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सहयोग से बेहतर होगा चीन और भारत का भविष्य
2013-05-25 16:41:57

विश्व के सबसे दो बड़े विकासशील देशों के रूप में चीन और भारत का द्विपक्षीय व्यापार पिछले वर्ष महज 66 अरब अमेरिकी डॉलर रहा। दोनों देशों की आबादी मिलकर 2 अरब 50 करोड़ है, इतने बड़े बाजार में व्यापार की व्यापक संभावनाएं हैं। हाल में चीनी समकालीन अंतरराष्ट्रीय संबंध संस्थान के भारत मसले के विशेषज्ञ हू शीशन ने सीआरआई संवाददाता को इंटरव्यू दिया। उनके विचार में चीन और भारत को आपसी लाभ वाले आर्थिक व व्यापारिक सहयोग संबंधों की स्थापना करनी चाहिए और भविष्य में दोनों देशों के बीच सहयोग की व्यापक संभावना होगी। उन्होंने कहा:

'गत वर्ष दोनों देशों का व्यापार 66 अरब डॉलर रहा, इससे जाहिर है कि दोनों देशों के बीच व्यापार की व्यापक संभावना है। दोनों देशों की अर्थव्यवस्था एक-दूसरे की पूरक हैं, भारत का सॉफ्टवेयर उद्योग विकसित है, जबकि चीन का विनिर्माण उद्योग आगे है।'

दोनों देशों के सहयोग संबंधों की चर्चा में हू शीशन ने कहा कि अगर चीन और भारत पश्चिमी देशों के विकास मॉडल के अनुसार विकास करते हैं पृथ्वी पर संसाधन पर्याप्त नहीं होंगे, इससे जाहिर है कि दोनों देशों को नये उपायों का इस्तेमाल करना होगा, हू शीशन के विचार में दोनों देश संसाधनों की बचत वाले उद्योग पर ध्यान देते हैं। उनका कहना है:

'इतने बड़े देशों के रुप में, अगर चीन और भारत पश्चिमी देशों के विकास मॉडल के अनुसार विकास करते हैं तो पृथ्वी पर संसाधनों की कमी हो जाएगी, इसलिए दोनों देशों को सहयोग करके संसाधनों की बचत वाले उद्योगों का विकास करना चाहिए।'

चीन और भारत को दोस्त बनना चाहिए, यह दोनों देशों के नेताओं की सहमति है। अगर दोनों देश अंधी प्रतिस्पर्धा करते हैं तो, न सिर्फ स्वयं का लाभ प्रभावित होगा, बल्कि पूरी एशिया या विश्व के विकास को भी नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने कहा:

'अपना सपना साकार करने के साथ अगर दूसरे का सपना असफल होता है तो वास्तव में खुद को वास्तविक लाभ नहीं मिलेगा, इसलिए चीन ड्रीम या भारत ड्रीम साकार करने में दोनों देशों को अधिक से अधिक सहयोग करना चाहिए, अगर दोनों देश शातिर प्रतियोगिता करते हैं, न सिर्फ अपने लाभ को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि एशिया या विश्व के विकास में भी हानि पहुंचेगी'

उच्च स्तरीय आवाजाही की चर्चा में हू शीशन ने कहा कि दोनों देशों के नेता उच्च स्तरीय आवाजाही पर काफी ध्यान देते हैं, और सहमति करते हैं कि सीमा मुद्दे का द्विपक्षीय संबंधों पर बुरा असर नहीं पड़ेगा। इस अप्रैल में हुए सीमा विवाद की चर्चा में हू शीशन ने कहा कि चीन और भारत के बीच संपूर्ण संपर्क व्यवस्था मौजूद है, और इसी के तहत हालिया विवाद का सफल समाधान किया गया। उन्होंने कहा-

'सीमा मसले के समाधान के लिए दोनों देशों ने विभिन्न व्यवस्थाएं स्थापित की हैं। इसमें कार्य दल व्यवस्था और विशेषज्ञ दल व्यवस्था शामिल है, विशेषज्ञ दल के सदस्य राजनयिक अधिकारी और सैन्य अधिकारी हैं। वर्ष 2003 में दोनों पक्षों ने सीमा मसले पर विशेष प्रतिनिधि व्यवस्था की स्थापना की , अब तक इस संबंध में 15 दौर की वार्ता और एक अनौपचारिक मुलाक़ात हो चुकी है। वर्ष 2011 में दोनों पक्षों ने सीमा मामले के परामर्श और समन्वय की व्यवस्था की स्थापना की। हालिया घटना में इस व्यवस्था ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इन व्यवस्थाओं के अलावा स्थानीय सैन्य अधिकारी की बैठक व्यवस्था भी मौजूद है। और सीमा सवाल पर दोनों पक्षों के बीच संपूर्ण संपर्क व्यवस्था है।

वास्तव में वर्ष 1967 बाद सीमा क्षेत्र में दोनों पक्षों के बीच किसी भी तरह की गोलीबारी घटना नहीं हुई, यह एक चमत्कार है। पिछली चीनी सरकार के दौरान चीनी नेताओं ने दस सालों में भारतीय प्रधानमंत्री से 26 बार की भेंट-वार्ता की थी। चीन के नए प्रधानमंत्री ली खछ्यांग की पहली विदेश यात्रा भारत है, इससे जाहिर है कि चीन भारत के साथ अपने संबंधों को ध्यान देता है। लेकिन दोनों देशों की जनता के बीच आवाजाही की चर्चा करते हुए हू शीशन का विचार है कि गैर सरकारी आवाजाही को बढ़ाया जाना चाहिए। उनका कहना है:

'गत वर्ष 8 करोड़ चीनी लोग विदेश गए, और 3 करोड़ से अधिक चीनी लोग पड़ोसी देशों में गए, लेकिन चीन और भारत के बीच आने जाने वाले लोगों की संख्या सिर्फ 7 लाख रही, जिसमें 6 लाख भारतीय चीन में आए, जबकि केवल एक लाख चीनी लोग भारत गए।'

मतभेदों को दूर रखते हुए समानता की खोज और सहयोग करना दोनों देशों की नेताओं की सहमति है, इसके साथ दोनों के व्यापार की व्यापक संभावना है, 21 वीं सदी में चीन और भारत को सहयोग चाहिए और सिर्फ सहयोग करके दोनों देशों का अच्छा विकास होगा।

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