सुर्खियों के बाद आज फोकस में है साहित्य और समाज का रिश्ता। साहित्य और समाज का रिश्ता हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। यह तो सर्वविदित है कि साहित्य की रचना समाज में ही होती है और इस रुप में साहित्य समाज से अलग नहीं हो सकता। लेकिन समय-समय पर ऐसे दौर आए हैं, जब साहित्य एकांगी हुआ है, स्वांतः सुखाए का नारा दे कर साहित्य को अपनी सामाजिक जिम्मेवारी से अलग करने के प्रयास हुए हैं और यह कहा गया कि साहित्य का उद्देश्य सिर्फ साहित्य है। दूसरी ओर साहित्य को सामाजिक परिवर्तन के हथियार के रुप में भी देखा गया और यह माना गया कि साहित्य सामाजिक परिवर्तन में एक जरुरी भूमिका निभाता है।
वर्तमान समय में जब दुनिया बहुत जटिल हो गई है और अमीरी गरीबी के बीच खाई बढ़ती जा रही है और नई तकनॉलाजी से सौंदर्यबोध के नए आयाम खड़े करके रचनात्मकता के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। यह जानना रोचक होगा कि दुनिया के हमारे इस हिस्से में साहित्य और समाज का आज रिश्ता कैसा है। इस के बारे में हम ने भारत में इगनो में कार्यरत प्रोफेसर और विद्वान जवरी मल पारख से बात की।