बहुत से लोग तिब्बती भिक्षुओं के जीवन के बारे में जानने की जिज्ञासा हैं। इस जटिल और रंग भरी दुनिया में वे कैसे धैर्य के साथ सरल और शांतिपूर्ण जीवन बिता सकेंगे ? वर्तमान विश्व के बदलने की गति दिन-ब-दिन तेज हो रही है। क्या भिक्षुओं का जीवन भी इसके साथ बदल रहा है?
हर सुबह 21 वर्षीय कांगार जिम्बा बुद्धा की प्रार्थना से साग्या मठ में अपना दिन शुरू करते हैं। 13 वर्ष की उम्र में वे बौद्ध धर्म के एक अनुयायी बन गये। बीते आठ वर्षों में वे नियमित रूप से हर रोज यह काम करते हैं। उन्होंने कहा,"मेरा नाम कांगार जिम्बा है। वर्ष 2005 में मैं साग्या मठ में आया था। दो वर्ष तक बौद्ध सूत्र की पढ़ाई करने के बाद मैंने परीक्षा पास किया, इसके बाद मैं बौद्ध धर्म का भिक्षु बन गया। साधारण जीवन में हम साढ़े छै बजे उठते हैं, और ध्यान केंद्रित करके सूत्र पढ़ने से नये दिन का स्वागत करते हैं। लगभग साढ़े नौ बजे हम प्रारंभिक सबक समाप्त करते हैं।"
सूत्र पढ़ने के बाद साग्या मठ के सभी भिक्षु अपना-अपना काम शुरू करते हैं। वे भिन्न-भिन्न काम करते हैं, उदाहरण के लिये सफ़ाई का काम, प्रबंध का काम, या नये भिक्षुओं के लिये सवाल-जवाब का काम। मठ में बहुत कम भिक्षु हान भाषा बोलते हैं। उनमें से एक होने के नाते कांगार जिम्बा का मुख्य काम पर्यटकों को साग्या मठ के इतिहास का परिचय देना है।
मठ के बाहर कांगार जिम्बा जैसे युवक शायद अपने अवकाश के समय अपने प्रेमी के साथ बिताते हैं, ऑनलाइन गेम्स खेलते हैं, या टीवी देखते हैं। लेकिन एक भिक्षु के रूप में कांगार जिम्बा का सबसे बड़ा शौक तो किताबें पढ़ना है। उन्होंने कहा, "अवकाश के समय मैं अक्सर पुस्तक पढ़ता या लेख लिखता हूं। सूत्रों के अलावा मुझे इतिहास से जुड़ी पुस्तकें बहुत पसंद हैं। और पुस्तक पढ़ने से मुझे बाहर की दुनिया से संबंधित ज्यादा जानकारियां मिलती हैं।"
पढ़ाई भिक्षुओं के जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग है। कांगार जिम्बा पढ़ाई, एहसास और बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के इस्तेमाल को अपने जीवन में एक कर्तव्य मानते हैं। साथ ही साग्या मठ के भिक्षुओं को हर दिन गुरु जी की परीक्षा को पास करना पड़ता है, और उन्हें पढ़ाई में प्राप्त अनुभवों को बताना पड़ता है। कांगार जिम्बा ने कहा,"साग्या मठ में हर रात हमें परीक्षा देनी पड़ती है। गुरु जी हमें सूत्र के विषय और सूत्र के वाद-विवाद की परीक्षा देते हैं। अगर वे हमारे प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं हैं, तो हमें सज़ा मिलती है।
सूत्रों का वाद-विवाद तिब्बती बौद्ध धर्म की एक विशेषता है। भिक्षु अक्सर मठ के मैदान में या पेड़ की छाया में सूत्रों पर वाद-विवाद करते हैं। यह भी परीक्षा का एक तरीका है। ताकि सूत्रों से जुड़ी जानकारियों पर भिक्षुओं की जांच-पड़ताल की जा सके।"