इन्डिया मेडिकल मिशन की स्थापना के बाद डाक्टर अटल को इस मिशन के नेता के पद पर न्युक्त किया गया। एक सितम्बर 1938 में मेडिकल मिशन, यानी जहाज द्वारा भारत से चीन के लिए रवाना हो गया।
"मेडिकल मिशन के कुल पांच सदस्य थे, वे थे, डाक्टर मदन मोहन अटल, डाक्टर एम आर चोलकर , डाक्टर देवेश मूकर्जी, डाक्टर द्वारकानाथ शान्ताराम कोटनीस औऱ डाक्टर विजय कुमार बसु।"
द्वारकानाथ शान्ताराम कोटनीस ने स्वच्छापूर्वक इस मेडिकल मिश में भाग लिया। निस्संदेह इस से उन के पिता के लिए आर्थिक बोझ में इजाफा हो जाएगा। मगर उन्होंने अपने बेटे को चीन जाने से नहीं रोका। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सुभाष चन्द्र बोस ने कलकत्ता की भव्य बिदाई सभा की अध्यक्षता की औऱ मिशन के सदस्यों के बम्बई रवाना होते वक्त बिदाई देने के लिए हावड़ा स्टेशन स्वयं पहुंचे। भारतीय राष्ठ्रीय कांग्रेस की सर्वप्रिय नेताओं में से एक श्रीमति सरोजिनी नायडू 9 जनवरी 1938 को जिन्ना हाल में एक विशाल सभा में भाषण देते हुए कहा, मेडिकल मिशन भारतीय जनता के मैत्री दूत है। हम आप को युद्धपीड़ित चीनी जनता के पास सदिच्छआ औऱ सदभावना पहुंचा रहे हैं। आप लोग एक खतरानाक मिश पूरा करने जा रहे हैं। आप में से एकाघ हो सकता है, स्वदेश न भी लौट सकें। कितनी सच निकली उन की भविष्यवाणी, एक सचमुच वापस न आया वह था डाक्टर कोटनीस।
"हांगकांग पहुंचते वक्त, मेडिकल मिशन के नेता डाक्टर अटल ने अपने एक वक्तव्य में कहा, इतिहास ने एक बार फिर पूर्व के दो महान राष्ठ्र चीन औऱ भारत को एक सूत्र में बांध दिया है। चाहे अतीत में हो या आज हमारे दो देशों के बीच अनेक समानताएं मौजूद हैं, इसलिए, हमें और घनिष्ट रुप से एकजुट हो जाना चाहिए। आइये, हम एक दूसरे की सहायता करे।"