बाद में डाक्टर कोटनीस को युद्ध मैदान के एक अस्पताल के प्रधान के पद पर नियुक्त किया गया। अंतरराष्ट्रीय शान्ति अस्पताल नाम का यह अस्पताल घायल व बीमार जवानों तथा आम ग्रामवासियों के उपचार का जिम्मेदार था।
"9 दिसम्बर 1942 में मिरगी के क्रूर दौरे ने डाक्टर कोटनीस के प्राण निगल लिये। यह खबर सुन कर चीनी लोग दुख के अथाह सागर में डूब गये। उन के सहकर्मी, पत्नी, सैनिक और कमांडर डाक्टर कोटनीस की मृत्यु शट्या और शोक सभाओं में फूट फूट कर रोते रहे। अध्यक्ष माओ त्से तुंग ने कहा, डाक्टर कोटनीस की मृत्यु से हमारी सेना का एक सुयोग्य मददगार और हमारे राष्ट्र का एक मित्र खो गया है। हम डाक्टर कोटनीस की अंतरराष्ट्रवादी भावना को कभी नहीं भुला सकेंगे।
अखिल भारत कोटनीस स्मृति कमेटी के महा सचिव डेनियल रतीफी ने भारतीय मेडिकल मिशन की एतिहासिक भूमिका का मूल्यांकन करते हुए कहा, सर्व प्रथम उस से साम्राज्यवाद विरोधी कार्य में उत्पीड़ित जनता की एकता का महत्वपूर्ण राजनीतिक महत्व अभिव्यक्त हुआ है।"
दूसरा, इस से यह सिद्ध हुआ है कि भारत औऱ चीन ने इस कार्य के लिए व्यापक जन समुदाय को गोलबन्द किया।
तीसरा, इस से भविष्य में इस कार्य में निहित भारी शक्ति दिखायी गई।