रेशम, मछली और चावल का उत्पादन-केंद्र
हाडंचओ की नहरें कुडंछनछ्याओ की ओर पलट कर उत्तर की तरफ बहती हैं और यहां जल-धारा चौड़ी हो जाती है। य्वान राजवंश से पहले महानहर हाडंचओ से लिनफिडं होते हे च्याशिडं की तरफ उत्तर-पूर्व में बहती थी। य्वान काल के अन्त में कृषक विद्रोह के नेता चाडं शछडं ने थाडंछी और हाडंचओ के बीच के खंड को चौड़ा किया और राजधानी को अनाज पहुंचाने वाले व्यापारियों और जहाजों ने थाडंछी के रास्ते आवागमन शुरू किया जिससे हाडंचओ की उपबस्ती में स्थित यह शहर सर्वाधिक सम्पन्न हो गया।
महानहर थाडंछी पर दो शाखाओं में बंटती है। एक शाखा उत्तर-पूर्व की ओर बहती हुई च्याशिडं जाती है और वहां से उत्तर की ओर मुड़कर वाडंच्याडं होते हुए च्याडंसू प्रांत में प्रवेश करती है। दूसरी शाखा, जो नए मार्ग के नाम से जानी जाती है उत्तर की ओर बहती है और फिर पूर्व की ओर मुड़कर नानश्युन होते हुए च्याडंसू प्रांत पहुंचती है। हाडंचओ-च्याशिड-हूचओ मैदान में खेतीयोग्य जमीन के विशाल चक्र हैं, जिन में आड़ी-तिरछी जल-धाराएं फैली हुई हैं और जगह जगह मछली तालाब तथा हरेभरे शहतूत के झुरमुट बिखरे नजर आते हैं।
प्राचीन काल में च्याशिडं का नाम च्याह(मतलब "अच्छा अनाज") यानी इस समुद्र धान पर पड़ा था, जो शहर की उत्तरी उपबस्तियों में झमाझम उगता था। यह इलाका दक्षिणी झील में पैदा होने वाले कमल और रसदार सिंधाड़े के लिए प्रसिद्ध है। दो छोटी झीलों से बनी दक्षिणी झील चकवा-चकवी झील भी कहलाती है, क्योंकि यह दो छोटी झीलें इन पक्षियों के रूप में दिखाई देती हैं। झील में स्थित टापू पर खड़ा कोहरा और बारिश मंडप हमेशा कोहरे की पतली चादर से ढका रहता है और एक जबरदस्त पर्यटक आकर्षण हैं। यह मंडप झील के किनारे 940 में बना था और 1548 में टापू पर ले जाया गया था। यह टापू उससे पहले साल महा नगर से निकली गाद से बना था। छिडं राजवंश(1644-1911) के सम्राट छ्येन लुडं ने अनेक अवसरों पर महानहर से होकर छाडंच्याडं नदी के दक्षिणी क्षेत्रों की यात्रा की थी।
वे 6 बार च्याशिडं से गुजरे थे और हर बार इस स्थान के दर्शन करने आए। सम्राट इस स्थान से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस मंडप की शैली पर पेइचिंड के नजदीक स्थित छडंत नामक ग्रीष्मकालीन विश्राम स्थल की शाही पहाड़ी में एक नई इमारत खड़ी करने का आदेश दिया।
हूचओ इस मैदान के उत्तरी भाग में स्थित है और उत्तर में थाएह झील की सीमा पर है। यहां अनेक ऐतिहासिक स्थल हैं। इन में सब से प्रसिद्ध वह सात मंजिला अष्टकोणी पगोडा है जो 9वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था। पत्थर का पगोडा काष्ठ ढांचे से घिरा है। आसमान में 216 मीटर ऊंचा यह पगोडा थाएह झील के अद्भुत दृश्य के दर्शन के लिए सर्वोत्तम जगह है। हूचओ का लौह बुद्ध मंदिर अवलोकितेश्वर की लौह प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है और कोई एक हजार साल पुराना होने के बावजूद इस पर अब तक जंग नहीं लगा है। हूचओ का रेशम उद्योग काफी विकसित है। देशभर में यहां के रेशम-धागे की खूबसूरती, मुलायमी और धुर सफेद छटा की धाक है। हूचओ क्षेत्र जलीय उपज स्रोतों जैसे कृत्रिम मोती-पालन और नदी जाल में मत्स्य-पालन के लिए भी नामी है।
मिडं राजवंश काल के विद्वान थाडं इस छाडंच्याडं नदी के दक्षिण में स्थित महानहर को ऐसी संपत्ति का एक विशाल स्रोत मानते थे, जो एक साल में "लाखों औंस सोना" पैदा कर सकती है। च्याडंसू के च्याडंइन और हाडंचओ के बीच का महानहर का उत्तर-दक्षिण हिस्सा और हूचओ व शाडंहाए के बीच का पूर्व-पश्चिम हिस्सा जो एक दूसरे को काटते हैं, चीन में "स्वर्णिम चौराहे" यह "छोटी गंगा" के तौर पर सराहे जाते हैं। तटों पर व्यस्तता और सघन आबादी से ठस महानहर के यह दो हिस्से चीन के सब से बड़े शहर शाडंहाए तक हर वर्ष इमारती सामग्री और फार्म उत्पादों का विशाल ढेर पहुंचाते हैं।