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    धरती पर स्वर्ग
    2014-06-09 09:23:20 cri

                                                                                पानी पर बसा शहर

    आज का हाडंचओ शहर भूखंड कोई दो हजार सालों पहले समुद्र का एक हिस्सा था और पश्चिमी झील छ्येनथाडं नदी के मुहाने के नजदीक स्थित एक छोटी खाड़ी मात्र थी। बाद में धीरे धीरे खाड़ी का मुंह अवरुद्ध हो गया और वह आज के हाडंचओ काल में हाडंचओ शहर एक प्रिफेक्चर बना और उत्तर व दक्षिण को जोड़ने वाली महानहर के पूरा होने पर यह धीरे धीरे एक फलते फूलते व्यापारिक केंद्र और नहर के दक्षिणी छोर का वितरण केंद्र बन गया।

    हाडंचओ की अधिकांश नहरें दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हैं। लेकिन नहर समूह की मुख्य नहर यानी शहर से गुजरने वाली मध्यवर्ती नहर दक्षिण में छ्येनथाडं नदी में गिरती और उत्तर में पूर्वी नहर से जुड़ जाती। मध्यवर्ती और पूर्वी दोनों नहरें थाडं और सुडं कालों में बनी थीं। अतीत में पश्चिमी झील हाडंचओ की नहरों को नियंत्रित करने वाले विशाल बांध के तौर पर काम करती थी और इस प्रकार शहर की समृद्धि से जुड़ी थी।

    थाडं राजवंश काल(618-907) के दौरान हाडंचओ में भूमि और जल-संचार का अच्छा खासा जाल बिछ चुका था। इसकी नहरों पर मीलों तक नावों की कतार लगी रहती थी और शहर में दुकानों की संख्या कोई 30 हजार थी। 822 में थाडं कवि पाए च्वीई को हाडंचओ शहर का गर्वनर बनाया गया। अपने शासन में उन्होंने हाडंचओ की झीलों और नहरों की गाद निकासी का प्रबंध किया और इस प्रकार सिंचाई और यातायात व्यवस्था को अत्यन्त सुगम बनाया। 1089 में विशिष्ट सुडं कालीन कवि सू तुडंफो हाडंचओ के गर्वनर नियुक्त हुए और उन्होंने पाया कि दीर्घ उपेक्षा के चलते नगर की नहरें छिछली हो गई हैं और पश्चिमी झील लगभग सूख चुकी है। उन्होंने दो लाख मजदूरों को संगठित कर झील की सफाई करवाई और कीचड़ तथा कचरे का इस्तेमाल आज के "सू" व "पाए" बांधों के निर्माण के लिए किया। ये बांध झील के उत्तरी और दक्षिणी छोरों को जोड़ते हैं। उन्होंने इस के किनारों पर आड़ और विलो के पेड़ लगवाए। भविष्य में झील में गाद अवरोध से बचने के लिए कुछ स्थानों पर पत्थर के पगोडा खड़े करवाए, इन का मतलब था इन स्थानों पर जलीय फसलें उगाने की मनाही है। यही पगोडा "चन्द्रमा प्रतिबिंबक त्रिताल" के अग्रदूत बने।

    दक्षिणी सुडं राजवंश(1127-1279) द्वारा हाडंचओ को राजधानी बनाए जाने के बाद यह शहर धीरे धीरे चीन के सब से बड़े महानगर के रूप में विकसित होने लगा। जन-संख्या 12 लाख 40 हजार से भी अधिक हो गई। इसकी सड़कों और गलियों के दो तरफ दुकानें थीं और शानदार प्रासादों तथा बगीचेनुमा आवासों का भी निर्माण हुआ। हाडंचओ न केवल मदिरा निर्माण, नौका निर्माण और पंखा उद्योगों के लिए प्रसिद्ध था बल्कि रेशम उत्पादन और काष्ठ ब्लाक मुद्रण के क्षेत्र भी आगे-आगे रहा।

    य्वान राजवंश(1271-1368) द्वारा चीन की राजधानी को महानहर के उत्तरी पेइचिडं में स्थानांतरित कर दिए जाने के बाद भी हाडंचओ एक महत्वपूर्ण शहर बना रहा। बाद की शताब्दियों में हाडंचओ की नहरें और झीलें उपेक्षित रहीं। बस, 1505 और 1800 में केवल दो बार इनकी बड़ी सफाई की गई।

    हाडंचओ की जल-व्यवस्था को सुधारने के लिए अब एक महात्वाकांक्षी परियोजना शुरू की गई है। परियोजना के पूरे हो जाने के बाद महानहर और छ्येनथाडं नदी के बीच 6.7 किलोमीटर लम्बी नई नहर को खोदने का काम किया जा रहा है। शहर के दक्षिणी भाग में स्थित पहाड़ियों में ऐसी सुरंगें भी खोदी जा रही हैं जो छ्येनथाडं नदी के पानी के मार्ग को बदलकर पश्चिमी झील के लिए पानी की सप्लाई करेंगी। 3 लाख टन पानी की रोजाना सप्लाई करने वाले ये चैनल झील में साल में 12 बार नया पानी भरेंगे और झील का पानी मध्यवर्ती और पूर्वी नहरों में जाएगा और गन्दगी की सफाई करेगा। यह परियोजना छ्येनथाडं नदी को महानहर और हाडंचओ की जल-धाराओं से जोड़ेगी और शहर के जल संचार तथा पर्यावरण में काफी सुधार लाएगी।

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