दक्षिण पश्चिमी चीन के सछ्वान प्रांत के कानची तिब्बती स्वायत्त प्रिफैक्चर स्थित खांगपा संस्कृति अनुसंधान केंद्र की स्थापना पिछले वर्ष में हुई। इसके साथ ही तिब्बती चिकित्सीय संस्कृति का अनुसंधान केन्द्र समेत छह खांगपा संस्कृति अनुसंधान केन्द्र की स्थापना भी हुई। यह स्थानीय सरकार द्वारा स्थानीय तिब्बती चिकित्सा के विकास और संरक्षण के लिए उठाया गया एक अहम कदम है।
कानची तिब्बती स्वायत्त प्रिफैक्चर की देगे कांउटी को"तिब्बती चिकित्सा की दक्षिणी शाखा की राजधानी"के नाम से मशहूर है। तिब्बती चिकित्सीय संस्कृति अनुसंधान केन्द्र की स्थापना को लेकर तिब्बती चिकित्सक रअपा बहुत खुश हुए। पिछले 40 से अधिक सालों में वे तिब्बती चिकित्सा का अनुसंधान कर रहे हैं और तिब्बती चिकित्सीय उपायों से रोगियों के इलाज में संलग्न हैं। तिब्बती चिकित्सा की दक्षिणी शाखा के रुप में देगे कांउटी में तिब्बती चिकित्सा के विकास के बारे में उन्हें गर्व के साथ परिचय देते हुए कहा:
"देगे चिकित्सीय अस्पताल की स्थापना वर्ष 1959 में हुई। देगे क्षेत्र में तिब्बती चिकित्सा का इतिहास 500 से अधिक वर्ष पुराना है। वास्तव में तिब्बती चिकित्सा का इतिहास 3 हज़ार वर्ष लम्बा है। देगे क्षेत्र में लम्बे समय से तिब्बती चिकित्सा का इस्तेमाल किया जाता रहा है। वर्ष 1959 में देगे कांउटी में तिब्बती चिकित्सीय अस्पताल की स्थापना देगे बौद्ध सूत्र मुद्रण गृह में हुई। वर्ष 1982 में इस अस्पताल का विस्तार किया गया और आज खांगपा तिब्बती बहुल क्षेत्र में एक बहुत प्रसिद्ध अस्पताल बन गया है।"
मित्रो, यहां खांगपा क्षेत्र चीन में तीन तिब्बती बहुल क्षेत्रों में से एक है, जिसमें आज तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के छंगतु प्रिफैक्चर, सछ्वान प्रांत के कानची और आबा तिब्बती स्वायत्त प्रिफैक्चर, छिंगहाई प्रांत के यूशू तिब्बती प्रिफैक्चर और युन्नान प्रांत के दिछिंग तिब्बती प्रिफैक्चर शामिल हैं। खांगबा क्षेत्र का इतिहास बहुत पुराना है, जो प्राचीन समय में छिंगहाई तिब्बत पठार में एक अहम क्षेत्रीय सभ्यता का उद्गम स्थल माना जाता है।
तिब्बती चिकित्सक रअपा के अनुसार 1450 ईस्वी के बाद से ही देगे कांउटी में स्थित कङछिंग मंदिर में चिकित्सा केंद्र की स्थापना की गई। उस समय में मठ के भिक्षु चिकित्सकों के रुप में रोगियों का इलाज करते थे। देगे तिब्बती चिकित्सा का 550 वर्षों का इतिहास है, लेकिन वह 5 हज़ार वर्ष पुरानी तिब्बती चिकित्सा पद्धति पर आधारित है। कहा जाता है कि तिब्बती चिकित्सा को चीनी परम्परागत चिकित्सा, प्राचीन भारतीय चिकित्सा, अरबी-पारसी चिकित्सा को एक साथ मिलाकर विश्व के चार पारंपरिक चिकित्सा शास्त्र माना जाता है। तिब्बती चिकित्सा के विकास के दौरान छिंगहाई तिब्बत पठार में रहने वाले पूर्वजों ने लम्बे समय से प्राप्त अनुभवों के आधार पर चीनी पारंपरिक चिकित्सा, प्राचीन भारतीय चिकित्सा समेत बाहरी चिकित्सीय शास्त्र के श्रेष्ठ अंगों को शामिल किया, जो आज अपनी पूर्ण प्रणाली में कायम होकर एक प्रकार की विशेष चिकित्सीय पद्धति बन गया है।