कांगार जिम्बा ने कहा कि बौद्ध धर्म के अनुयायी बनने के बाद उनके विचारों में बड़ा बदलाव हुआ है। सूत्रों को पढ़ने और समझने से उनके दिल में शांति मिल गयी। उन्होंने कहा,"भिक्षु बनने के बाद मेरे अंदर बड़े स्तर पर बदलाव आया है। उदाहरण के लिये पहले मुझे गुस्सा बड़ी आसानी से आ जाता था। अगर किसी व्यक्ति ने मुझ पर आरोप लगाया तो मैं तुरंत आक्रोशित हो जाता था। यहां तक कि मैं उनके साथ मारपीट भी करने लगता था। लेकिन अब मैं ज्यादा सहनशील हो गया हूं। दिल की सोच आप की कार्रवाई पर फैसला कर सकती है।"
पिछली शताब्दी के 80 वाले दशक से पहले यातायात की असुविधा और दूर संचार के अभाव से तिब्बत के मठों में रहने वाले भिक्षु बाहर दुनिया के बारे में बहुत कम जानते थे। लेकिन अब ज्यादा से ज्यादा देसी-विदेशी पर्यटकों के तिब्बत की यात्रा करने, नेटवर्क और स्मार्टफोन के प्रसार-प्रचार से तिब्बती भिक्षुओं के जीवन में भी बहुत बदलाव हुआ है। उनका जीवन स्तर उन्नत हो गया। अधिकतर भिक्षुओं के पास इस समय मोबाइल फोन है। कांगार जिम्बा के विचार में इस बदलाव में अच्छा और बुरा दोनों परिणाम मिलेगा। उन्होंने कहा,"पहले समय में हमारे पास मोबाइल फ़ोन नहीं थे, तो हम प्रार्थना और सूत्र पढ़ने पर ध्यान केंद्रित करते थे। जिसमें किसी भी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं था। लेकिन अब मोबाइल फ़ोन से हम पर कुछ असर पड़ा है। कुछ युवा भिक्षु पहले की तरह ध्यान से काम नहीं कर पाते। लेकिन दूसरी ओर, मोबाइल फ़ोन हमें बहुत सुविधाएं देता है। उदाहरण के लिये अब हम आसानी से परिवार जनों के साथ संपर्क रख सकते हैं, समाचार पढ़ सकते हैं, और बाहर की दुनिया से जुड़ी बहुत जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।"
बीस वर्ष की आयु में युवक बाहर की दुनिया को जिज्ञासा से देखते हैं। कांगार जिम्बा भी ऐसे हैं। उन्होंने कहा,"एक भिक्षु बनना मेरी ही जिन्दगी का चुनाव है। भविष्य में मैं ज्यादा भाषाएं सीखना चाहता हूं। लेकिन पहले मैं अपनी हान भाषा को अच्छी तरह सीखना चाहता हूं। इसके बाद, मैं अंग्रेजी सीखना चाहता हूं। क्योंकि अंग्रेजी एक वैश्विक भाषा मानी जाती है। और ज्यादा से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक हमारे मठों का दौरा करते हैं। वास्तव में अब मैं अपने आप से सीख रहा हूं। अगर मैं अंग्रेजी भाषा में उनके साथ बातचीत कर सकता हूं, तो मैं ज्यादा अच्छी तरह से उन्हें साग्या मठ और तिब्बती इतिहास का परिचय दे सकूंगा।"
हर व्यक्ति की जिन्दगी में शायद बहुत चुनाव मौजूद हैं। कांगार जिम्बा जैसे तिब्बती भिक्षु के प्रति उन्होंने बौद्ध धर्म के अनुयानी बनने का चुनाव लिया। इसका मतलब है कि उन्होंने शांतिपूर्ण जीवन बिताने का चुनाव किया।
(चंद्रिमा)