छ्यांगमू नृत्य के उत्तराधिकारी लोसांग याफेई
जाशलुम्बु मठ में छ्यांगमू नृत्य तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय की तंत्र शाखा के धार्मिक नियम का पालन करता है। नृत्य की शैली तिब्बती बौद्ध धर्म के साग्या संप्रदाय, गेग्यु संप्रदाय और न्यिंगमा संप्रदाय से अलग है। भिक्षु लोसांग याफेई ने कहा कि विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के छ्यांगमू नृत्यों के तरीकों में चाहे परिवर्तन कैसे आए, सब नृत्यों का लक्ष्य विभिन्न तरीके से बौद्ध धर्म की भलाई और श्रद्धालुओं के लिए प्रार्थना करना हैं। इसकी चर्चा में लोसांग याफेई ने कहा:
"हालांकि तिब्बती बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों वाले मठों में भिन्न-भिन्न पैमाने के छ्यांगमू नृत्य उत्सव का आयोजन किया जाता है। लेकिन उन नृत्यों के तरीकों में थोड़ा अंतर मौजूद है। हमारे जाशलुम्बु मठ में ग्रीष्मकालीन सेमोछिन छ्यांगमू नृत्य अच्छी तरह संरक्षित है। इसका श्रेय हर पीढ़ी के पंचन लामाओं की कोशिशों को जाता है। चौथे पंचन लामा लोसांग छ्वेचीच्यानचान ने सेमोछिन छ्यांगमू नृत्य स्थापित किया। सातवें पंचन लामा पाईनीमा ने तंत्र मंत्र अध्ययन केंद्र स्थापित किया, उन्होंने छ्यांगमू नृत्य को संपूर्ण करके उसे विकसित किया। जाशलुम्बु मठ प्रकारण शासन संप्रदाय और मंत्र संप्रदाय के मिश्रित संस्थान वाले मठ है, छ्यांगमू नृत्य हमारे तपस्ये का अहम भाग है।"
बताया जाता है कि छ्यांगमू नृत्य का जन्म 8वीं शताब्दी में हुआ, जिसका इतिहास आज से एक हज़ार से अधिक वर्ष पुराना है। कहते हैं तिब्बत में पहला मठ सांम्ये मठ स्थापित होने के बाद एक भव्य समारोह आयोजित किया गया। तत्कालीन प्राचीन तिब्बत यानी थूपो वंश के राजा छीसोंग देचान ने भारतीय महागुरू पद्मसम्भव को समारोह में उपस्थित होने के लिए आमंत्रित किया। महागुरू पद्मसम्भव ने भारतीय बौद्ध धर्म के वज्र नृत्य के आधार पर तिब्बती स्थानीय आदिम बोन धर्म के पूजा नृत्य को मिश्रित कर बौद्धिक सभा आयोजित की। बाद में पीढ़ी दर पीढ़ी के बौद्ध आचार्यों ने इस प्रकार के नृत्य में सुधार कर इसे नियमित किया। धीरे-धीरे यह नृत्य धार्मिक रस्म में विरासत में लेते हुए इसे विकसित किया गया।
जाशलुम्बु मठ में हर साल गर्मियों और सर्दियों में दो बार छ्यांगमू नृत्य प्रदर्शनी आयोजित की जाती हैं। जिनमें तिब्बती पंचांग के आठवें माह में ग्रीष्मकालीन छ्यांगमू नृत्य प्रदर्शनी ज्यादा भव्य है। इसी दौरान चार दिवसीय नृत्य प्रदर्शनी की जाती है, जो जाशलुम्बु का दौरा करने आए देशी विदेशी पर्यटकों और स्थानीय धार्मिक अनुयायियों को आकृष्ट करता है। ड्रम बजाने की धुनों और संगीत के साथ दसेक भिक्षु एकल नृत्य, युगल नृत्य और सामूहिक डांस करते हैं। वे नृत्य के माध्यम से अपने दिल में वज्र देवता की पूजा करते हैं। लोसांग याफेई ने कहा कि वास्तव में नृत्य करने के दौरान अभिनय करने वाले भिक्षु धार्मिक रक्षा देवता का रूप दिखा रहे हैं, वे डांस करते हुए श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं, विश्व शांति की प्रार्थना भी करते हैं। लोसांग याफेई ने कहा:
"इस डांस के अभिनय के दौरान भिक्षु शरीर के विभिन्न अंगों की क्रियाओं से नौ नृत्य तकनीक के माध्यम से रक्षा देवताओं के क्रोध और दलायु जैसी भावनाएं दिखाते हैं। इसी वक्त भिक्षु तो सिर्फ़ भिक्षु नहीं होते, वे खुद रक्षा देवता ही हैं। नृत्य करने से वे धार्मिक तपस्या भी करते हैं। अगर दर्शक धर्म नियम जानते हो, तो वे नृत्य में दिखाए हुए धार्मिक रहस्य महसूस कर सकते हैं।"