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भारत के महा कवि रनीन्द्रनाथ टैगोर चीनी जनता के लिए एक सुपरिचित विदेशी लेखक ही नहीं, बल्कि उस के घनिष्टतम मित्र भी थे।
सामग्रियों के अनुसार, उन की जिस रचना को सब से पहले चीनी पाठकों से अवगत कराया गया था, वह थी, सन 1915 के अक्टूबर में प्रकाशित《 नव युवकी 》नामक पत्रिका के दूसरे अंक में छपी चार कविताएं।
ये चार कविताएं,《नव युवकी》पत्रिका के संपादक श्री छन तुश्यो ने गीतांजलि के अंग्रेज़ी संस्करण में से उद्धरित की थी। इन चार कविताओं के बारे में अनुवादक श्री छन तुश्यो ने अपने एक संक्षिप्त परिचय में कहा, रवीन्द्रनाथ टैगोर वर्तमान भारत के कवि हैं, वे पूर्व की सभ्यता का पक्ष पोषण करने वाले हैं। वे नौबल शान्ति पुरस्कार के विजेता है, योरोप भर में वे प्रसिद्ध है औऱ भारतीय नौजवान, उन्हें अग्रदूत की संज्ञा दे कर उन का सम्मान करते हैं।
बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाएं, बड़ी संख्या में चीन में प्रकाशित की गयी और उनका चीनी पाठकों ने खूब स्वागत किया। इस के दो कारण थे, एक था, उन लेखकों में जिन का केंद्र साहित्यिक अनुसंधान प्रतिष्ठान था, रवीन्द्रनाथ टैगोर के साहित्यिक और दार्शनिक दृष्टिकोण के प्रति जबरदस्त प्रतिध्वनि पैदा हुई। जब कि दूसरा कारण था कि छरवीन्द्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1924 में चीन की यात्रा की। चीन आने से एक साल पहले, चीन में रवीन्द्रनाथ कवितानांग्रह उड़ते चिड़िया、the crescent moon、गीतांजलि、the gareners、बाशोम्ता तथा नाटक (पोस्ट आफिस और अन्य) आदि रचनाएं प्रकाशित की जा चुकी थी। इसी वर्ष (मासिक कहानी) नामक पत्रिका ने रवीन्द्रनाथ के चीन आने के स्वागत में रवीन्द्रनाथ टैगोर के विशेषांक प्रकाशित किये। इसी बीच, विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं में उनकी कविताएं, नाटक कहानियां तथा उनकी जीवनी या विचार संबंधी लेख व आलेख प्रकाशित करने की होड़ लगी।
सन् 1924 में रवीन्द्रनाथ टैगोर की चीन यात्रा के 50 दिनों में विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं में लगभग रोज-रोज उनकी यात्रा के बारे में रिपोर्ट या खबरें छामी जा रही। विभिन्न बड़े-बड़े अखबारों के अपने-अपने प्रमुख पृष्ठों में उनके द्वारा दिये गये व्याख्यान और फोटो छापे जा रहे। पेइचिंग की एक कला मंडली ने उनका नाटक चित्रा प्रस्तुत किया। वर्ष 1924 में चीन के कला साहित्य क्षेत्र में टैगोर की एक जबरदस्त लहर सी उठी। टैगोर का नाम घर-घर में जबानजद हो गया।
उनकी रचनाएं, हातों हाथ लिक गई। यहां तक कि आम विद्यार्थी, टैगोर की कुछ कविताएं भी रट सकते थे और इस बात पर वे गर्व महसूस करते थे। तीसरी और चौथी दशक के दौरान, चीन में टैगोर की असंख्य अनुदित रचनाएं प्रकाश में आयी थीं।