Web  hindi.cri.cn
मैं और सीआरआईः राम कुमार नीराज
2013-08-26 10:29:32
आदरणीय प्रसारक महोदय,

        बचपन का वह भी एक दौर था.गाँव में आधुनिकता जैसी चीजों का घोर आभाव सा था.देश दुनिया को करीब से जानने के लोगों के घरों में टेलीविज़न जिस पर सिर्फ दूरदर्शन का चैनल आता था और दूसरा था रेडियो जिस पर लोग समाचारों के आलावा स्थानीय स्टेशन से गीत संगीत का आनंद लेते थे.मेरे गाँव में उनदिनों अखबार भी आता था लेकिन शहर से गाँव का सफ़र तय करके अखबार जिन दुर्गम रास्तों का सफ़र करके आता था उसमे वह पुराना पड़ जाता था.अख़बार अक्सर पिछले कल का पढ़ने को नसीब होता था.गाँव से शहर चालीस किलोमीटर दूर था.शहर जाने के लिय सड़कें इतनी ख़राब थी महज चालीस कोलोमीटर का सफ़र हमें तीन या चार घंटों में तय करना होता था,सडक में गड्ढे थे या गड्ढों में सड़क पहचानना मुश्किल था.मेरे इस गाँव से शहर को जोड़ने के लिय बस की सवारी भी एक मात्र माध्यम था.बसें जब सड़कों पर चलानी शुरू करे तो मानो भूचाल आ गया हो.बस कई बार सड़क से निचे उतर जाती थी.चलती बस की हिचकोलें हमेशा इतनी जरबरदस्त होती थी कि भगवन याद आ जाते थे.कई बार बीमार लोगों के जान तक चली थी और कई बार स्वस्थ आदमी भी शहर पहुंचते पहुंचते बीमार हो जाता था. सड़क पर दुर्घटना रोजमर्रा की चीजें बन गयी थी.बस कब कहाँ पर पलती मार दे किसी को पता नहीं होता था.बरसात में स्थिति और भयावह हो जाती थी.सड़क के दोनों तरफ दूर तक खेतों में फैला हुआ पानी सड़क पर आ जाता था और तब तो सड़क और खेत का फर्क करना भी एक मुश्किल का काम होता था.हाँ,मेरे शहर का नाम था आरा - जहाँ पर इन्टरनेट जैसे आधुनिक साधनों के आलावा लोगों के जरुरत के चीज आसानी से मिल जाते थे.

        खैर,उनदिनों मै तीसरी या छठी कक्षा का छात्र हुआ करता था.स्कूल से छुट्टियों के क्षण में अक्सर एक दिन पुरानी उस अख़बार पर मेरी भी नजर जाती थी और देश दुनिया के तमाम खबरों का एक सिंहावलोकन मै भी कर लेता था.मेरे घर में रेडियो पर अक्सर बी बी सी को सुनते हुए अपने बड़े भैया को देखा था.उनके इस आदत ने हमें भी काफी हद तक हमें भी प्रभावित किया.बचपन का स्कूली दौर बेहद बोरियत भरा था.शिक्षकों की डांट और प्रतिदिन के होम वर्क जैसे सजा लगने वाली काम से जब रेडियो का साथ मिलता था- आसपास की दुनिया का हालचाल मिलता था तब अपने सारे गम भूलकर एक नई दुनिया में खो जाता था.स्कूल से लौटने के बाद आम तौर पर मेरे मित्र अलग अलग खेलों में व्यस्त हो जाते थे लेकिन दुनिया को करीब से जानने की चाह मुझे मुझे बरबस ही रेडियो की तरफ खिंच ले जाता था.एक शाम की बात है.अपने घर के आँगन में पड़े खाट पर नाश्ते के इंतजार में लेटा रेडियो की सुई घुमा रहा था.मेरी माता जी नाश्ता तैयार करने में व्यस्त थी.शाम साढ़े छह का समय था शायद.रेडियो सुनने के क्रम में मेरी रेडियो की सुई एक ऐसे जगह पर अटकी जहाँ से चीन और जापान के संबंधों पर एक रिपोर्ट का प्रसारण हो रहा था.मुद्दा क्या था,मुझे याद नहीं है.आगे के कार्यक्रम भी सुनता रहा.प्रसारण के स्टाइल से किसी विदेशी प्रसारण होने का एहसास हो रहा था,कार्यक्रम के मध्य में एक दो पुराने किन्तु कर्णप्रिय गानों से भी रसास्वादन हुआ.मै पूरी तरह से इस नायब से प्रसारण की दुनिया में खोता चला गया.मेरे माताजी द्वारा दिया हुआ नास्ता भी कब ठंढा हो गया मुझे पता नहीं चला.कार्यक्रम के अंत में सी आर आई की जानकारी मिली और प्रतिदिन प्रसारित होने वाले समय सारणी की भी जानकारी मिली.अब तो मेरे अरमान को जैसे पंख से लग गए.प्रतिदिन स्कूल से लौटने के बाद रेडियो सुनना एक आदत सी बनती गयी.ये चाइना रेडियो इंटरनेशनल है सुनते ही खुशियों से झूम जाता था.कार्यक्रम को सुनते हुए लगभग एक हप्ता गुजर चूका था.प्रतिदिन आपके प्रसारणों में पत्र व्यावहार के लिय आपके दिल्ली दूतावास का पता बताया जाता था.आपके उसी पते पर मैंने भी एक पोस्टकार्ड भेज दिया.लगभग बीस से पच्चीस दिन का समय गुजरा होगा.एक दिन डाकिया मेरे घर पर आकर एक बड़ा सा लिफाफा दे गया.पहले तो मै समझ नहीं पाया.आम तौर पर मेरे उस गाँव के डाकखाने में इस तरह की चिट्ठियां काफी कम आती थी.उस बड़े से लिफाफे को खोलने से पहले उसे बार बार देखे जा रहा था.आपके बीजिंग स्थित पते को पढ़कर अपने आप पर भरोसा करना भी मुश्किल हो रहा था.उस नायब से तोहफे को अपने माँ को दिखाया.रेडियो के प्रति मेरी इस दीवानगी का एक खुबसूरत रिजल्ट मेरे सामने था.मां को अपने बेटे पर नाज हो रहा था.हलकी से मुस्कुराते हुए लिफाफा खोलने का आदेश दिया.उस बाद लिफाफे में एक एक कर कई उपहार जैसे सामग्री मिले.चीन के तमाम तस्वीरों का एक पुलिंदा भी मिला.छोटे छोटे कागज पर कटाई कर पक्षियों और अन्य जीव जंतुओं के तस्वीर जिस बारीकी से उकेरे गए थे वह सचमुच काबिले तारीफ था.अब तो जैसे अरमानों को पंख लग गए और चल पड़ा सिलसिला आपके कार्यक्रमों को सुनने और लिखने का.भारतीय पते पर भेजे गए पत्रों के जवाब पाते पाते समय ज्यादा निकल जाता था.संपर्क आपसे जल्द कर अपने पत्रों को कार्यक्रम में सुन सकूँ इसके लिए कई बार हवाई पत्रों का सहारा भी लिया.

        बचपन मानो निकलता जा रहा था.सी आर आई को मित्र के रूप में पाकर जिन्दगी में जो अनुभूति हो रही थी उसे शायद शब्दों में वयां नहीं किया जा सकता था.उम्र के साथ साथ ज्ञान में भी वृद्धि होती गयी और आसपास के चीजों के आलावा बाकी दुनिया को करीब से जानने और समझने का जो धुन सवार हुआ वह आजतक बरक़रार है.समय बदला, युग बदला और बदला विज्ञान और तकनीक.आज संचार क्रांति के इस दौर में ई मेल इन्टरनेट का विकास ने दुनिया को छोटा बना दिया है.समाचारों को पाने के रास्ते आसान बना दिए है.पोस्टकार्ड जैसे पत्रों का प्रचलन समय के साथ कम होता चला गया और ई मेल जैसे माध्यमों ने आपसे संपर्क के रास्ते को और मजबूत बना दिया.ग्रामीण परिवेश से स्नातक तक की शिक्षा प्राप्ति के बाद जीवन के कुछ नए अरमानो के साथ दिल्ली आ गया.पिछले चार साल से दिल्ली में हूँ.घर में इन्टरनेट जैसे आधुनिकतम संचार की सुविधा है और यही शायद वजह है की अब पहले से ज्यादा आसान है आपसे संपर्क करना,आपके साईट को पढ़ना और और उस पर अपनी व्यक्तिगत राय देना.

        अब मेरी जिन्दगी में मेरी पत्नी और दो बच्चों का साथ है.सबकुछ आनंदित है.जीवन में जब कभी भी पीछे मुड़कर कुछ सोचने की कोशिस करता हूँ तो सी आर आई से जुड़े तमाम यादें बरबस ही पीछे खिंच ले जाती है.चीन को करीब से जानने और समझने में आपके साईट और रेडियो प्रसारणों का मेरे जीवन में बहुत बड़ा एहसान है जिसका आभार शायद मै कभी उतार नहीं पाउँगा.चीन के तमाम एतिहासिक स्थलों के आलावा चीन की कम्युनिस्ट सरकार हमें बेहद पसंद है.चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का सफल नेतृत्व चीनी राष्ट्र और समाज को नित्य नई बुलंदियों पर ले जा रहा है.देश के तमाम कानून बेहद व्यावहारिक और नैतिक है और यही एक बड़ा वजह भी है चीनी सामाजिक उत्थान का.हालाँकि मेरे द्वारा अनवरत प्रेर्षित कार्यक्रम समीक्षाएं सी आर आई के प्रति मेरी गहरी दिलचस्पी का परिचायक है.इस विस्तृत एवं खास आलेख में किसी एक कार्यक्रम से सम्बंधित अपनी राय रखना उचित नहीं समझ पा रहा हूँ इसलिय मेरे जीवन में सी आर आई के प्रति लगाव का एक संक्षेपण प्रस्तुत करने का प्रयास किया है.

        दुनिया की दो अद्भुत प्राचीन सभ्यताओं, भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक संबंध दो शताब्दी से ज्यादा पुराने हैं. दोनों देश प्राचीन रेशम मार्ग के माध्यम से जुड़े थे. लेकिन भारत से चीन गये बौद्ध धर्म का परिचय आपसी संबंधों के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम था जिसने चीन में बौद्ध कला और वास्तुकला के निर्माण और चीनी बौद्ध भिक्षुओं जैसे फा-जियान, जुनजांग और इजिंग की भारत यात्रा को एक नये संबंध से जोड़ दिया.

        चीन के साथ एक लम्बा अरसा बिताने के बाद चीन राष्ट्र के बारे में यदि बात करूँ तो इतना जरुर कि चीन का रुख भारत के प्रति हमेशा सकारात्मक रहा है.मैंने जो अभी तक चीन के बारे में जाना और समझा है चीन हमेशा से अपनी संस्कृति, कला, वास्तुकला, विश्वास, दर्शन आदि के लिए दुनिया में आकर्षण का एक केन्द्र है. पेकिंग मानव के अवशेषों के साक्ष्य के साथ यह आदिम मानव के विकास का भी गवाह रहा है. नवपाषाण युग में, इसे व्यवस्थित जीवन शैली की शुरूआत के रूप में परिभाषित किया गया जो बाद में जटिल सभ्यता के रूप में अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचा. ताओवाद और कन्फ्यूशियस विद्यालयों के विचार विश्व की दो प्रमुख दार्शिनक धाराओं को चीन के उपहार थे. "मृत्यु के बाद जीवन 'की अवधारणा पर निर्मित प्राचीन चीनी सम्राटों के मकबरे बेमिसाल हैं. चीन ने एक आश्चर्यजनक वास्तुकला के रूप में बनाई गयी अपनी "चीन की महान दीवार" जैसे निर्माण से दुनिया को हैरान कर दिया. कागज, रेशम, मृतिका – शिल्प और कांस्य से बनी हुई कुछ उल्लेखनीय श्रेणी की वस्तुएं हैं जिनपर इतिहास के प्रारंभिक काल में चीन का पूरी तरह से अधिकार था. गुणवत्ता, विविधता और प्राचीन सांस्कृतिक स्मृति चिन्हों की समृद्धि और इनसे जुड़ी शानदार प्रौद्योगिकियों के मामले में, चीन का दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में महत्वपूर्ण स्थान है.

        तो आज यही तक.हाँ आलेख के समापन से पहले इतना जरुर कि जीवन के इस नए दौर में भी सी आर आई का साथ हमेशा यूँ ही बना रहा इसकी हार्दिक इच्छा है.तो इस आलेख में माध्यम से आज यही तक.आपके सुझाव प्रतिक्रिया आदि का तहे दिल से स्वागत करूँगा.

        फिर तो जैसे आपको सुनने और लिखने का चल पड़ा सिलसिला.

आप की राय लिखें
Radio
Play
सूचनापट्ट
मत सर्वेक्षण
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040