चीन से स्वदेश लौटने के बाद चीन भारत मैत्री को बढ़ाने के लिए उन्होंने शान्तिनिकेतन में एक चीनी कालेज खोल दिया, जिस में विशेष रुप से चीनी भाषा और साहित्य का अध्ययन किया जाता था।
सन उन्नीस सौ सैंतीस में जापानी सैन्यवादियों ने चीन के खिलाफ़ आक्रमण कारी युद्ध छेड़ दिया। टैगोर डटकरे चीनी जनता के पक्ष में खड़े होकर जापानी फाशइस्जों के आक्रमण की कड़ी भर्त्सना की। उन्होंने जापानी कवि योने नोगिछी, जिस ने जापानी साम्राज्यवादियों के अपराधों की तीव्र निन्दा की औऱ स्पष्ट शब्दों में भविष्यवाणी की। चीन अजेय है उसकी जनता अपनी निष्ठा और अभूतपूर्व एकता से अपनी मातृभूमि के नये युग का सृजन कर रही है। नतीजे में जापान, अपने आक्रमण में कुल्हाड़ा उठाकर अपने ही पांव को तोड़ बैठेगा।
जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध से पहले टैगोर चीन की फिर यात्रा करने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन युद्ध की वजह से वह चीन की फिर यात्रा नहीं कर सके थे। उन्होंने कहा था कि किसी एक चीनी किसान से कहा था, अच्छा, जब आप लोगों को विजय प्राप्त होगी, तो विजय की खुशी मनाने मैं चीन जाऊंगा। अफसोस था कि सात अगस्त उन्नीस सौ इक्यावन में उनका देहान्त हो गया।
सन 1941 में अपनी भृत्यथ्य्या में रवीन्द्रनाथ ने भी चीनी जनता के प्रतिरोध युद्ध के प्रति गहरी चिंता व्यस्त की। हालांकि उन्हें पक्का विश्वास था कि अन्त में चीन की विजयी होगा।
सन 1956 में भूतपूर्व चीनी प्रधान मंत्री चो अन लेन ने विश्वभारती का दौरा किया। उन्होंने चीनी जनता की ओर से रवीन्द्रनाथ टैगोर के प्रति उदात आदर और गहरी याद व्यक्त की। उन्होंने कहा चीनी जनता टैगोर के प्रति गहरा भाव रखती है।
हम टैगोर के चीनी जनता के प्रति प्रेम भाव को कमी नहीं भूल सकेंगे। हम राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए चीनी जनता सारा किये गए कठोर संघर्ष के प्रति टैगोर के समर्थन को भी कभी नहीं भूल सकेंगे।