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    छ्यांगमू नृत्य के उत्तराधिकारी भिक्षु लोगसांग याफेई की कहानी
    2014-10-31 13:31:52 cri

    छ्यांगमू नृत्य के वाद्ययंत्र

    छ्यांगमू नृत्य का अभ्यास करते हुए भिक्षु

    तिब्बती पंचांग के अनुसार हर वर्ष आठवें माह में छ्यांगमू उत्सव मनाया जाता है। इस त्योहार का दूसरा नाम है"वज्र नृत्य उत्सव", जो शिकाज़े प्रिफैक्चर में सबसे भव्य पारंपरिक धार्मिक त्योहार माना जाता है। जाशलुम्बू मठ के भिक्षु लोसांग याफेई नृत्य मंच पर एक तरफ़ बैठकर घी चाय पीते हुए संजीदगी के साथ भिक्षुओं के डांस प्रैक्टिस देख रहे हैं। छ्यांगमू नृत्य के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा:

    "छ्यांगमू एक पवित्र और भव्य धार्मिक पूजा रस्म है, जिसे तिब्बती बौद्ध धर्म के तंत्र संप्रदाय में सबसे जटिल और महत्वपूर्ण धार्मिक गतिविधि माना जाता है। छ्यांगमू नृत्य देखने में योग्य है और मुझे इस तरह का नृत्य बहुत पसंद है।"

    छ्यांगमू नृत्य चीन में राष्ट्र स्तरीय गैरभौतिक सांस्कृतिक विरासतों की सूची में शामिल हुआ। लोसांग याफेई जाशलुम्बु मठ में इस प्रकार के नृत्य के उत्तराधिकारी ही नहीं, मठ में छ्यांगमू नृत्य अभिनय के निर्देशक भी हैं। लोसांग याफेई किसान परिवार से हैं। बचपन में पशुपालन का काम किया और पढ़ने स्कूल नहीं गए। वर्ष 1984 में पिता जी ने 14 वर्षीय लोसांग याफेई को जाशलुम्बु मठ में भर्ती कराया। यह मठ तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय का अहम मठ है। लोसांग याफेई के पिता जी तिब्बती बौद्ध धर्म के श्रद्धालु हैं। जाशलुम्बु मठ आने के बाद लोसांग याफेई गुरू जी से मेहनत से सूत्र पाठ पढ़ते थे और उन्होंने मठ में आयोजित विभिन्न प्रकार वाली परीक्षा पास करके तांत्रिक अध्ययन केंद्र में तंत्र-मंत्र का अभ्यास करना शुरू किया। इस केंद्र में अभ्यास करने वाले सभी भिक्षु छ्यांगमू नृत्य नाच सकते हैं। धीरे-धीरे लोसांग याफेई को इस पर बड़ी रुचि पैदा हुई।

    तिब्बत के शिकाज़े प्रिफ़ैक्चर के पश्चिमी भाग में खड़े निमा पर्वत पर स्थित जाशलुम्बु मठ तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के चार बड़े मठों में से एक है। तिब्बती भाषा में जाशलुम्बु का अर्थ है मंगलमय। ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, जाशलुम्बु मठ की स्थापना वर्ष 1447 में हुई। इसका निर्माण गेलुग संप्रदाय के गुरू ज़ोंन घा बा के शिष्य प्रथम दलाई लामा कनतुन जूबा ने कराया। चौथे पंचन लामा लोसांग छ्यूचीच्यानचान के समय इस मठ का विस्तार किया गया। इसके बाद जाशलुम्बु मठ पंचन लामा की हर पीढ़ी का निवास स्थान बना। आज इस मठ के स्तूपों में पांचवें से नौवें पंचन लामा के पार्शिव शरीर रखे हैं। यह मठ दक्षिणी तिब्बत का धार्मिक सांस्कृतिक केंद्र भी है।

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