भारत-चीन संबंध में एक और महत्वपूर्ण कदम----भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चीन यात्रा
(डॉ. विकास कुमार सिंह:पेइचिंग विश्वविद्यालय)
अक्तूबर 22 तारीख से 24 तारीख तक भारतीय प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह चीनी प्रधानमंत्री ली ख छियांग के निमंत्रण पर दो दिनों की औपचारिक यात्रा पर चीन में होंगे। डा. सिंह की यह यात्रा उनके कार्यकाल की शायद अंतिम चीन यात्रा होगी। यात्रा के दौरान, डा. सिंह चीनी प्रधानमंत्री ली खछ्यांग, राष्ट्रपति शी चिनफिंग और पार्टी नेता चांग दच्यांग से मुलाकात करेंगे। इस परिप्रेक्ष्य में डा. सिंह चाहेंगे की चीन के साथ भारतीय रिश्ते को और घनिष्ठ बनाया जाए। यह यात्रा इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि, यह पहला मौका है जब भारत और चीन के प्रधानमंत्री एक साल के भीतर ही दोनों एक-दूसरे देशों की यात्रा कर रहे हैं। वर्ष 1954 में पहली बार भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीनी प्रधानमंत्री चोअ अन लाय ने एक साल के भीतर ही एक दूसरे देश की यात्रा की थी और दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण समझौता भी किया गया था।
इसी साल के मई माह में चीनी प्रधानमंत्री ली खछ्यांग की भारत यात्रा से पहले भारत और चीन सीमा क्षेत्र पर सरगर्मी बढ़ गई थी जिसके फलस्वरूप दुनिया भर में चीन और भारत के संबंध को लेकर काफी चर्चा चल रही थी। लेकिन, जिस तरह से चीन और भारत ने इस समस्या को सुलझाया है उससे पता चलता है कि दोनों ही देशों के संबंध में परिपक्वता आयी है। हालांकि, सीमा संबंधी मामले को सुलझाने के लिए दोनों ही देशों ने एक अलग कमिटी बनायी हुई है जो हरेक साल मिलते हैं और निश्चित वार्ता भी होती है।
सीमा संबंधी विवाद को सुलझाने में उठाए गए कदमों के साथ-साथ, दोनों ही देशों ने आर्थिक संबंधों पर ज्यादा जोर दिया है। वर्ष 2008 में चीन, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक देश बन चुका था। दोनों देशों के बीच कुल 41 बिलियन अमरिकी डॉलर का व्यापार हुआ था जोकि वर्ष 2012 के अंत तक लगभग 61 बिलियन अमरिकी डॉलर पहुंच गया था। दोनों देशों नें वर्ष 2015 तक यह आंकड़ां 100 बिलियन अमरिकी डॉलर पहुंचाने का अनुमान लगाया है। व्यापार के क्षेत्र में, भारत की चिंता हमेशा से व्यापार को बराबर करने की रही है। वर्ष 2011 के अंत तक चीन और भारत के बीच 21बिलियन अमरिकी डॉलर का व्यापारिक अंतर था। इस अंतर को पाटने के लिए भारतीय सरकार लगातार कोशिश कर रही है और चीन सरकार को भारतीय कंपनियों को चीन में निवेश करने के लिए सुविधा मुहैया कराने के लिए भी प्रयासरत है। दोनों देशों के बीच सुरक्षा मसले को देखते हुए व्यापार के क्षेत्र में कई समझौते हुए हैं जिससे दोनों देशों के व्यापार में लगातार वृद्धि जारी है।
भारतीय समाचार पत्रों में, डॉ. सिंह की इस यात्रा को चीन-भारत सीमा विवाद को भी हल करने में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। चीन-भारत सीमा विवाद किसी जल्दबाजी में नहीं सुलझाया जा सकता है। लेकिन सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए दोनों देश प्रयासरत हैं और इस दिशा में दोनों देशों के बीच कई समझौते भी हो चुके हैं। हाल की कुछ घटनाओं पर नजर डाला जाए तो इससे आशा की जा सकती है कि भविष्य में चीन और भारत, सीमा पर किसी भी गतिविधि को शांतिपूर्वक ढ़ंग से सुलझाने में कामयाब होंगे और यही एक उपाय भी है जिससे की दोंनों ही देशों में शांति बनी रह सकती है।
आज चीन विश्व का दूसरा सबसे बड़ा आर्थिक शक्ति बन चुका है। भारत को इस क्षेत्र में चीन से बहुत कुछ सीखना है। चीनी कंपनियां भारत में निवेश करने की इच्छुक हैं और चीनी कंपनियों के द्वारा निवेश में लगातार वृद्धि भी हो रही है। लेकिन चीनी कंपनियों के द्वारा हमेशा से भारतीय वीजा मिलने में परेशानी बतायी जाती रही है। इस दृष्टिकोण से चीन सरकार की कोशिश रहेगी कि भारत के साथ वीजा प्रक्रिया को सरल बनाया जाए। लेकिन वहीं कुछ भारतीय अनुसंधान संस्थान वीजा प्रक्रिया में ढ़ील देने को भारतीय सुरक्षा के साथ जोड़ रहे हैं। तो इस परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है कि चीन सरकार की कोशिश कहां तक सफल होती है।
वहीं अंतरराष्ट्रीय मसलों पर भी भारत और चीन ने एक-दूसरे का साथ दिया है। चाहे वह आतंकवाद के खिलाफ हो या जलवायु परिवर्तन तथा व्यापार संरक्षणवाद। भारत और चीन ने हमेशा ही इन मुद्दों पर एक-दूसरे का साथ दिया है। भविष्य में भी, इन मुद्दों पर दोनों देशों के बीच सहयोग की संभावना निश्चित दिखती है। इस साल के मई माह में चीनी प्रधानमंत्री ली ख छ्यांग ने भारतीय दौरा के समय, दोनों देशों के बीच हुए समझौते में, दोनों ही देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व व्यापार संगठन आदी अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक दूसरे की सहायता करने पर भी जोर दिया है।
हाल में, चीन और भारत के बीच विभिन्न क्षेत्रों में आवाजाही और प्रगाढ़ हुआ है। उच्च-स्तरीय वार्ता में जहां वांछित प्रगति हुई हैं वहीं सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी मनोवांछित प्रगति प्राप्त हुई है। वर्तमान में, चीन, भारतीय छात्रों के लिए मुख्य देशों में से एक बन गया है। चीन में भारतीय छात्रों की संख्या दस हजार से भी उपर है। यहां पर ज्यादातर छात्र मेडिसिन की पढ़ाई कर रहे हैं वहीं दूसरे क्षेत्रों में भी भारतीय छात्रों की उपस्थिति दर्ज की गई है। खासकर, चीन और भारत के आर्थिक रिश्तों में तेजी से बढ़ोतरी करने के कारण, भारत में छात्रों का चीनी भाषा के प्रति रूझान बढ़ गया है। वर्तमान में, भारत में पंद्रह से भी ज्यादा विश्वविद्यालयों में चीनी भाषा पढ़ाई जा रही है वहीं चीन में भी लगभग दस विश्वविद्यालयों में हिंदी का पठन-पाठन चल रहा है। भारत जानेवाले चीनी पर्यटकों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है, वहीं पर चीन आने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। सांस्कृतिक क्षेत्रों में आवाजाही के फलस्वरूप दोनों देशों को एक-दूसरे को समझनें में भी मदद मिल रही है। दोनों देशों का एक दूसरे के प्रति जो नजरिया था उसमें भी बदलाव दिख रहा है। तो कहा जा सकता है कि भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यह चीन यात्रा निश्चित रूप से सफल होगी जोकि दोनों देशों के संबंध को और प्रगाढ़ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि, भारत और चीन के रिश्तों में परिपक्वता आयी है। दोनों देशों के संबंध में वांछित सुधार हुआ है और भविष्य में भी शांतिपूर्ण संबंध को बनाए रखने के लिए भारत और चीन प्रयासरत रहेंगे। भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण रिश्ता न केवल एशिया के उत्थान के लिए आवश्यक माना जा रहा है बल्कि विश्व शांति बनाए रखने में भी भारत-चीन संबंध निर्णायक साबित होगा।