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    संडे की मस्ती 2014-04-20
    2014-04-23 14:42:07 cri

    अखिल- वैल्कम बैक दोस्तो, आप सुन रहे है संड़े की मस्ती मेरे और मीनू के साथ...।

    दोस्तों, क्या आप जानते है कि राजस्थान के गांवों में किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उनकी मौत पर पेशेवर रोने वाली स्त्रियों को बुलाया जाता है, जिन्हें रूदाली कहते हैं। आपको यह भी बता दूं कि इस प्रथा और परम्परा में पिसती रूदाली नामक स्त्रियों पर निर्देशिका कल्पना लाजमी ने सन् 1992 में एक बेहद मजबूत फिल्म बनाई थी जिसका नाम था रूदाली।

    दोस्तों, आप सोच रहे होंगे कि मैं आज यह रूदाली के बारे में क्यों बता रहा हूं.... दरअसल बात यह है कि चीन के जिन घरों में किसी की मौत हो जाती है तो उसका शोक जताने के लिए चीनी लोग उन पेशेवर कलाकारों की मदद ले रहे हैं, जिनके पास कोई काम नहीं होता है। वे एक निश्चित राशि के बदले मरने वालों के घरों में पेशेवर तरीके से रोने के बढिया एक्टिंग करते हैं। चीन में मान्यता है कि अगर किसी के घर में लोग जोर-जोर से नहीं रोते हैं तो माना जाता है कि परिवार वालों को मरने वाले से कोई प्यार या लगाव नहीं है। इसलिए चीन में यह प्रथा पनपने लगी है कि मोटी रकम चुकाकर सात पेशेवर रोने वाले कलाकार ले सकते हैं और वे इस तरह रोएंगे ताकि बाकी देखने वाले भी जोर-जोर से रोने लगें। चीन में यह माना जाता है कि अगर किसी की मौत पर आंसू नहीं बहाए गए हों तो इसका मतलब है कि मरने वाले से किसी को कोई प्यार नहीं है। इतना ही नहीं, इससे परिवार की बदनामी भी होती है कि उनके घर में लोग जोर-जोर से नहीं रोए। चीन में किसी की मौत पर आंसू बहाने वालों की संख्या काफी न होना परिवार के लिए बेहद शर्मनाक माना जाता है।

    दक्षिण-पूर्व चीन के फेईशान शहर में 35 साल के चेन शुछियांग का एक ग्रुप है, जिसे पेशेवर रोने वालों के नाम से जाना जाता है। डेली मेल ऑनलाइन में छपी एक खबर के मुताबिक इस काम में वे कलाकार खासतौर पर शामिल हो जाते हैं, जिनके पास एक्टिंग का काम नहीं होता है। उनकी तब और भी जरूरत महसूस हो जाती है जब मृतक के घर वाले इतने अधिक व्यस्त होते है कि उनके पास शोक जाहिर करने का भी समय नहीं होता। करीब 30, 000 रूपये में आपको सात ऐसे पेशेवर रोने वाले मिल जाते हैं जो कि परम्परगत चीनी तरीके से संबंधी की मौत पर शोक जाहिर करते हैं। ये लोग दूसरे लोगों को भी प्रोत्साहित करते हैं कि वे लोग भी दहाड़ मार-मारकर रोने का काम करें।

    इसी तरह चीन के दक्षिण-पूर्व में स्थि‍त फूजियान में भी किराए पर रोने वालों को बुलाने का चलन बढ़ रहा है। इस मामले में चेन शुछियांग का कहना है कि उनका धंधा फलफूल रहा है। उनका कहना है कि अभी तक इस धंधें में युवा पेशेवर रोने वालियों को importance दी जाती है और मेल कलाकार को बहुत कम महत्व मिलता है और उनकी मांग भी कम होती है।

    आगे उनका कहना है कि मरने वालों के रिश्तेदार चाहते हैं कि हम बहुत अधिक रोना धोना मचाएं और जब dead body को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा हो तो coffin box से लिपटकर इस तरह रोएं और चिल्लाएं ताकि लोगों को लगे कि मरने वाला हमारा ही कोई प्रिय था।

    इन लोगों की सेवाएं मरने वाले के परिजन तो लेते ही हैं, साथ ही ये लोग उनके ऐसे ‍‍रिश्तेदारों की ओर से रोने जाते हैं जोकि शोक के मौके पर खुद नहीं जा पाते हैं। ग्राहक आमतौर पर एक पैकेज के तौर पर सात रोने वाली फिमेल कलाकार को बुलाते हैं, लेकिन कभी-कभी कुछेक को या अलग-अलग से भी बुलाया जाता है। इन रोने वालियों को पैसा भी उनके रोने के आधार पर दिया जाता है।

    सबसे जरूरी बात यह है कि ये रोने वालियां पूरे मेकअप में सज-संवरकर अपना काम करती हैं ताकि लगे कि वे कोई मृतक की करीबी ही हैं। चेन का कहना है कि वे ग्रामीण क्षेत्र में नौटंकी दल में गाने का काम करती थीं, लेकिन वहां पैसा बहुत कम मिलता था।

    उसका कहना है कि उसने जबसे पेशेवर रोने वाली का धंधा अपनाया है तब से उसके पास पैसों की कमी नहीं होती है। इसलिए जब भी उसे नाचने, गाने की इच्छा होती है, वह लोगों के सामने अपनी इस कला का भी प्रदर्शन करती है लेकिन जहां तक कमाने की बात है तो कमाई सिर्फ रोने से होती है।

    अखिल- दोस्तो, यह सिर्फ चीन की ही कहानी नहीं है, बल्कि आज के दौर की सच्चाई है। आज के आधुनिक युग में इंसान इतना अकेला और समाज से कटता जा रहा है, उसका नतीजा यह है कि अब उसके मरने पर आंसू बहाने वालो की कमी होने लगी है।

    मीनू- बिल्कुल सही बात कही आपने अखिल जी....। चलिए.. अब मैं बताती हूं कि अपने चश्मे से वीडियो बनाइए और मेल पढ़िए क्योंकि गूगल ग्लास हाजिर है...।

    अखिल- अरे वाह...।

    मीनू- दोस्तों, सिर्फ एक दिन के लिए गूगल ग्लास बिक्री के लिए उपलब्ध होगा और इसकी कीमत होगी करीब 1500 डॉलर (यानि 90,000 रुपये)। इसकी खासियत यह है कि इसके जरिए आप अपने ईमेल पढ़ सकते हैं, फोटो देख सकते हैं और रास्ते का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। दरअसल यह ग्लास एक चश्मा है जिसे पहनकर आप उसके कोने में लगे अंगूठे के आकार के स्क्रीन पर अपने मेल पढ़ सकते हैं, वीडियो देख सकते हैं और दिशा का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। यानी आप वह सब काम कर सकते हैं जो एक मॉनिटर पर करते हैं। इतना ही नहीं यह बिल्कुल साफ तस्वीरें लेगा और फोटो भी खींचेगा। यानी इसमें एक वीडियो कैमरे के सभी फीचर मोजूद हैं। गूगल ग्लास सिर्फ एक दिन के लिए बाजार में आएगा। पर अभी तय नहीं है कि कब आएगा। दिलचस्प बात यह है कि गूगल ग्लास सिर्फ वयस्क लोगों को ही मिलेगा, बच्चों को सुरक्षा कारणों से यह नहीं बेचा जाएगा।

    अखिल- वाकई.. बहुत ही दिलचस्प बात बताई आपने मीनू जी....। इस गूगल ग्लास चश्मे को हर कोई खरीदना चाहेगा। दोस्तो, क्या आप खरीदना चाहेंगे...?

    अखिल- मीनू जी.. मैं भी एक रोचक और मजेदार बात बताता हूं.....।

    मीनू- हां.. हां.. बताओ...।

    अखिल- दोस्तों, मैं आपको एक ऐसा हाईवे की बात बताने जा रहा हूं जो बिना स्ट्रीट लाइट के जगमगाता रहता है और यह हाईवे है नीदरलैंड में।

    दरअसल, उस हाईवे की सड़क पर जो पेंट किया गया है उसमें एक खास पाउडर मिलाया गया है जो रोशनी को छितरा कर उसका असर बढ़ा देता है। यह पाउडर दिन में सूरज की रोशनी से चार्ज हो जाता है और रात में एक तेज हरी रोशनी छोड़ता है जिसके बाद स्ट्रीट लाइट की जरूरत नहीं पड़ती। इस हाईवे पर आवाजाही इसी महीने शुरू की जानी है। यह एम्सटर्डम के दक्षिण-पूर्व हिस्से से करीब 100 किलोमीटर दूर है। दिन में पेंट पूरी तरह चार्ज हो जाए तो अंधेरे में यह लगातार 8 घंटे तक अपना काम कर सकता है। इंटरेक्टिव कलाकार डान रूसगार्ड ने डल सिविल इंजीनियरिंग फर्म 'हाइमांस' के साथ मिलकर यह तकनीक ईजाद की है। डान रूसगार्ड ने कहा है, सरकार पैसा बचाने के लिए रात में स्ट्रीट लाइट बंद रख रही है। अब बिजली बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। यह सड़क पूरी तरह सुरक्षित है। उन्होंने कहा कि हम कारों के डिजाइन और रिसर्च में करोड़ों खर्च कर देते हैं, लेकिन सड़कों पर खास ध्यान नहीं दिया जाता। उन्होंने बताया कि उन्हें ऐसी सड़क का आइडिया जेलीफिश से आया। जेलीफिश के पास कोई सोलर पैनल नहीं होता, लेकिन वह जगमगाती रहती है।

    मीनू- Woww…. क्या बढिया बात बताई है....। इस आईडिया का इस्तेमाल हर देश में होना चाहिए। इससे स्ट्रीट लाईट का खर्चा और बिजली की कमी की समस्या से बचा जा सकेगा।

    अखिल- हम्म्म... सही कहा मीनू जी आपने....। यह आईडिया बड़ा ही कारगर लगता है। चलिए.. अब सुनते है अगला गाना.. उसके बाद बताएंगे कि चीन में एक आदमी कैसे खुशी के मारे पहुंच गया अस्पताल और लंदन में कुत्ते ने कैसे दी गवाही...।

    (गाना-2)

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