दक्षिण पश्चिमी चीन के स्छवान प्रांत के केन त्सी तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर में चिनशा नदी के तट पर एक ऐसा छोटा गांव है। गांव के पास पहाड है,जिस पर 800 साल पुराना मशहूर तिब्बती बौद्ध धर्म का ग थुओ मठ है ।गांव में अकसर टनटन की आवाज सुनाई देती है । यह गांव पैइयू काउंटी के ह प कस्बे का पू मा गांव है ,जो तिब्बती परंपरागत शिल्पकला से मशहूर है। पू मा गांव के किनारे पर एक तीन मंजिल वाली लकडी से बनी इमारत है। यहां ह प अल्पसंख्यक शिल्पकला ट्रेनिंग सेंटर स्थित है ,जो राष्ट्रीय स्तर का गैरभौतिक विरासत प्रशिक्षण केंद्र भी है ।
इस तीन मंजिली इमारत के नजदीक पहुंचने के साथ-साथ टनटन की आवाज सुनने को मिलती है। संकरी सीढियों से पहली मंजिल पर चढकर हम धातु शिल्पकला ट्रेनिंग सेंटर आये ।यहां 6 या 7 धातु शिल्पकार और उनके छात्र बैठे हुए अपने काम में लगे हैं ।
यहां की धातु शिल्पकला के मुख्य कच्चे पदार्थ सोना ,चांदी और कांसा हैं और इनसे हथियार ,बौद्ध धर्म से जुड़ी वस्तुएं और रोजमर्रा के जीवन में उपयुक्त चीजें बनाई जाती हैं। यहां शिल्पकला का इतिहास लगभग 1300 साल पुराना है । कहा जाता है कि यहां तिब्बती के महावीर राजा गेसार की सेना के लिए हथियार बनाने का काम होता था। ह प धातु शिल्पकला रचना बनाने की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है ,जिसमें कच्चे पदार्थ चुनना ,चमक बिखेरना और रंगना समेत आदि होता है। हर प्रकिया में तिब्बती संस्कृति की विशेषता सामने आती है। यहां बने चाकू बड़े मशहूर होते हैं। अलग-अलग तरह के चाकू होते हैं। और म्यान भी सुंदर डिजाइन में सजी होती है। धार की तेज और डिजाइन की सुंदरता से जुडने वाला चाकू तिब्बत के चाकुओं में विशिष्ठ है ,जो इस्तेमाल के अलावा संग्रह करने के योग्य भी हैं।