स्कूल के प्रधान सोंग मिंग
स्कूल कैंपस की झलक
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा के सांस्कृतिक जगत में सोंग मिंग नाम बहुत मशहूर है। वे चित्रकार ही नहीं, बल्कि गायक, टैटू कलाकार, बार-मालिक और मकानों के इंटीरियर डिज़ाइनर भी हैं। यही नहीं उन्होंने ल्हासा में श्वेत्वेपाई नामक तिब्बती कला से जुड़े पारंपरिक हस्तकला स्कूल की स्थापना भी की।
सोंग मिंग का यह स्कूल तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा के केंद्र में स्थित है। स्कूल का दायरा बड़ा नहीं है। लेकिन इसमें प्रवेश करने के तुरंत बाद कैंपस में हरे-भरे पेड़ व घास और तिब्बती शैली की इमारतों से लोगों को एकदम कलात्मक वातावरण महसूस होता है। सोंग मिंग ने परिचय देते हुए कहा कि इस स्कूल की स्थापना वर्ष 2010 में हुई। वर्तमान में स्कूल में तिब्बती थांगखा चित्र की गाछी शाखा सीखाने की कक्षा, तिब्बती शैली के फ़र्निचर बनाने की कक्षा, मूर्तिकला और पारंपरिक चमड़े वस्तुओं की कक्षा जैसे पांच कोर्स चलाये जाते हैं, जिनमें तिब्बती थांगखा चित्र की गाछी शाखा की कक्षा प्रमुख कोर्स है।
थांगखा चित्र तिब्बती जाति के सबसे क्लासिकल पारंपरिक हस्तकलाओं में से एक है, जिसे मुख्य तौर पर म्यानथांग शाखा और गाछी शाखा में विभाजित किया जाता है। म्यानथांग शाखा की थांगखा चित्रों का रंग ज्यादा चमकदार और रंग-बिरंगा होता है, जिसे छिंग राजवंश में सम्राट ज्यादा पसंद करते थे। इतिहास में इस प्रकार वाली थांगखा चित्र बनाने वाले चित्रकारों की संख्या अधिक हैं और म्यानथांग थांगखा चित्र के उत्तराधिकारियों की संख्या भी अधिक है। आज के दौर में तिब्बती थांगखा चित्र की शैली पर म्यानथांग थांगखा चित्र से बड़ा असर पड़ता है। वहीं गाछी थांगखा चित्र की शैली बहुत जटिलपूर्ण है, जिसके विषय भीत्ति चित्र के रुप में नहीं दिखते हैं। इस तरह गाछी थांगखा बनाने वाले चित्रकारों की संख्या कम है। आज मात्र 300 से अधिक तिब्बती कलाकारों को ही इस थांगखा चित्र की शैली में महारत हासिल हैं। इसका विश्लेषण करते हुए सोंग मिंग ने कहा:
"गाछी थांगखा चित्र से संबंधित तकनीक सीखने के लिए म्यानथांग थांगखा से अधिक समय चाहिए। म्यानथांग शाखा की थांगखा चित्र सीखने के दौरान मध्यम तेज़-तर्रार छात्र डेढ़ साल में थांगखा के संबंधित मापदंड और स्केल जैसे तकनीक हासिल कर रंग बना सकते हैं। वे करीब पांच सालों में अच्छी उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन गाछी थांगखा चित्र से संबंधित मापदंड और स्केल वाले तकनीक सीखने के लिए करीब ढाई साल की कड़ी मेहनत की जरूरत होती है। इस शाखा की थांगखा चित्र बनाने में बुनियादी क्षेत्र के तकनीकों का मापदंड ऊंचा है। यहां तक कि छात्र 8 सालों के बाद थोड़ी कामयाबी हासिल कर पाते हैं। इस तरह विरासत में लेते हुए गाछी थांगखा चित्र को विकसित करने की दृष्टि से देखा जाए, तो वर्तमान चीन में मौजूद 300 से अधिक गाछी थांगखा चित्रकार बेहद कम है। मुझे लगता है कि भविष्य में इस प्रकार वाले कला के विकास में भारी चुनौतियां मौजूद होंगी। हम इसी क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा छात्रों को प्रशिक्षण करने की कोशिश करने को तैयार हैं।"
चीन, यहां तक कि सारी दुनिया में अल्पसंख्यक जातियों की तरह, तिब्बत जाति के नक्काशी, कढ़ाई और चित्र जैसे पारंपरिक हस्तकलाओं के सामने लुप्त होने का संकट मंडरा रहा है। कुछ कास्टिंग तकनीक से जुड़े कलाओं के उत्तराधिकारियों की संख्या बहुत कम है। यह पुराने जमाने में धातु कास्टिंग भागों को बहुत नीचे स्तर का समझा जाता था। इसकी चर्चा में सोंग मिंग ने कहा:
"धातु कास्टिंग भागों का स्थान बहुत नीचे स्तर का माना जाता है। इस पेशे से जुड़े लोग गंदे वातावरण में काम करते हैं। पुराने जमाने में तिब्बत में धातु कास्टिंग भाग का स्तर भिखारी, कसाई और मृतकों को दफनाने वालों की तरह था, जिनके साथ समाज में भेदभाव किया जाता था। इसी कारण आज तक इस प्रकार वाले व्यवसाय का स्तर फिर भी ऊंचा नहीं है।"