चीन के विकास के चलते अधिक से अधिक विदेशी लोग चीन आते हैं। चीनी सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय के संबंधित आकड़ों के अनुसार वर्ष 2013 के शुरूआत तक चीन में रहने वाले विदेशी लोगों की संख्या 14 लाख तक जा पहुंची है। कई विदेशी लोग चीन में चीनी नागरिकों की तरह जीवन बिताते हैं। वे चीन में काम करते हैं, उपलब्धियां हासिल करते हैं, और सुखमय जीवन बिताते हैं। हालांकि वे भिन्न भिन्न देशों से चीन आये हैं और विभिन्न भाषा बोलते हैं, फिर भी उनके समान चीनी सवप्न है। भारत से आये सुशुधन उनमें से एक है।
26 वर्षीय सुशुधन भारत के बिहार से चीन आये हैं, जो अभी चीन के शेनयांग नार्मल विश्वविद्यालय में मास्टर की पढाई कर रहें हैं। वर्ष 2008 से पहले सुशुधन भारत में काम करते थे। रोज़ाना वो एक सरल जीवन बिताते थे। जून 2008 में उन्होंने सरकारी प्रतिनिधि मंडल के एक सदस्य के रूप चीन की यात्रा की, जिससे उन्हें चीन में आने का और चीनी भाषा सीखने की चाहत हो गयी। उन्होंने अपना त्यागपत्र दिया और भारत से रवाना हो कर चीन आ गये। अपना विकल्प बताते हुए भारतीय युवा सुशुधन ने कहा:
"मैं चीनी भाषा इसलिये सीखना चाहता हूं क्योंकि मुझे न केवल चीनी भाषा पसंद है, बल्कि चीनी भाषा से मुझे अधिक अवसर भी प्राप्त हो सकते हैं।"
सुशुधन के चीनी भाषा सीखने के फैसले पर उनकें कई दोस्तों ने उन्हें समझाते हुए कहा कि चीनी भाषा सीखना बहुत मुश्किल है और भविष्य में इसका कोई लाभ नहीं है। लेकिन सुशुधन के विचार में व्यस्तता और कठिनाई की वजह से बहुत से लोग अपना सपना बीच में छोड देते हैं, और वे अपने सपने पर कायम नहीं रह पाते हैं। सौभाग्य की बात यह हैं कि सुशुधन के परिजनों ने उनके फैसले का समर्थन किया। इसकी चर्चा में उन्होंने कहा:
"हालांकि मेरे परिजनों के ख्याल में चीनी भाषा सीखने का कोई भी मतलब नहीं हैं, पर वे मेरी दिलचस्पी का सम्मान करते हैं और मेरा समर्थन भी करते हैं।"
सुशुधन ने कहा कि उसके चीन आने का विकल्प चीनी भाषा सीखने से अलग नहीं हो सकता। सुशुधन ने कहा:
"मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय के चीनी भाषा विभाग से स्नातक की, इसलिये मुझे लगता था कि मुझे चीन जाना चाहिए और चीन की संस्कृति, चीनी लोगों की जीवन शैली के बारें में जानकारी लेनी चाहिए। वर्ष 2008 की चीन यात्रा से मैंने यह फैसला किया। मैंने शेनयांग नार्मल विश्वविद्यालय से आवेदन पत्र भेजा और बाद में इस में दाखिला लिया। इस तरह मैं चीन आया।"
अन्य विदेशी छात्रों की तुलना में सुशुधन ने पेइचिंग की जगह शेनयांग को चुना। उनके विचार में शेनयांग पेइचिंग की तरह एक ऐतिहासिक और पुराना सांस्कृतिक शहर है और चीन का महत्वपूर्ण भारी उद्योग अड्डा भी है, जो बहुत से विदेशियों को आकर्षित भी करता है। अभी विदेशी पर्यटकों के अलावा शेनयांग में पढ़ने और रहने वाले विदेशियों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही हैं।
चीन में सुशुधन सामाजिक जीवन बिताते हैं। उन्होंने शेनयांग नार्मल विश्वविद्यालय में विदेशी विद्यार्थियों के लिये एक छात्र संघ की स्थापना की हैं। वे स्वयंसेवक बनकर स्थानीय बुजुर्गों की सेवा करते हैं। उन्होंने टीवी पर कई विदेशियों को चीनी भाषा सीखाई हैं। सुशुधन कभी कभार भारतीय जातीय पौशाक पहनकर विभिन्न अभिनयों में भाग भी लेते हैं।
सुशुधन के ख्याल में चीन में हर व्यक्ति अपना सपना साकार कर सकता है। चीन में सिर्फ मौके ही नहीं, चुनौतियां भी मौजूद है। उन्हें आशा है कि वो अच्छी तरह चीनी भाषा सीख सकेंगे, ताकि चीन के प्रति समान रूचि वाले भारतीयों की मदद की जा सके। सुशुधन ने कहा:
"भारत में दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहार लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अलावा अन्य विश्वविद्यालयों में चीनी भाषा विभाग अधिक नहीं है। भारत में उच्च स्तर की चीनी भाषा सीखाने वाले अध्यापक भी काफी नहीं है।"
भारतीय युवा सुशुधन ने कहा कि उसका चीनी सवप्न चीन और भारत के बीच गैर-सरकारी आवाजाही का दूत बनना है। उसे आशा है कि दोनों देशों की जनता के लिये एक दूसरे की समझ बढ़ाने के लिए वो एक खिलड़ी बन जाएगा। भविष्य में अपनी योजना की चर्चा में सुशुधन ने कहा:
"मेरी एक योजना है कि डॉक्टर की उपाधि प्राप्त करने के बाद मैं अपने जन्मस्थान बिहार में एक प्राइमरी स्कूल की स्थापना करूंगा, ताकि अधिक से अधिक भारतीय लोगों की मदद कर सके और ज्यादा से ज्यादा चीनी भाषा सीखना चाहने भारतीय व्यक्तियों की सेवा कर सके।"
चीन और चीनी संस्कृति को पसंद करने के कारण सुशुधन जैसे विदेशी लोग अपना चीनी सपना लेकर चीन आते हैं। अपना सपना साकार करने के दौरान वे एक रंग-बिरंगा चीन महसूस करते हैं, जबकि चीन उनके चीनी सपनों के लिये एक मंच भी प्रदान करता है।