वर्ष 1949 में चीन लोक गणराज्य की स्थापना हुई। तब से उपन्यास गोरा नौकाडूबी बालुका कविता संग्रह, राजनीतिक कविताएं तथा नाटक संन्याली आदि टैगोर की रचनाओं का एक के बाद एक चीनी में अनुदित और प्रकाशित किया गया।
वर्ष 1961 में टैगोर की सौवीं जन्यंती के अवसर पर विश्व शान्ति परिषद ने उन्हें विश्व विमूतियां की नामसूची में शामिल कर दिया। चीनी संस्कृति मंत्रालय ने इस के उपलक्ष्य में एक शान्दार समारोह आयोजित किया। चीनी जन प्रकाशन गृह ने टैगोर की ग्रंथावली प्काशित की। इस ग्रंथावली की रचनाओं का एक तिहाई भाग का पहली बार चीन में परिचय दिया गया है। तब तक टैगोर की गलभग सभी रचनाओं को चीनी में अनुदित औऱ प्रकाशित किया जा चुका है। आंकड़े के अनुसार, विदेशी भाषाओं में अनुदित टैगोर की रचनाओं की संख्या सर्वाधिक हैं। पिछली शताब्दी में टैगोर के विचार औऱ रचनाओं के बारे में चीनी विद्वानों द्वारा लिखे गये लेख और टिपण्णियां अनगिनत थीं।
चीनी लेखकों पर टैगोर के विचार औऱ रचनाओं का बड़ा प्रभाव पड़ा था। स्वर्गीय सुप्रसिद्ध चीनी कवि श्री क्वो मोरुओ उनमें से एक थे। उन्होंने एक लेख में कहा, सब से पहले जो टैगोर के निकट आया है। शायद मैं ही हूं, कविता लिखने के बारे में अपने अनुभवों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में सब से पहले मैं टैगोर और उनके जैसे लोगों से प्रभावित हो गया हूं। चीनी कवि क्वो मोरुओ ने टैगोर की कविताओं का उच्च मूल्यांकन किया। उन्होंने टैगोर वाशइन्टन टोर्स्टाय औऱ लेनिन आदि क्रांतिकारियों व साहित्यकारों को एख ही शअरेणी में गिन कर उनकी प्रशंसा की। यहां तक कि उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन के प्रारम्भिक दौर को टैगोर रुप की संज्ञा दी।
सन 1919 में चार मई आन्दोलन के आसपास, क्वो मोरुओ ने देश भक्ति, व्यक्तिगत मुक्ति और उस विचार को जिसे उन्होंने टकौर से ग्रहन किया था। एक में मिलाकर तत्काल की वस्तु स्थिति का विरोध करने और सामान्तवादी जंजिरों का सब से महान कविता संग्रह देवी लिखा, जिसने चीन की कविताओं के एक बिल्कुल नये युग का आरम्भ किया।
पिन शिन चीन की अन्य एक सुप्रसिद्ध लेखिका थी, जिस पर टैगोर का बड़ा असर पड़ा था। सन उन्नीस सौ इक्यासी में उन्होंने गीतांजलि के चीनी में अनुदित संस्करण की भूमिका में याद ताज़ा करते हुए कहा, टैगोर , मेरी युवावस्था में प्रिय तम विदेशी कवि थे। वर्ष उन्नीस सौ बीस 1920 में जब पिन शिन एक छात्रा थी, उन्होंने भारतीय कवि टैगोर के नाम नामक एक निबंध लिखा था। निबंध में टैगोर के प्रति अपना असीम श्रद्धा और सम्मान व्यक्त किया गया।