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" मेरी चीनी कहानी लेखन प्रतियोगिता " का आलेख——चुनिलाल कैवर्ट
2013-08-29 16:00:45

चीनी भाई बहनों को एक बार फिर मेरा प्यार भरा नमस्कार।

वैसे तो चीन आज भी मेरे लिए दूर का एक सपना जैसा है,लेकिन चीन की गोद में पहुंचकर मुझे यह अपनी मातृभूमि की तरह लगा।चीन आकर ही पता चला कि चीनी भाई बहनों के दिलों में भारतीयों के प्रति कितना प्यार है।चीनी लोग विदेशी मेहमानों का बहुत ही आदर और प्रेम करते हैं।विशेषकर सी.आर.आई. हिंदी विभाग मुझे अपना परिवार जैसा लगा।सी.आर.आई.के निमंत्रण पर अप्रैल,2009 में मुझे चीन जाने का सौभाग्य मिला था।चीन के मनमोहक प्राकृतिक सौन्दर्य,सुन्दर संस्कृति एवं विकसित चीन को देखकर मैं काफी प्रभावित हुआ।चीनी जनता के दिलों में 'हिंदी चीनी भाई भाई' की भावना से तो मैं आज भी अभिभूत हूँ।

चीन और भारत दोनों विश्व के प्राचीनतम देश हैं।साथ ही दोनों देश हिमालय से जुड़े दो महान पड़ौसी देश भी हैं।पड़ौसी देश होने के नाते चीन और भारत के बीच आम जनता के बीच आवाजाही 2000 साल पहले से ही आरम्भ हो गयी थी, जिसकी परम्परा आज तक कायम है।जनता की आवाजाही के लम्बे पुराने इतिहास में चीनियों और भारतीयों में बेशुमार रोचक कहानियां प्रचलित हैं,जिनमें चीन के प्राचीन महान यात्री बौद्ध भिक्षु ह्वेनसांग,फाह्यान,ई चींग और भारतीय बौद्ध आचार्य कुमार जीव अत्यंत मशहूर हैं।चीन के थांग राजवंश के आचार्य ह्वेनसांग बौद्ध धर्म के अध्ययन के लिए पैदल भारत आये और 657 भारतीय बौद्ध ग्रंथों के साथ चीन वापस लौटे।उन्होंने चीन की मशहूर पुस्तक 'थांग काल में पश्चिम की तीर्थ यात्रा' लिखी।चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आवाजाही की यह एक आदर्श मिसाल थी।भारत में चीनी सभ्यता के निशान देखें जा सकते हैं।रेशम और चाय जैसी चीजें चीन से भारत पहुँचीं।इन दोनों शब्दों के उच्चारण से भी इस बात का पता चलता है।चीनी भाषा में रेशम यानी सिल्क उच्चारण सी है और चाय का चाय ही।

गत शताब्दी के तीस वाले दशक में डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस चीन के जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध में चीन की सहायता के लिए भारतीय मेडिकल मिशन के साथ चीन आये और उन्होंने चीन के युद्ध के मैदान में अनगिनत घायल व बीमार सैनिकों व जनता का इलाज किया।वे चीन में 5 साल रहे और उन्होंने अंत में भारी बीमारी और थकान के कारण अपनी जान चीन की धरती को अर्पित कर दी।भारत यात्रा पर आने वाले चीनी नेता और अधिकारी गण डॉक्टर कोटनिस के परिजनों से जरुर भेंट करते हैं।वास्तव में चीनी लोग अपने दोस्तों को कभी नहीं भूलते।मुझे याद है,कुछ साल पहले सी आर आई द्वारा चीनी जनता के बीच 'चीन के 10 सर्वश्रेष्ठ मित्र' का चुनाव करवाया गया था और इस सर्वेक्षण में डॉक्टर कोटनिस को चीनी भाई बहनों ने सर्वश्रेष्ठ मित्र चुना।इससे पता चलता है कि चीनी जनता के हृदय में डॉक्टर कोटनिस के प्रति असीम सम्मान की भावना है।मेरी दिली इच्छा है कि आधुनिक युग में भी हमारी दोस्ती इसी तरह फलती-फूलती रहे।आज से 63 साल पहले एशिया में दो नव स्वाधीन बड़े देश चीन और भारत के बीच राजनयिक संबंध की स्थापना हुई,इससे दोनों देशों के संबंधों के नए विकास के साथ जनता की आवाजाही भी विविध रूप लेकर विकसित हुई।हिंदी चीनी भाई भाई का नारा हिमालय की दोनों ओर गूंज उठा।तत्कालीन चीनी राष्ट्राध्यक्ष माओ त्से तुंग भारतीयों का बहुत सम्मान करते थे।इसी तरह तत्कालीन चीनी प्रधान मंत्री चाऊ एन लाई भारतीय दूतावास में आयोजित गणतंत्र दिवस समारोहों में भारतीयों के साथ नाचगान में शामिल होते थे।

युवा हमेशा ही समाज की सबसे ओजस्वी शक्ति होते हैं और देश की आशा भी।चीन व भारत के बीच मैत्री एशिया के विकास के लिए ही नहीं,बल्कि विश्व की शान्ति व विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है।नवम्बर,2006 में चीन के तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष श्री हू चिन थाओ ने भारत की यात्रा के दौरान भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम साहब के साथ हुई वार्ता में आने वाले 5 सालों के भीतर दोनों देशों के बीच 500-500 युवा प्रतिनिधियों को एक दूसरे देश की यात्रा पर भेजने का आह्वान किया।इसी सुझाव के मुताबिक़ हर साल 100-100 युवाओं के चीनी और भारतीय दल एक दूसरे के यहाँ मैत्रीपूर्ण यात्रा करते हैं।दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण आवाजाही के इतिहास की यह सबसे बड़े पैमाने वाली गतिविधि है।इससे द्विपक्षीय संबंधों के सर्वांगीण विकास और पारस्परिक समझ को आगे बढ़ाने में काफी मदद मिली है।दोनों देशों के युवा लोगों के बीच विचारों के आदान-प्रदान से और युवाओं की बुद्धि और विवेक से चीन भारत संबंधों के सतत विकास जरुर आगे बढ़ेगा।मुझे आशा है कि दोनों देशों के युवा चीन भारत संबंध को और घनिष्ठ बनायेंगे।निश्चित रूप से दोनों देशों की युवा पीढ़ी की इस यात्रा से आवाजाही के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है।

इधर के वर्षों में चीन व भारत के बीच सम्बन्ध के निरंतर प्रगाढ़ होने के साथ-साथ दोनों देशों के शैक्षिक क्षेत्रों में भी आदान-प्रदान बढ़ रहा है।चीनी भाषा सीखने की ललक अब भारतीय छात्रों में भी बढ़ने लगी है और ज्यादा से ज्यादा भारतीय विद्यार्थी चीनी भाषा सीख रहे हैं।दोनों देशों की जनता के लिए यह बड़ी खुशी की बात है कि भारत के बहुत से विश्वविद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों में चीनी भाषा अध्ययन करने की व्यवस्था है।जिनमे जे.एन.यू.प्रमुख है।वर्तमान में युन्नान विश्वविद्यालय और भारत के कुछ विश्वविद्यालयों के बीच आदान-प्रदान का अच्छा सहयोग सम्बन्ध बना है।युन्नान विश्वविद्यालय के अध्यापक व विद्यार्थी अक्सर भारत की यात्रा करते हैं और भारत के विद्वान व विद्यार्थी भी चीन आया करते हैं।खुशी की बात है कि चीन और भारत के अनेक अध्ययनकर्ता भी एक दूसरे देशों की भाषा और संस्कृति का अनुसंधान कर रहे हैं।चीन और भारत के बीच संगीत के क्षेत्र में आदान प्रदान का इतिहास बहुत लंबा है।चीनी संगीत पर भी भारतीय संगीत का प्रभाव पड़ा है।इसी प्रकार चीनी वाद्य व संगीत का भारत में भी प्रसार हुआ।आधुनिक समय में दोनों देशों के बीच संगीत के क्षेत्र में आवाजाही का विस्तार हुआ है।भारत की अनेक संगीत और नृत्य मंडली चीन आ चुकी है और चीनी कलाकार भी भारत जाते रहते हैं।चीन अपने छात्रों को संगीत व नृत्य सीखने के लिए भी भारत भेजता है।इस तरह दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आवाजाही बढ़ रही है।चीन की पूर्वी नृत्य गान मंडली चीन में बहुत मशहूर है।इस मंडली का भी चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आवाजाही में भारी योगदान रहा है।

इस समय चीन व भारत अपने-अपने शांतिपूर्ण विकास में लगे हैं।अनेक क्षेत्रों में दोनों एक दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं।उदाहरण के लिए,चीन ओलंपियाड में विश्व की एक बड़ी शक्ति है।खेलकूद के क्षेत्र में चीन के पास अनेक समृद्ध अनुभव है,जबकि आई.टी.में भारत के अनुभव कहीं अधिक परिपक्व है।सूचना तकनीक और सॉफ्टवेयर में भारत विश्व की अग्रिम पंक्ति में है।चीन हार्डवेयर के क्षेत्र में अपेक्षाकृत विकसित है।चीन और भारत विश्व के दो महान देश हैं।दोनों को एक दूसरे का दुश्मन नहीं,मित्र और साझेदार बनना चाहिए।

पिछले मई महीने में चीनी प्रधानमंत्री श्री ली खछ्यांग ने भारत की तीन दिवसीय यात्रा की,वह कई मायनों में सफल और ऐतहासिक रही।चीन के नए प्रधानमंत्री श्री ली ने अपने पहले विदेश दौरे के लिए भारत को चुना,इससे पता चलता है कि वे चीन व भारत के रिश्ते को बड़ा महत्व और सम्मान देते हैं!चीनी प्रधानमंत्री ने भारत को सबसे अहम् पडौसी बताया।इस यात्रा के दौरान श्री ली और भारतीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने दोनों देशों से जुड़े कुछ अहम् विषयों पर विचार-विमर्श किया और दोनों पक्षों के द्वारा 8 अहम् समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये।सीमा विवाद,व्यापार असंतुलन से लेकर ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने जैसे सवालों पर श्री ली का दृष्टिकोण सार्थक और संतोषप्रद रहा।चीन व भारत ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने के लिए प्रतिष्ठित एवं समकालीन साहित्यिक रचनाओं के अनुवाद को भी बढ़ावा देने का करार किया।हिंदी व चीनी भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए सहमति जताई।बहुत ही खुशी की बात है कि भारतीय विद्यार्थियों को चीनी सिखाने के लिए केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, चीनी एजेंसी हानबान के साथ मिलकर काम करेगा।कैलाश मानसरोवर यात्रा को सुगम बनाने एवं मार्ग में सुविधाएं बढ़ाई जायेंगी।श्री ली खछयांग की इस यात्रा से चीन व भारत के नागरिकों के बीच आपसी सहयोग और संपर्क को और बढ़ावा मिली तथा हमारी दोस्ती पहले से कहीं अधिक मजबूत हुई है।सचमुच चीनी प्रधानमंत्री श्री ली खछ्यांग ने भारत की यात्रा करके भारतीयों का दिल जीत लिया।

इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में,एक बार फिर मैं चीन की धरती का दर्शन करना चाहता हूँ।भारतीयों के प्रति चीनी भाई बहनों के प्यार को और नज़दीक से महसूस करना चाहता हूँ।एक नज़र विश्व महाशक्ति के रूप में उभरते चीन लोक गणराज्य के अद्वितीय विकास और अनोखी संस्कृति की झलक पाना चाहता हूँ।मुझे आशा है कि मेरा यह सपना एक दिन जरुर साकार होगा।

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