना है:
"तीन सालों के भीतर हमारा स्कूल प्रारंभिक चरण में होगा। इसी दौरान अच्छी कलात्मक वस्तुओं की रचने में शिक्षकों पर ज्यादा निर्भर रहेगा। छात्र सिर्फ़ शिक्षकों के सहायक बन सकते हैं। लेकिन दो या तीन सालों के बाद स्कूल में छात्रों द्वारा रची गई वस्तुएं बाज़ार में प्रवेश हो सकेंगी। बाजार में उन रचनाओं की मान्यता हासिल कर हमारा स्कूल का अच्छा विकास हो सकेगा। वर्तमान में हमारा स्कूल सबसे अच्छा स्कूलों की संख्या में नहीं गिना जाता है। लेकिन मुझे विश्वास है कि पांच सालों के बाद हमारा स्कूल अवश्य ही सबसे अच्छे स्कूलों की श्रेणी में आ सकेगा। ऐसा मेरा पक्का विश्वास है।"
सोंग मिंग ने कहा कि स्थिति अच्छी होने के बाद वे स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारी दूसरे व्यक्ति को सौंप देंगे। वे खुद पुस्तक लिखने के लिए तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के लिनची प्रिफैक्चर जाएंगे। वर्ष 2011 में उन्होंने अन्य कुछ विशेषज्ञों और शिल्पकारों के साथ मिलकर《तिब्बती पारंपरिक हस्तकला कोष》प्रकाशित किया। भविष्य में वे इस संदर्भ में विस्तृत काम करते हुए इसे और व्यवस्थित करना चाहते हैं। सोंग मिंग ने कहा:
"पहले हमने《तिब्बती पारंपरिक हस्तकला कोष》का प्रकाशन किया, जिसमें नक्काशी, चित्रकला और बुनाई जैसे अंग विभाजित किये। लेकिन भविष्य में हम इस कोष को और विस्तृत रुप से एक-एक अंग में एक-एक किताब प्रकाशित करना चाहते हैं। मसलन् नक्काशी के क्षेत्र में हम कुछ अंगों के मुताबिक कुछ पुस्तकें बनाएंगे। जैसा कि लकड़ी नक्काशी, पत्थर नक्काशी और कांस्य नक्काशी इत्यादि। यह काम करना हमारी व्यक्तिगत कलातमक क्षमता और टीम के सदस्यों की संख्या पर निर्भर रहता है। यह एक बहुत बड़ा काम होगा।"