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भारतीय युवा के पूर्व में"चीन का सपना"
2013-05-20 09:59:46

विश्व नक्शे में भारत की राजधानी नई दिल्ली से चीन की राजधानी पेइचिंग तक छह हज़ार किलोमीटर की दूरी है। प्राचीन समय के थांग राजवंश में महाभिक्षु ह्वानसांग तत्कालीन राजधानी छांगआन से भारी कठिनाइयों को दूर कर भारत पहुंचे। गत सदी के तीस वाले दशक में मंबई में जन्मे डॉक्टर कोटनिस भी बड़ी मुश्किलों को पार कर चीन आए। इन व्यक्तियों ने चीन भारत संबंध के विकास के लिए भारी योगदान दिया। लम्बे समय में बहुत ज्यादा लोग चीन-भारत मैत्री की मज़बूती की कोशिश करते हैं। आज इस प्रकार के कई भारतीय युवा चीन के प्रति गहरा प्यार और भविष्य के प्रति सपना लेते हुए भारत से चीन आए। आज के इस कार्यक्रम में हम आप को सुनाएंगे भारतीय युवा विकास कुमार सिंह की कहानी और महसूस करेंगे चीन के प्रति उसका अपार प्यार।

विकास का चीनी नाम है"वेई हान"। ये दो शब्द चीन के दो प्राचीन राजवंशों का नाम भी है। वर्ष 2004 में नई दिल्ली में जेएनयू के चीनी भाषा विभाग में प्रवेश के बाद अध्यपक ने विकास को वेई हान नाम दिया। वर्ष 2007 में जेएनयू से स्नातक होने के बाद वेई हान चीन सरकार द्वारा प्रदत्त छात्रवृत्ति स्वीकार कर चीन आए, और वह इस प्रकार की छात्रावृत्ति प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय अंडरग्रेजुएट छात्र बने। तभी से आज तक वह चीन में छह सालों तक ठहर गये। अच्छी तरह चीनी भाषा बोल सकता है और उसे चीनी खान-पान और रहन सहन की आदत भी हो गयी। चीनी भाषा और चीन के साथ संबंध की चर्चा में वेई हान ने संवाददाता से कहा कि उसने पैसे कमाने के लिए चीन आने का निश्चय किया। वेई हान ने कहा:

"उस समय मेरे पास एमए और पीएचडी उपाधि पढ़ने का विचार नहीं था। वर्ष 2004 में चीन के आर्थिक विकास का सबसे अच्छा काल था भारत और चीन के बीच आवाजाही लगातार मजबूत होने लगी। कई भारतीय कंपनियों को चीनी भाषा जानने और चीन की जानकारी होने वालों की आवश्यकता है। इस तरह मैंने चीनी भाषा सीखने का मन बनाया। आशा करता था कि बाद में एक अच्छा नौकरी प्राप्त कर सकूंगा।"

विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद अपनी चीनी भाषा का गहन अध्ययन के लिए वई हान चीन आए और पेइचिंग स्थित सुप्रसिद्ध चीनी जन विश्वविद्यालय पढ़ने लगा। चीन आने के पहले दिन की याद करते हुए वेई हान आश्चर्य लगा कि वास्तविक चीन किताबों से कहीं अलग है। वेई हान ने कहा:

"लगता है कि भारत में हमारा पाठ्य पुस्तक गत शताब्दी के तीस और चालीस वाले दशकों में लिखा जाता था। बहुत पुराना लग रहा था। इस तरह चीनी भाषा सीखने के वक्त हमारे विचार में चीन को ऐसा लग रहा था कि उसका समाज और अर्थतंत्र किताबों के वर्णन की तरह था। लेकिन पहली बार पेइचिंग आया, तो बहुत आश्चर्य लगा। वाह, यह कहां है?मुझे लगता था कि किसी बहुत विकसित शहर आ पहुंचा। वह बिल्कुल अमेरिका में विकसित शहरों के बराबर है। इस तरह मुझे पता चला कि वास्तविक स्थिति किताबों से कहीं दूर है।"

चीन में चीनी भाषा सीखने के बाद वेई हान ने एमए की उपाधि हासिल की। चीनी भाषा, चीनी लोग और चीनी संस्कृति के प्रति उसकी रूचि दिन ब दिन बढ़ रही है। चीनी भाषा उसके लिए अलग अर्थ होता है। वेई हान ने कहा:

"अगर आप किसी देश जानना चाहेंगे, तो सबसे पहले आप उसकी भाषा अच्छी तरह मालूम करना चाहिए। भाषा और संस्कृति के बीच बहुत घनिष्ठ संबंध होता है। अगर इस देश की भाषा नहीं जानते, तो उस देश की सूचना पूर्ण रूप से नहीं मालूम हो सकते। इस तरह मैंने यहां पीएचडी उपाधि पढ़ने का फैसला कर लिया।"

आज वेई हान विश्वविख्यात पेइचिंग विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में पीएचडी डिग्री पढ़ रहा है। उसका मुख्य कोर्स गत शताब्दी के शुरू में चीन और भारत के बीच आवाजाही के इतिहास का अध्ययन करना है। बेचलर कॉर्स चीनी भाषा था, एमए कॉर्स अंतरराष्ट्रीय संबंध था, तो पीएचडी कॉर्स वेई हान क्यों इतिहास चुना? जो दूसरे विदेशी विद्यार्थियों से कहीं अलग है। इसकी चर्चा में उसने कहा:

"मुझे लगता है कि इतिहास बहुत महत्वपूर्ण कॉर्स है। अगर आप अपना इतिहास नहीं जानते, तो बहुत ज्यादा क्षेत्र आपको समझ में नहीं आ सकते। बहुत ज्यादा चीनी और भारतीय विद्वानों और विशेषज्ञों ने चीन और भारत के बीच आवाजाही के प्राचीन इतिहास का अनुसंधान किया। आधुनिक काल में इस प्रकार का अध्ययन भी किया जाता रहा है। लेकिन गत शताब्दी के शुरू में रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने चीन की यात्रा की थी, जवाहर लाल नेहरू ने चीन की यात्रा की थी, चीन के तत्कालिक सर्वेच्च नेता च्यांग गाईशी ने भारत का दौरा किया था और मशहूर ऐतिहासिक व्यक्ति खांग योवेई ने भी भारत की सैर की थी। मुझे लगता है कि उस वक्त चीन और भारत के बीच आवाजाही भी ज्यादा थी। लेकिन इसके अनुसंधान करने वालों की संख्या कम है। इस तरह मैं ने इसी काल के इतिहास को अपना प्रमुख कोर्स चुना।"

वास्तव में चीन में वेई हान की तरह बहुत ज्यादा भारतीय विद्यार्थी हैं। चीनी उच्च स्तरीय शिक्षा संघ के अधीन विदेशी विद्यार्थी शिक्षा प्रबंधन द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार मात्र वर्ष 2012 में दस हज़ार 237 भारतीय छात्र चीन सरकार की छात्रवृत्ति प्राप्त करने या खुद खर्च करने के माध्यम से चीन आए। भविष्य के प्रति उनकी सुनहरा सपना है। वे चीन के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित कर चुका है। इसकी चर्चा में वेई हान ने कहा:

"पीएचडी उपाधि प्राप्त करने के बाद चाहे मैं विश्विद्यालय में पढ़ाई करूंगा, किसी अनुसंधान केंद्र में चीन-भारत संबंध का अनुसंधानकर्ता बनूंगा, या किसी भी कंपनी में काम करूंगा, मैं चीन के बारे में खुद हासिल हुई जानकारियों का वास्तविक कार्य में इस्तेमाल करूंगा। चाहे पहले, वर्तमान और भविष्य क्यों न हो, मुझे चीन और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध को आगे बढ़ाने में लगूंगा। यह जिन्दगी भर में मेरा लक्ष्य ही है।"

आशा है कि ज्यादा से ज्यादा भारतीय लोग चीन आएंगे, और साथ ही अधिक से अधिक चीनी लोग भारत जाएंगे। पारस्परिक आवाजाही के जरिए हमारा दोनों देशों के बीच समझ और मैत्री जरूर बढ़ेगी।

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