वह पहली जातीय वाद्ययंत्र विभाग से आयी स्कॉलर हैंजिन्हें चीन के शिक्षा विभाग के द्वारा अध्ययन के लिये विदेश भेजा गया। कलकत्ता में उन की कोशिशों से चीन और भारत से आये डलसिमर कलाकारों की पहली वार्ता संपन्न हुई। वे हैं केंद्रीय संगीत कंसर्वेटरी की डलसिमर प्रोफ़ेसर ल्यू यू निंग।
ल्यू यू निंग के ख्याल से उन्होंने संयोग से डलसिमर बजाना शुरू किया।लेकिन उन्होंने कहा कि शायद यह सुयोग्य भाग्य में लिखा था।ल्यू यू निंग ने कहा
(आवाज़-2)
मेरा एक खुशी भरा परिवार है।मेरी मा को गीत गाना बहुत पसंद है और वे बहुत अच्छा गाती हैं।जबकि मेरे पिता को वायलिन बजाने का बड़ा शौक है।बचपन में एक बार मेरी मां एक वीणा लायी।इसे देखकर मुझे काफ़ी अच्छा लगा।मैं रूचि के साथ झांकते हुए उसके पास बैठी।मेरे मां-बाप को ऐसा लगता था कि शायद मेरी इस क्षेत्र में प्रतिभा होगी।क्योंकि वीणा के पाश में बैठकर मैं शांत हो गयी।
सौभाग्य है कि ल्यू यू निंग के मां-बाप के एक दोस्त डलसिमर बजाते हैं।इसलिये 9 वर्षीय ल्यू यू निंग ने उन से डलसिमर सीखना शुरू किया।वर्ष 1977 में वे अच्छा परिणाम प्राप्त करके केंद्रीय संगीत कंसर्वटरी के अधीन मीडिल स्कूल में दाखिल हुईं।वर्ष 1978 में वसंत की कलियां नाम एक फ़िल्म में उन्होंने संगीत पेश किया।अपने इस प्रतिभाशाली प्रदर्शन से उनका नाम देश विदेश में मशहूर हो गया।1980 के दशक में वे केंद्रीय संगीत कंसर्वेटरी से स्नातक होकर अपने कॉलेज में अध्यापिका बन गईं।
केंद्रीय संगीत कंसर्वेटरी चीन में पेशेवर संगीत शिक्षा की उच्चतम संस्था है।उसकी ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है।अध्यापिका बनने के बाद ल्यू यू निंग संगीत बजाने के नये तरीकों की खोज की।उन्होंने सफलतापूर्ण इलेक्ट्रोनिक संगीत को डलसिमर प्रदर्शन में शामिल किया ।साथ ही उन्होंने दूसरे पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ भी संगत की।उनके इन प्रयासों के तहत जातीय संगीत कला के ज़रिये ज़्यादा समृद्ध विषय़ दिखाये जा सकते हैं।इसके अलावा उन्होंने डलसिमर बनाने के लिये एक बिल्कुल नयी तकनीक तैयार की।उन के भरपूर समर्पण के कारण ल्यू यू निंग को बार बार डलसिमर कला और संगीत शिक्षा के क्षेत्रों में पुरस्कार मिले हैं।
चीन के डलसिमर का विदेशों में परिचय देने और विदेशी डलसिमर कलाकार के साथ आदान-प्रदान करने के लिये ल्यू यू निंग ने पढ़ने के लिये विदेश यात्रा शुरू की।वर्ष 2005 से 2006 तक यूरोपीय डलसिमर बजाना सीखने के लिये ल्यू यूनिंग हंगरी गयीं।वापस लौटने के बाद उन्होंने लाख शब्दों में बने <पूर्वी यूरोप में डलसिमर संगीत पर निबंधों का संग्रह> का चीनी भाषा में अनुवाद किया।यह चीन के अकादमिक क्षेत्र में डलसिमर के विषय पर एक बड़ी बात मानी जाती है।इन निबंधों के संग्रह को लेकर ल्यू यू निंग ने कहा
(आवाज़-3)
एक वाद्ययंत्र बजाने वाले के लिये लेख लिखना आसान काम नहीं है।इसका अनुवाद करते मेरे सामने काफी मुश्किलें आईं।उस समय मैंने खुद से कहा कि बहुत अन्य लोगों को डलसिमर सीखने के लिये हंगरी जाने का मौका नहीं मिल पाता है।मैं चाहती हूं कि न केवल मैं बल्कि चीन में दूसरे डलसिमर बजाने वाले भी यह किताब पढ़ सकते हैं।
हंगरी से वापस आयी ल्यू यू निंग ने अपने विद्यार्थियों के लिये स्नातक समारोह के अवसर पर विभिन्न शैलियों के साथ चार कंसर्ट आयोजित किये।उनमें से एक कंसर्ट में उनका हंगरी से वापस लाया गया यूरोपीय डलसिमर बजाया गया था।इन कंसर्ट के मौकों पर श्रोताऔं ने यूरोपीय डलसिमर पर बजाये गये चीनी शास्त्रीय संगीत के साथ चीनी डलसिमर पर बजाया गया यूरोपीय शास्त्रीय संगीत भी सुना।
वर्ष 2008 में ल्यू यू निंग संगीत संस्कृति का अध्ययन करने के लिये दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत विभाग गयीं।उस समय उन्होंने कई शहरों की यात्रा की और भारतीय संगीत जगत की गतिविधियों में भाग लिया।पढ़ाई के दौरान उन का कलकत्ता के सीटी हॉल में सोलो डलसिमर कंसर्ट आयोजित हुआ।यह भारत में पहला चीनी डलसिमर कंसर्ट था।कई मशहूर भारतीय संगीतकारों ने आमंत्रण पर उनके साथ प्रस्तुति पेश की।यह दोनों देशों के डलसिमर संगीतकारों का पहला संयुक्त प्रदर्शन था।वह कंसर्ट सफल रहा।इसके बाद ल्यू यू निंग के भारत में आयोजित किये गये कई कंसर्ट को भी बड़ी सफलता और प्रशंसा मिली।जहां वे जाती थीं,वहां पर चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान की लहरें उठ रही हैं।प्रोफ़ेसर ल्यू यू निंग ने संवाददाता को बताया
(आवाज़-5)
मुझे भारत बहुत अच्छा लगता है।भारत एक रंग-बिरंगा और आश्चर्यजनक देश है।यह लोगों की कल्पना के बाहर है कि वह कितना समृद्ध,स्वतंत्र और सम्मोहित है।भारतीय लोगों को संगीत के प्रति बड़ा स्नेह है।यह,भारतियों की एक विशेषता है।
इस साल 4 मई को "2011 चीन भारत आदान-प्रदान वर्ष" की गतिविधियों में से एक के रूप में वैश्विक सांस्कृतिक जगत में जानी-मानी हस्ती रविंद्रनाथ ठाकुर की 150 जयंती पर ओरिएंटल रात्रि नामक कंसर्ट कलकत्ता में आयोजित हुआ।केंद्रीय संगीत कंसर्वेटरी के कलाकारों, प्रसिद्ध भारतीय संगीतकारों और संगीत के प्रेमियों ने साथ-साथ कार्यक्रम प्रस्तुत किये।भारत में कई प्रमुख मीडिया संस्थाओं ने उस कंसर्ट के बारे में खबरें दीं।और वह कंसर्ट भी सफल रहा।उस कंसर्ट के आयोजक व कलाकार के नाते ल्यू यू निंग ने हमें बताया
(आवाज़-6)
इस प्रस्तुति का सही महत्व क्या है ? इसके पहले हमारे चीन के जातीय संगीत कलाकार विदेशों में कई कंसर्ट आयोजित करने गये।और उन्होंने हमेशा स्थानीय चीनी लोगों के लिए प्रदर्शन किया।इस तरह चीनी जातीय संगीत का स्थानीय समाज पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा ।विदेशों में चीनी जातीय संगीत के प्रचार के लिये यह सबसे अहम है कि प्रदर्शन से वहां का मुख्य मीडिया तथा समाज की मुख्य धारा प्रभावित हो।
चीनी डलसिमर का प्रचार-प्रसार करने के लिये ल्यू यू निंग ने 30 से ज़्यादा देशों की यात्रा की।उनके मुताबिक आधुनिक समाज में पारंपरिक जातीय संगीत का प्रचार करने के लिये नवाचार किया जाना चाहिये और वैश्विक संगीत जगत से संपर्क भी रखा जाना चाहिये।संगीतकारों को अधिक उच्च स्तर पर परंपरागत संगीत का अध्ययन करना चाहिये।चीनी जातीय संगीत जगत को जोखिम महसूस करना चाहिए ताकि सही चीनी संस्कृति आरक्षित की जा सके और विरासत के रूप में ली जा सके।ल्यू यू निंग के शब्दों में
(आवाज़-7)
पहला,संगीत की कोई भी सीमा नहीं है।दूसरा, चीनी संगीत प्रभावशाली संगीत है,जिसकी स्पष्ट विशेषताएं हैं।चीनी संगीत अपनी प्रणाली के आधार पर संपन्न हुआ है । मेरा विचार है कि सिर्फ़ दो-एक कंसर्ट आयोजित करने के बजाय हम संगीतकारों को आत्मविश्वास के साथ-साथ चीन के बाहर जाकर विदेशों में प्रभाव डालना चाहिये।मुझे यकीन है कि अगर सभी कलाकार इस तरह प्रयाप्त प्रयास करें तो, दुनिया में हमारे चीनी संगीत का रूझान दिखेगा।इसके बाद विदेशी लोग प्राकृतिक तौर पर चीन की बहुत सामग्री पसंद करके स्वीकार कर सकेंगे।
आजकल ल्यू यू निंग का मुख्य काम है सी.आर.आई. के वरिष्ठ बंगाली अनुवादक बाई काई य्वैन के साथ <ठाकुर गीत संग्रह> का चीनी भाषा संस्करण तैयार करना।ल्यू यू निंग हमेशा ईरान जाना चाहती हैं,क्योंकि ईरान डलसिमर का स्रोत स्थान है।वे सोचती हैं कि ईरान जाने के बाद विश्व में विभिन्न डलसिमरों का सारांश कर सकेंगी।
वे चाहती हैं कि अपनी अथक कोशिशों के माध्यम से विश्व में डलसिमर पर आदान-प्रदान बढ सकेगा।दिल में संगीत के प्रति प्रेम से उन्हें लगातार समर्थन मिलता है।उन्होंने कहा
(आवाज़-8)
मनुष्य को विश्वास पाना चाहिये।विश्वास के बिना जीवन का लक्ष्य खो जाएगा।इस तरह ज़िंदगी की दिशा भी नहीं दिखाई पडेगी।मेरा ख्याल है कि जीवन सीखने और जानने की प्रक्रिया है।अनुभव यानी रिच इक्सपिअरेंस सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है।मुझे लगता है कि ज़िन्दगी के रास्ते के किनारे काफ़ी सुंदर दृश्य हैं।मुझे उम्मीद है कि मेरी ज़िन्दगी में अनोखे अनुभव भरे होंगे।