चीन में य्वान राजवंश(1271-1368) से पूर्व मेहराब का प्रयोग इमारतों आदि में नहीं होता था। मिडं राजवंश में ईंट की दीवारों के लोकप्रिय होने के कारण कुछ धरनरहित भवनों का निर्माण हुआ। पेइचिंग में निर्मित ह्वाडंशिछडं में सम्राट की पांडुलिपियां और गुप्त दस्तावेज रखे जाते थे। ह्वाडंथुडं बौद्ध विहार का धरनरहित भवन और फडंरुन काउन्टी के छचओ पहाड़ पर निर्मित धरनरहित भवन भी उल्लेखनीय हैं। सबसे पुराना और भव्य धरनरहित भवन नानचिडं के लिडंकू बौद्ध विहार में स्थित है। इसमें सामने पांच मेहराबें हैं और एक किनारे से दूसरे किनारे तक बनी तीन मेहराबें हैं। बीच की मेहराब 14 मीटर ऊंची और 8 मीटर चौड़ी है। ईंट और पत्थर से बना धरनरहित यह भवन अदाह्य है और इसमें लकड़ी के एक भी धरन या खंभे का प्रयोग नहीं हुआ है। प्रायः सभी प्राचीन इमारतों के दरवाजे मेहराबदार हैं।
हालांकि वास्तु निर्माण में मेहराब का प्रयोग चीन और पश्चिम में एक साथ आरंभ हुआ, पर काष्ठ संरचना के अधिक लोकप्रिय व अनुकूल होने के कारण चीनी वास्तु निर्माण में मेहराब का प्रयोग अधिक न हुआ।