अनिलः अगर आप वक्त के पीछे भागते हैं तो खुशियों से समझौता करना पड़ सकता है। क्योंकि वैज्ञानिकों ने कहा है कि हर वक्त समय के पीछे पड़े रहने से खुशियों की उम्र कम हो जाती है।
शोधकर्ताओं ने कई शोधों के बाद पाया कि जब लोग समय को धन के बराबर जरूरत से अधिक आंकने लगते हैं, तो वे अधिक व्यग्र महसूस करते हैं और किसी भी हासिल की गई उपलब्धि से उन्हें कम खुशी मिलती है। और इस प्रकार की मानसिकता हमारी खाली वक्त का आनंद उठाने की क्षमता को प्रभावित करती है।
शोध के लेखक ने बताया कि पिछले 50 साल में अमेरिका में लोगों के पास खाली समय बढ़ा है लेकिन उसके मुकाबले उनकी खुशी में कोई इजाफा नहीं हुआ है। इसके विपरीत लोग अपने उपर समय का अधिक दबाव महसूस करते हैं।
दोस्तो चर्चा आगे भी जारी रहेगी, पहले सुनते हैं अगला सांग जिसे हम पेश कर रहे हैं शालीमार फिल्म से, बोल हैं हम बेवफा हरगिज न थे।
इसे पसंद करने वाले हैं जुगसलाई टाटानगर से इंद्रपाल सिंह भाटिया, इंद्रजीत भाटिया, साबो भाटिया, सिमरन भाटिया, सोनक भाटिया, मनजीत, बंटी, जानी, लाडो, मोनी, रश्मि व पाले भाटिया आदि ।
लिलीः वैसे कुछ पैरेंट्स बच्चों के ऊपर अपनी इच्छाए थोपते हैं और उनकी सफलता के लिए सख्त व्यवहार को एक जरिया भी समझते हैं। लेकिन एक नए अध्ययन के मुताबिक मां की सख्ती वास्तव में बच्चे में आत्मसम्मान में कमी और उनमें कुंठा का कारण बन सकती है।
चीनी लेखक एमी चुआ ने अपनी किताब 'बैटल हिम ऑफ द टाइगर मदर' में लिखा है कि एशियाई लोगों में अभिभावकों का अधिक दबाव बच्चों को अकादमिक और खेलकूद दोनों के स्तर पर सफल बनाने में मददगार है।
अनिलः दूसरी ओर मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता डेसिरी क्विन का कहना है कि वास्तव में अच्छी उपलब्धियां हासिल करने वाले बच्चे माता-पिता की महत्वाकांक्षाओं से कुंठा का शिकार हो जाते हैं और अन्य छात्रों की तुलना में तनाव में आ जाते हैं।
दोस्तो आप लोग क्या सोचते हैं इस बारे में हमें जरूर लिखिएगा, लेकिन अभी वक्त है अगले गीत का जिसे हमने लिया है, फिल्म, मेरा पहला-पहला प्यार से, बोल हैं मेरा पहला-पहला प्यार....इसे सुनने की फरमाईश की है पूर्वी चंपारण से राम बिलास प्रसाद, बंशी प्रसाद, नगीना प्रसाद, धनीलाल, राजा बाबू, अभय कुमार, अविनाश कुमार, बलीराम प्रसाद, मुकेश कुमार, रंजीत कुमार, शैलेश कुमार, राधा कुमारी, संगीता, सविता व सरिता आदि ने।