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छ्यांगमू नृत्य के उत्तराधिकारी भिक्षु लोगसांग याफेई की कहानी
2014-10-31 13:31:52 cri

छ्यांगमू नृत्य का अभ्यास करते हुए भिक्षु

ग्रीष्मकालीन छ्यांगमू नृत्य अभिनय की तैयारी के लिए लोसांग याफेई कभी कभार एक माह पूर्व संगीत दल और नृत्य टीम को अभ्यास के लिए एकत्र करते हैं। छ्यांगमू नृत्य के दौरान भिक्षु अभिनेताओं के आवश्यक उपकरण, वस्त्र, मुखौटे और वाद्ययंत्र जैसी वस्तुएं जाशलुम्बु मठ में तैयार की जाती हैं। डांस करने वाले भिक्षुओं के वस्त्र, मुखौटे और बौद्ध धार्मिक पात्र गेलुग संप्रदाय के रक्षा देवता के समान सजावट के अनुकूल है, इसका लक्ष्य परम्परा को अच्छी तरह संरक्षित करना है।

छ्यांगमू नृत्य का अभिनय संगीत के साथ किया जाता है। इसके लिए वाद्ययंत्रों में ट्रोम्बोन, सुओना, शंख, ड्रम, पीठ ड्रम और घंटी आदि शामिल हैं। संगीत दल के सदस्य वाद्ययंत्र बजाने में सख्त तरीके अपनाते हैं। लोसांग याफेई ने कहा कि ट्रोम्बोन तिब्बती जाति के विशेष वाद्ययंत्रों में से एक है, जो छ्यांगमू नृत्य की प्रदर्शनी में अहम भूमिका निभाती है। उन्होंने कहा:

"इस्वी 8वीं और 9वीं शताब्दी में भारत के महाचार्य अतिसा(Atisa) तत्कालीन तिब्बत के आली क्षेत्र स्थित गुगे वंश आए। उन्होंने तिब्बती बौद्ध धर्म के दो स्थानीय जीवित बुद्धों के साथ इस प्रकार वाले ट्रोम्बोन वाद्ययंत्र का सृजन किया। यह ट्रोम्बोन कांसा, चांदी और सोने जैसी धातुओं से बनाया जाता है। सिर्फ तिब्बत में ही इस प्रकार वाले वाद्ययंत्र मिलता है।"

14 वर्ष की उम्र में लोसांग याफेई परिवार को छोड़कर एक भिक्षु बने, भिक्षु बने हुए अब करीब 30 साल हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि छ्यांगमू नृत्य उनके जीवन में एक अभिन्न अंग बन गया है। लम्बे समय में खुद तपस्या करने और गुरुओं की पढ़ाई से इस प्रकार वाले धार्मिक डांस के प्रति उनकी समझ लगातार बढ़ रही है। लोसांग याफेई ने कहा कि वे छ्यांगमू नृत्य के एक-एक कदम से तिब्बती बौद्ध धर्म के तंत्र-मंत्र के सत्य की खोज कर सकते हैं। जाशलुम्बु मठ में छ्यांगमू नृत्य के उत्तराधिकारी के रुप में उन्हें अपने कंधे पर भारी बोझ महसूस हुआ। लोसांग याफेई ने कहा:

"जाशलुम्बु मठ में छ्यांगमू नृत्य हर पीढ़ी वाले पंचन लामा द्वारा रचा गया डांस है। मैं इस पारंपरिक नृत्य को विरासत में लेते हुए विकास करना चाहता हूँ। इसके साथ ही मैं पंचन लामा के मार्गदर्शन पर अपने सृजनामत्क विचारों को इस डांस के विकास में शामिल करना चाहूंगा। मुझे लगता है कि सृजनात्मक विचार के बिना इस नृत्य का लगातार विकास नहीं होगा। नृत्य के विकास के बिना बाद में यह लुप्त हो जाएगा।"

एक हज़ार वर्ष से अधिक समय में छ्यांगमू नृत्य अच्छी तरह सुरक्षित है, यही नहीं आज चीन के छिंगहाई, कानसू, सछ्वान और युन्नान जैसे प्रांतों के तिब्बती बहुल क्षेत्रों में तिब्बती बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों के मठों में इस नृत्य का विकास हो रहा है। बताया जाता है कि तिब्बत के पड़ोसी भूटान, नेपाल, उत्तर भारत, बांग्लादेश आदि में इस प्रकार का छ्यांगमू नृत्य भी लोकप्रिय है। इस नृत्य से तिब्बती जाति की संस्कृति, कला, सामाजिक जीवन और रीति रिवाज़ पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।


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