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प्रकृति के कहर के आगे इंसान बेबस
2013-04-24 16:04:38

आपका पत्र मिला प्रोग्राम सुनने वाले सभी श्रोताओं को वेइतुंग और अनिल पांडेय का नमस्कार।

प्रोग्राम की शुरूआत में सबसे पहले हम श्रोताओं के पत्र और ई-मेल पढ़ेंगे, उसके बाद एक श्रोता के साथ हुई बातचीत और उनकी पसंद पर सांग पेश किया जाएगा।

दोस्तो, जैसा कि आप सभी को पता है कि पिछले दिनों चीन के स्छवान प्रांत की लूशान काउंटी में प्रकृति ने कहर बरपाया, जिसमें अब तक लगभग 2 सौ लोग मारे जा चुके हैं। जबकि हज़ारों घायल हैं। गत् 20 अप्रैल की सुबह आए शक्तिशाली भूकंप की ख़बर सुनने के बाद भारत में तमाम श्रोताओं का मन भी उद्वेलित हो गया। और उन्होंने पत्रों और ई-मेल के ज़रिए भूकंप पीड़ित लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की है।

इसी क्रम में सबसे पहले शामिल करते हैं, सुरेश अग्रवाल का ई-मेल। वे लिखते हैं कि रोजाना की तरह 20 अप्रैल की शाम भी सीआरआई का प्रसारण सुन रहा था। जैसे ही समाचार प्रसारित हुए तो भीषण भूकंप की ख़बर सुनी तो मन उद्वेलित हो गया। समाचारों के बाद घटना के हृदयविदारक दृश्य वेबसाइट पर भी देखे। सचमुच, हादसे की तस्वीरें विचलित करने वाली हैं। इस त्रासद घटना की जानकारी के बाद मनोरंजन का कार्यक्रम सुनने की इच्छा नहीं हुई और चुपचाप अपनी संवेदनाएं आपको प्रेषित करने पास के साइबर कैफे पहुंच गया हूं। मैं इन्डो-चाइना मैत्री क्लब के तमाम सदस्यों की ओर से अपनी आतंरिक संवेदनाएं व्यक्त करते हुए ईश्वर से मृतकों के परिजनों और पीड़ितों को इस त्रासदी से जल्द उबारने की प्रार्थना करता हूं।

वैसे प्रकृति का कहर कब और कहां बरपे यह कहना मुश्किल है, विज्ञान द्वारा काफी प्रगति किए जाने के बाद भी आज हम प्राकृतिक आपदाओं के सामने बेबस नज़र आते हैं। बात चाहे, सुनामी की हो या फिर भूकंप आदि की, कहीं न कहीं इस सबके लिए प्रकृति के साथ हो रही छेड़छाड़ भी एक वजह कही जा सकती है। भले ही आपदा पर हमारा ज़ोर न चले, पर हम बेहतर प्रबंधन और इससे निपटने के कारगर उपाय तो कर ही सकते हैं।

हालांकि वर्तमान में चीन में राहत कार्य जिस मुस्तैदी से चल रहा है, वह क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। घटना के बाद अगले दिन भी सबसे पहले यही जानने की जिज्ञासा थी कि बीस अप्रैल की सुबह आए ज़बरदस्त भूकम्प से प्रभावित लोगों का क्या हालचाल है। भूकम्प से हुए जानमाल के नुकसान से हमें काफी दुःख हुआ, परन्तु वहां सरकार द्वारा फौरी तौर पर चलाये जा रहे राहत एवं बचाव कार्यों की जितनी प्रशंसा की जाये कम है। प्रकृति के सामने हम सभी बौने हैं, पर यह हर मनुष्य का कर्त्तव्य है कि विपदा की घड़ी में एक-दूसरे के काम आये।

भूकंप के बारे में ही अगला पत्र भी है, जो कि आया है, पश्चिम बंगाल से, इसे भेजने वाले हैं बिधान चंद्र सान्याल। उन्होंने अपनी संवेदनाएं कुछ इस तरह व्यक्त की हैं। लिखते हैं कि हम सभी भूकंप से हुए नुकसान से बहुत दुखी हैं। साथ ही उम्मीद करते हैं कि चीनी जनता और सरकार के प्रयासों से पीड़तों को जल्द से जल्द मदद मिलेगी।

वहीं चुन्नीलाल कैवर्त ने भी वेबसाइज पर लिखे संदेश में कहा कि इस प्राकृतिक आपदा में मारे गए लोगों की आत्मा को भगवान शांति प्रदान करे। हम शोक-संतप्त परिवारों को संवेदना भेजते हैं।

भूकंप की ख़बर सुनने के बाद दिल्ली के राम कुमार नीरज भी खुद को लिखने से रोक न सके। कहते हैं कि आपकी वेबसाइट पर लूशान में आए भूंकप पर आलेख पढ़ा और तस्वीरें भी देखी। सचमुच कलेजा दहल गया।

वास्तव में भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं पर जीत पाना इंसान के लिए अब भी एक गंभीर चुनौती है। उन्होंने आंकड़ों के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट की है। हाल ही में घोषित संयुक्त राष्ट्र भूगर्भीय सर्वे के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष 3 से 3.9 तीव्रता के 49000 हल्के, 6 से 6.9 तीव्रता के 120 अधिक तीव्र, 7.9 से 8 तीव्रता के 18 बड़े भूकंप आते हैं। जबकि 8 से 9 तीव्रता का भी एक भीषण भूकंप आता है। इसमें तकरीबन छह लाख पचपन हज़ार लोगों की मौत हो जाती है।

इसके बाद बढ़ते हैं इलाहाबाद की ओर। वहां से हमें रवि श्रीवास्तव ने भी इस घटना पर ई-मेल भेजा है। वे लिखते हैं कि ऐसा लग रहा है कि टूटी इमारतें और तहस-नहस हुईं प्राकृतिक छटाएं अपना दर्द स्वयं बयां कर रही हैं। लेकिन इस सबके बावजूद हम चीन के मनोबल की दाद देते हैं। चीन ने अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से कहा है कि हमारे पास इस प्राकृतिक आपदा से लड़ने के लिए पर्याप्त साधन हैं। फेसबुक पर भी हमें आपकी ताजा पोस्ट इस बाबत मिली है। हम इस बड़े प्राकृतिक प्रकोप से लड़ने का साहस बनाए रखने की ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और मृतकों के प्रति गहरा शोक प्रकट करते हैं।

वहीं झारखंड से भी एस बी शर्मा कहते हैं कि ईश्वर ने लोगों के सिर से छत छीन लही है और उनके लिए मुश्किल समय आ गया है। लेकिन चीन सरकार और लोगों की हिम्मत और सक्रियता की दाद देनी होगी।

दोस्तो, भूकंप के बारे में कई श्रोताओं की संवेदनाओं और संदेश पढ़ने के बाद वक्त हो गया है, कुछ अन्य पत्रों को शामिल करने का। इसी क्रम में पेश है, अमेठी की श्रोता मधु द्विवेदी की कविता, जो कि उन्होंने मेले पर लिखी है। जिसका शीर्षक है,

एक्सपो मेला---

चीन मेँ लगा है विशाल मेला।

ये है व्यापार का एक्सपो मेला।

एक दूजे को समझने का है मेला।

बहुत कुछ सीखने का है मेला।

कुछ लेने कुछ देने का है मेला।

सुख समृद्धि पाने का है मेला।

हाथ मेँ हाथ डालने का है मेला।

पडोसी संग चलने का है मेला।

विकास संग चलने का है मेला।

मधु की कविता का है मेला।।

मधु जी, कविता लिखने के लिए धन्यवाद।

अब पेश प्रियांशु द्विवेदी द्वारा भेजी गई कविता। जो कुछ इस तरह है।

साथ हमेशा चलते रहना, साथी रे।

सहयोग से बल मिला है, सांची रे।

जब मिलकर किया, आयी आँधी रे।

संग संग आयी विकास की क्रान्ती रे।

साथ हमेशा चलते रहना, साथी रे।

मेले से आयी,सहयोग की पांती रे।

एशिया-चीन ने रची,नयी कहानी रे।

गाथा सुनते है ,C.R.I. की जुबानी रे।

कविता भेजने के लिए आपका धन्यवाद।

दोस्तो, इसी के साथ आज के प्रोग्राम में पत्र पढ़ने का सिलसिला संपन्न होता है, अगले हफ्ते आपसे फिर होगी मुलाक़ात। हमें उम्मीद है कि आप अपने बहुमूल्य सुझाव यूं ही भेजते रहेंगे। अगर वेबसाइट पर जारी टेक्स्ट में कोई त्रुटि हो तो, हमें ज़रूर अवगत कराईएगा। धन्यवाद।

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