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मेरी चीनी प्रेम की सच्ची कहानी: रविशंकर बसु
2013-09-05 09:16:46

 

यह कोई परियों की कहानी नहीं हैं, यह भारत की पश्चिम बंगाल की एक छोटी सी गाँव में रहने वाले एक बेरोजगार आदमी का 27 वर्ष का स्वप्न साकार होने की सच कहानी है । 26 नवंबर, 2012, सोमबार की उस सुहानी सुबह को में किस तरह भूल सकता हूँ।चीन भ्रमण मेरे लिए दूर का एक सपना था, लेकिन पिछले साल चायना रेडियो इंटरनैशनल (सीआरआई) के हिन्दी विभाग की द्वारा आयोजित "तिब्बती बौद्धधर्म के प्रमुख मठ" पर सवाल-जवाब प्रतियोगिता की दौलत से विशेष विजेता की रूप में उस दिन सुबह साढ़े 9 बजे चीन की पवित्र भूमि पर कदम रखने का मुझे सुअवसर मिला ।

चीनी राजधानी पेइचिंग में मैं छह दिन ठहरा। चीन जैसे महाकाय देश को छह दिन के संक्षिप्त प्रवास में समझ लेना और कोई निर्णायक राय देना कठिन ही नहीं, असंभव है। फिर भी चीन के बारे में लंबे समय से जितना कुछ पढ़ा और सीआरआई के हिन्दी रेडियो कार्यक्रम में सुना था उसके आधार पर अपनी पहली चीन यात्रा के दौरान जो कुछ भी देखा उसकी कुछ अनुभव सभी के साथ साझा करने में शायद कोई हर्ज नहीं है। मैंने पेइचिंग यात्रा के दौरान सीआरआई के हिन्दी विभाग की डायरेक्टर सुश्री यांग यीफंग एबं हिन्दी विभाग की सभी स्टाफ के साथ मुलाकात और बातचीत करने के अलावा चीनी राजधानी पेइचिंग एबं वहां के खान पान की परंपरा, लोगों के स्वभाव, संस्कृति, ऐतिहासिक स्थलों और वहां की जलवायु, बास्तुकला और आधुनिक जीवन ढंग के बारे में जो कुछ प्रत्यक्ष किया था, उन उपलब्धियों को इस लेख के द्वारा चीन के प्रति मेरा गहरा प्रेम व्यक्त कर रहा हूँ।

26 नवंबर, 2012, सोमबार पेइचिंग इन्टरनेशनल एयर पोर्ट से सुबह साढ़े 9 बजे बाहर आने के साथ साथ एक अजनबी सा ठंडी हावा ने मुझे स्वागत किया और पेइचिंग पहुंचते ही महसूस किया: "ओ माइ गॉड मैं चाइना में हूं!" पेइचिंग पहुँचने पर मुझे वंहा की कड़ाके सर्दी का एहसास हो गया । हालांकि मौसम बहुत ठंडी थी। और भारत की पश्चिम बंगाल की सर्दी के साथ बिलकुल अलग है;इतना अलग है जो बहुत सारे सर्दी के मौसम याद आ जाते है ।सीआरआई हिंदी विभाग की कर्मचारी रमेशजी मुझे बताया की अभी पेइचिंग में कभी शून्य, कभी शून्य से थोड़े ऊपर के तापमान के बीच बादल भी जब-तब बरस कर मौसम को और ठंडा कर रहे थे। रमेशजी मुझे बताया की मेरे पेइचिंग पहुंचने के एक दिन पहले तक वहां बर्फ भी गिर रही थी।

मेरा चीन का छह दिवसीय प्रवास वास्तव में अद्वितीय एवं अविस्मरणीय था जो की मैं जिंदगीभर याद रखूँगा । चीन यात्रा के दौरान मैं पेइचिंग में रमेशजी, लिलीजी एबं चंद्रिमाजी के साथ महान लंबी दीवार, थ्यैन अन मन चौक, प्राचीन शाही प्रसाद, योंग ह गोंग नामक लामा मंदिर, पेइचिंग विश्वविद्यालय एबं चीनी राष्ट्रीय संग्रहालय आदि दर्शनीय स्थलों की सैर करने का मौका मिला । प्राचीनतम चीनी संस्कृति बहुत समृद्ध है।चीन की महान दीवार का दौरा करना मुझे सुखद अनुभव का एहसास कराता हैं। बचपन में मैं जब प्राइमरी स्कूल का छात्र था तब से लंबी दीवार को देखने की इच्छा था । चीन की यात्रा के दौरान, जो यात्री इस महान दीवार पर नहीं चढ़ा, उसकी यात्रा अधूरी मानी जाती है। अंतरिक्ष से पृथ्वी की तरफ देखने पर जल के अलावा सिर्फ चीन की विशाल दीवार ही साफ दिखाई देती है। 27 नंवबर, 2012 मंगलवार को सुबह 9 बजे मैं रमेशजी का साथ विश्वविख्यात लंबी दीवार का घूमने गए एबं पृथ्वी पर मानव द्वारा बनाये गए इस महान निर्माण को देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। चीन की यह लंबी दीवार जितनी बड़ी है, उतनी ही पुरानी इसकी कहानी भी है। इस दीवार का मूल नाम है "वान ली छांग छंग" जिसका शाब्दिक अर्थ है-चीन की महान दीवार । विश्व प्रसिद्ध इस चीनी लम्बी दीवार का निर्माण चीन के प्रथम सामंत सम्राट छीन शी हुआंग के शासन काल में किया गया था और मिंग राजवंश के काल में इस का पुनर्निर्माण किया गया, जो लंबाई लगभग 6700 किलोमिटर है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार छिन राजवंश से मिंग राजवंश तक कुल 20 से ज्यादा राजवंशों ने इस का निर्माण किया है। लंबी दिवार की ऊंचाई व चौड़ाई भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न है। दीवार के ऊपर आम तौर पर चार घोड़े एक साथ चल सकते थे, इसलिये इस की चौड़ाई लगभग चार या पांच मीटर है। ताकि युद्ध के समय अनाज व हथियार आदि सामान भेजे जा सकते थे। दीवार कि दोनों किनारों पर लोहे की रेलिंग लगी है और उसका सहारा लेकर मैं महान दीवार की सबसे ऊंचाई वाली जगह पर भी चले गए। महान दीवार से आप अपनी नज़र जहां भी दौड़ाएंगे आपको हर जगह हरे भरे पहाड़ दिखाई देंगे। साथ ही आपको दूर तक महान दीवार भी दिखाई देगी। मेरे लिए यह बड़ी ख़ुशी की बात है, मैं चीन की लम्बी दीवार पर चढ़ सका और यहाँ आकर मुझे सुखद सा अनुभव हुआ। लम्बी दीवार के ऊपर सीडियां में मैं काफी "Lovers' Lock" बाँध कर रहते हुए देखा। चीन की प्रेमिक-प्रेमिकायों ने विश्वास करता है की दीवार के ऊपर "Lovers' Lock" बांधने से उनकी प्रेम ओर भी गहरा और दीर्घायु होता है।मेरे लिए यह बड़ी ख़ुशी की बात है, इतिहास की पन्ने पर पढ़ा हुआ चीन की महान दीवार की अंतिम तक चढ़ सका। यह अनुभव हमेशा मेरे जहन में ताज़ा रहेगा।

मेरी चीन यात्रा के तीसरे दिन मैं रमेशजी एबं लिलीजी के साथ ऐतिहासिक थ्यैन अन मन चौक एबं प्राचीन शाही प्रासाद दर्शन के लिए गया। उन दोनों के साथ छ्यैन मन सड़क से जाते हुए हांव फल से बनी एक बेहद स्वादिस्ट मिठाई थांग हु लू की स्वाद लिया और आगे चलते हुए ऐतिहासिक थ्यैन अन मन चौक पहुँच गए। विश्व का सब से विशाल चौक थ्येन आन मन चौक वाकई बहुत ही सुन्दर है, अत्यन्त सुन्दर है। मैं गर्व के साथ बोल सकता हूँ की मैं इतिहास की इस अमर जगह पर आ सका एबं वहां पर मैंने चीन का राष्ट्रीय झंडा लेकर फोटो भी खिंच्वाया । मैं सभी लोगों को यह कहना चाहता हूं कि अगर मौका मिले , तो आप ज़रूर यहां आकर देखिये, और चीनी आम नागरिकों की विविधता, सामाजिक विकास ,राष्ट्रीय प्रग्रति और आधुनिक शहरी जीवन शक्ति की सुन्दरता को महसूस कीजिये।

थ्यैन अन मन चौक के बीचोबीच स्थित विश्वविख्यात प्राचीन शाही प्रासाद यानि फॉरबिडन सिटी ऐसा ऐतिहासिक स्थल है जहां आश्चर्यो तथा रहस्यों की एक नई दुनिया आपसे चंद कदमों के फासले पर खड़ी होकर आपको स्वागत करता है। प्राचीन शाही प्रासाद इतना बड़ा इलाका है कि यहां पर हर रोज़ लाख लाख देशी विदेशी पर्यटक घूमने आते हैं। इस शाही प्रासाद चीन के सुरक्षित प्राचीन राज महलों में सब से शानदार ही नहीं, बल्कि वर्तमान विश्व में सुरक्षित सब से बड़े पैमानेवाला काष्ठ वास्तुसमूह भी है। इसका निर्माण 1407 में किया गया था। प्राचीन शाही प्रासाद की चारों ओर 10 मीटर से ज़्यादा उंची दीवार खड़ी है और दीवार के बाहर 50 मीटर चौड़ी नदी चारों ओर प्रासाद की रक्षा करती है। वर्ष 1911 में चीन के अंतिम राजवंश छिंग की समाप्ति तक इस शाही प्रासाद में मिंग और छिंग राजतंत्रों के कुल 24 सम्राटों ने 600 वर्षो तक निवास किया और शासन करते रहे थे। चीनी संस्कृति में ड्रेगन सम्राट का प्रतीक माना जाता था और सम्राट को ड्रेगन का अवतार कहा जाता था, इस लिए इस महल की दीवारें और लकड़ी के दरवाज़ों पर विभिन्न रंगों से ड्रेगन के चित्र और मुर्तियाँ बना हुआ है जो देखने में काफी आकर्षक लगता है। इस शाही प्रासाद में, अनुमान है कि कुल 9,980 महल और कमरे बने हुए हैं जिनमें राजा और उसकी ढेर सारी रानियां रहा करती थीं। 1987 में प्राचीन शाही प्रासाद यानि फॉरबिडन सिटी को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।देशी-विदेशी पर्यटकों में एक ऐसी कहावत है कि जिसने प्राचीन शाही प्रासाद के दर्शन नहीं किये तो उसने चीन की संस्कृति और इतिहास को सही रूप में नहीं देखा। मेरे लिए पेइचिंग के शाही प्रासाद को देखना एक अद्वितीय अनुभव था। मैंने चीन के समृद्ध अतीत की भव्यता और गरिमा को देखा, इसे देखने के बाद मुझे लगता है मैं प्राचीन समय में वापस चला गया हूं।

खान-पिन में माहिर लोग बोलते है की यदि आप अच्छा खाना खाने चाहते हैं, तो चीन जाना होगा। इसी बात से यह प्रमाणित होता है चीन की खाना की ख्याति आज विश्व में सुप्रसिद्ध है।चीन की रंधन प्रकरण पुरे विश्व की स्वादिस्ट खाना खाने वाले लोगों की स्वर्ग जैसा स्थान है।चीन में हजारो तरह की खाना है। हर प्रदेश की अलग अलग की स्वादिस्ट खाना। मुख्य रूप से चीनी पाक कला शैली 4 भागों में है। ये हैं -(1) शानतुंड, (2) स्छ्वान, (3) चांगसू और (4) क्वांगतोंग पाक-शैली। इस चार प्रमुख पाक-कलाओं को आठ उप -वर्गों में विभाजित किया गया। ये हैं - 1) शानतुंड, 2) हू नान, 3) स्छ्वान, 4) फू चैन, 5) क्वांगतुंग, 6) चांग सू, 7) च चांग और 8) आन हुई रंधन शैली। ये आठ प्रमुख चीनी पाक कला पकाने की विधि कहा जाता है। खाना पकाने के आठ प्रमुख चीनी शैली किसी व्यक्ति रुप से तुलना किया जाये तो-चांग सू एबं च चांग खाना दक्षिणी चीन के खूबसूरत सुंदरी लड़की की तरह,शानतुंड एबं आनहुई पाककला उत्तरी चीन की सीधा सादा लड़के की तरह, क्वांगतुंग एबं फू चैन खाना रोमांटिक एबं राजपुत्र की तरह, स्छ्वान एबं हू नान के खाना एक सुयोग्य व्यक्ति जैसा औजपूर्ण है।

मैं किसी भी खाना पकाने या भोजन के विशेषज्ञ नहीं हूँ। बंगाली डिश में से दाल भात और आलू पोस्टो,आलू भाजा,पस्तोबोरा,पोटलर डोलना,मसाला आलू दम खाने वाला एक साधारण बंगाली हूँ। सभी मौसम में दाल भात ही मेरा भरोसा है। मेरी पत्नी सुदेष्णा ने मुझे हमेसा लहसुन, चिकन और सब्जी मिलाकर चाउमिन बनाकर खिलाते है।वह क्या स्वाद का एहसास है ! आज "हिंदी-चीनी भाई भाई" यह स्लोगन हमारे खाने की डिश में भी प्रतीत होता है। मेरी चीन यात्रा से चीनी लोगों की खाने-पिने के साथ पश्चिम बंगाल और बांगलादेश के खान-पिन की भिन्नता दिखाई दिया। चीन के खाने का रेस्तरों सुबह 5 बजे शुरू हो जाते है और सुबह 8 बजे की अन्दर ही बंद हो जाते है। दोपहर के खाने के 10.30 बजे से 12.30 बजे तक दोकान खुले रहते है। मैंने देखा की शाम को पेइचिंग के रेस्तरों ने 5 बजे खुलते है और शाम को 7 बजे के अन्दर बंद हो जाते है। यह चाइनीज लोगों का अभ्यास है की दोपहर एक बजे में लंच खाना और शाम 7 बजे के अन्दर डिनर लेना। इसलिए सीआरआई हिंदी विभाग के दोस्तों के साथ मुझे भी 6.30 बजे की अन्दर ही डिनर करने पड़ता था। चिंता क्या जाता है? मेरा सोने का समय है रात को 11 से 12 के अंदर। रात को भूख लग जाते थे, तब मैं अपनी बैग से बिस्कुट निकलकर खाते खाते सोचते थे की सभी चाइनावासी अभी नींद में स्वप्नों में बिभोर है !

शाम को मैं सीआरआई के एक स्टार हॉटल में डिनर करते थे। होटल की परिवेश काफी घरेलु है। वह होटल बहुत ही साफ सुथरा हुआ करता था । उसका एरिया काफी बड़ा था । यहां तक की इतना बड़ा ,की मम्मी पापा के साथ आये हुए छोटे छोटे बच्चे भी दिल की ख़ुशी में यहां वहां दौड़ रहे थे ,खेल रहे थे तथा खा रहे थे । इस खास या महंगे रेस्तरां में चीन की हर प्रांत की खाना परोसा जाता है । हां स्वाद जरूर भारत जैसा नहीं होता। मैंने देखा है की अधिकांश चीनी लोग अपने खाना में पोर्क और बीफ ज्यादा पसंद करते है । शायद आम भारतीयों इस तरह के भोजन नहीं खाते ,विशेषकर हिंदू या फिर मुसलमान । तो इसलिए रमेशजी, लिलीजी एबं चंद्रिमाजी मुझे सिर्फ वही खाने के लिए दे रहे थे जिसमे बीफ या पोर्क नहीं हुआ करते थे । मैंने यह भी देखा है की चीनवासियों रेस्तारां में काफी समय लेकर खाते है । वह लोग खाने के बीच बाते नहीं करते परन्तु चीनी लोग बाते करने के बीच खाते है । उस समय मैंने एक चीज लक्ष्य किया की चीनी लोग काफी गरमी खाना खाते है साथ ही सूप बहुत खाते है। और मैंने यह भी देखा है की काफी चीनी लोग अपने परिवारों के साथ बियर, व्हिस्की या दुसरे पानीय पीते है। समझ में आया की चीन में शराब एक आम बात है और परिवार की संस्कृति में मदिरा की चल है। एकदिन इसी होटल में सीआरआई हिंदी विभाग के चंद्रिमाजी और लिलीजी "पेइचिंग रोस्ट डक" डिश का ऑफर किया। मैं जानता था की पेइचिंग में आकर अगर किसी ने "पेइचिंग रॉस्ट डक" का मजा नहीं लिया तो उनका पेईचिंग आना बेकार है। इस स्वादिष्ट खाना का इतिहास 160 साल से भी अधिक लम्बा है। लेकिन हिंदू विद्या देवी मां सरस्वती की वाहन हंस होने के कारन मैंने इसका स्वाद नहीं लिया। मेरे सामने बैठकर जब चंद्रिमाजी, लिलीजी, रमेशजी तुकरे तुकरे करके "पेइचिंग रॉस्ट डक" का मजा ले रहा था और तब मैं पेइचिंग की ठंडे हवा में हॉट पानी पि रहे थे। सीआरआई की श्रीलंका के एक महिला रिपोर्टर ने हँसती हुई मुझे बोली - "Mr. Basu,you're missing the real taste of China." मैं तब उनको बोला की भारत तथा बंगलादेश की खान-पान की संस्कृति धर्म से काफी नियंत्रित है। मुझे अगर फिर चीन आने का मौका मिलता है तो साथ में जरुर गंगा नदी के पानी ले आऊंगा और "पेइचिंग रॉस्ट डक" का स्वाद मीठे सोयाबीन सॉस,ककड़ी व हरे चीनी प्याज के साथ लूँगा। मैं दुसरे श्रोता दोस्तों को बोलना चाहूँगा की अगर आपलोगों को "पेइचिंग रॉस्ट डक" का स्वाद लेने का मौका मिले तो कभी मेरे जैसा मिस मत कीजिएगा।

चीन में रहते समय, दो शाम मैंने रमेशजी के साथ गुज़ारा था । हम दोनों पैदल पेइचिंग के सैर करने हेतु निकले थे । उद्देश्य था, शाम की रोशनी में पेइचिंग की सुंदरता को देखना तथा परखना । चारों ओर रोशनी ही रोशनी थी । मानों रोशनी की मेला लगी हो । शहर की जुलूस को देखकर मेरी आंखे झलमला उठी थी । सीआरआई बिल्डिंग के पास प्रधान सड़क कुछ हाइवे जैसा है । चारों ओर ऊँची ऊँची इमारतें, बड़ी बड़ी हाई टेक कंपनियों के दफ्तर, सुंदर सुंदर दुकान और होटल, रेस्तरां थी। सड़क पर दौड़ते हुए तरह तरह की मूल्यवान गाड़ियाँ, मोटरयान और उसी के साथ साईकिल भी थी । लेकिन इतनी सारी गाड़ियां होते हुए भी सड़क पर कहीं ट्रैफिक जाम नज़र नहीं आया । मैं जानता था, पेइचिंग चीन का एक घनी आबादी वाला धनी महानगर है , परन्तु सड़कों पर ऐसी कोई भीड़ भाड़ नहीं थी, छुट्टी का दिन न होने पर भी सड़कों पर बहुत कम यातायात था। कोलकाता के ट्रेफिक जामों से त्रसित होने के बाद यह मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य था। सड़कें साफ सुथरी थीं। कहीं पर भी कोई कूड़ा करकट नजर नहीं आ रहा था। मुझे कोई भी शक्स को मैले कुचैले कपड़े पहने नहीं दिखाई दिया, न ही कोई भिखारी या झुग्गी झोपड़ी दिखाई पड़ी । मुझे आश्चर्य हुआ किसी भी व्यक्ति को मैंने सड़क दौड़कर पार करते नहीं देखा। मैंने किसी भी चीनी व्यक्ति को सड़क पर सिगरेट के टुकड़े,गंदी पोलिथीन इधर उधर फेकते हुए नहीं देखा। सड़क , दुकान सभी जगह "लाल" रोशनी थी । जितने दूर नज़र जाये ऊँची अट्टालिकाओं से छोटी - बड़ी दुकाने, शॉपिंग मॉल्स नज़र आती रही। सड़क के पास ऊँची इमारतों पर लगी चीनी भाषा में असंख्य विज्ञापन और कमर्शियल विज्ञापनों की होर्डिंग थी। पेइचिंग के सड़क के दोनों तरफ बहुत सारे स्ट्रीट फ़ूड की स्टाल्स थे । यहाँ चीनी परंपरागत खाना डंपलिंग ,हॉट पॉट, चाओत्ज़, तो फ्यू, छाव म्यन, चायनीज चाय, मिठाईयां, चिकन, ड्राई नमकीन चिकन, फिश फ्राई, आलू के चिप्स साथ साथ मिठाइयाँ, हर किसम की आइस क्रीम नज़र आये थे । बहुत ही ठंड होने के कारण हम दोनों कांप रहे थी और कांपते हुए कोक और चीनी सिगरेट का मज़े ले रहे थे । मुझे रमेशजी बहुत पसंद आए ,और उनके साथ सैर करके मैं बेहद खुश हुआ । उन्होनें मुझे दो पैकेट चाईनीज़ सिगरेट गिफ्ट किए। मेरे साथ रमेशजी का यह सुंदर व्यवहार मैं जीवनभर भूल नहीं पाऊंगा;भूलना तो दूर ,उनकी यादे मेरे दिल में आज के तरह ही जिंदा और ताज़ा रहेगा । पेइचिंग के सड़क पर खड़े होकर मैं सिर्फ यही सोचता रहा की किस तरह से एक समय की "फोर्बिडेन सीटी" नाम से परिचित चीन देश की राजधानी पेइचिंग के बर्ड नेस्ट, वॉटर क्यूब ऑलंपिक स्टेडियम, विशालकाय सुपर मार्किट, गगनचुम्बी बिल्डिंग, रियल-एस्टेट बिल्डिंग के आधुनिक व उच्च वैज्ञानिक तकनीकी पर समृधि की स्पर्श स्पष्ट उभर रही थी ।

एक दिन जब सिनेमा हॉल से चीन के प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक ली आन की फिल्म "लाइफ ऑफ पाई" (Life of Pi) देखकर ए.सि. गाड़ी से आ रहे थे मैं चंद्रिमा जी को बोला की मैं आपलोगों का मेट्रो ट्रेन यानी भूमिगत रेल देखना चाहता हूँ। एक स्टेशन से उठकर सीआरआई के बिल्डिंग के सामने उतरा। यह उल्लेखनीय है कि चीनी मेट्रो रेल व्यवस्था ने अपनी अच्छी यात्रियों की सुरक्षा और यात्रा स्वच्छता को लेकर हमारे कोलकाता मेट्रो रेल से बिलकुल आश्चर्यजनक अनुभव हुआ । प्लेटफार्म पर आने से पहले टिकट खरीदना, प्रवेश द्वार पर एक्स-रे मशीन से सामान की जांच, यात्रियों की खानातलाशी किया जाता है । प्लेटफार्म पर यात्रियों के अलावा कोई नहीं आ सकता। मैं यह भी देखा कि लगभग अधिकांश ट्रेन कर्मी महिलाएं ही थीं। सदा हंसते हुए चीनी पुरुष महिला के साथ बैठकर आते हुए यह महसूस हुआ की, यह चीनी समाज के विकास के असली प्रतीक है। तेजी से चलने वाला यह मेट्रो ट्रेन चीनी समाज का उन्नयन का वास्तव प्रतीक है। परिश्रमी चीनी जाती की महत्व इसी में है।

यह लेख यहाँ समाप्त कर रहा हूँ फिर भी लग रहा है की दिल में हजारों बातें रह गए। चीनी संस्कृति की विविधता ,खुलेपन व सुधार के रास्ते पर चल रहा आज के चीन का आधुनिक विकास एबं रंगीन वैचित्रमय जीवन शक्ति को एक ही पन्ना में लिखकर प्रकाश करना इतना आसान नहीं है। फिरभी इस ज्योति - समुद्र के बिच चीन की कमल का थोड़ा ही मधु पान कर पाया, जो की मैं अपने आपको धन्य मानता हूँ,आभारी रहा प्यारा देश चीन का।

 

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