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हायनान के पत्थर के गाँव की यात्रा
2011-12-19 19:23:42

चीन के दक्षिणी प्रांत हायनान के हायखोय शहर में एक उपनगर श्रीशान है। यहाँ पर आज भी प्राचीन कालीन स्वरूप का गाँव मौजूद है। इस गाँव की प्रत्येक वस्तु का संबंध लावा पत्थर से है। हजारों सालों से यहां के लोग इसी पत्थर पर निर्भर हैं। इसी पत्थर का निर्माण कर यहां एक विशेष गाँव का निर्माण किया गया है जहां पर घरों के दरवाजे, कमरे, रास्ते, दीवारें आदी, आम जीवन में उपयोग आने वाली वस्तुएं सभी लावा पत्थर से निर्मित है। इस गाँव में ऐसा लगता है जैसे आप किसी लावा पत्थर के नगर में आ गए हैं। हाय खोउ में इसी तरह का एक गाँव हजारों सालों से मौजूद है जिसका नाम रूंग थांग गांव है।

हाय खोउ शहर से दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगभग आधे घंटे के सफर के बाद हमलोग लावा पत्थर गाँव रूंग थांग पहुंचे। जब हम लोग यहाँ पहुंचे तो हमलोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि यहां पर घरों के दरवाजे, दीवारें, छतें सभी पत्थरों से निर्मित थे। चारों तरफ पत्थर ही पत्थर देखकर, हमें लगा हमलोग वास्तव में पाषाण काल में आ चुके हैं। गांव में, काले-काले पत्थरों को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यहां पर लावा उत्पन्न होने की कई कहानियां छुपी हैं।

गांव में एक जगह कुछ लोग पेड़ों के निचे बैठकर गपशप लगाते हुए दिख रहे थे। उन्हीं में से एक 91 वर्षिय वृद्ध ने हमें बताया कि कभी इस गाँव में 60 परिवार रहा करते थे। लगभग 20 साल पहले यहां से कुछ लोग पास के गांव में घर बनाकर रहने लगे। अभी इस गाँव में सिर्फ पाँच-छः वृद्ध परिवार ही रह रहे हैं। इस गाँव के ये वृद्ध लोग यहां से नहीं जाना चाहते हैं और हरेक दिन यहां एक साथ बैठकर गपशप कर बिते हुए दिनों को याद करते हैं।

इस गाँव में आने वाले पर्यटक सभी वृद्ध व्यक्तियों को दो तीन युवान देते हैं। सभी लोग न केवल खुशीपूर्वक पैसे ले लेते हैं बल्कि खुशी-खुशी पर्यटकों का गाईड भी बन जाते हैं। जब हमलोग गांव के लावा पत्थर सड़क से होकर गुजर रहे थे तो सड़क के दोनों किनारों पर स्थित लावा पत्थर से बने मकान चमक रहे थे। मकानों के दरवाजे और दीवारें सभी वास्तविक लावा पत्थरों से बने हुए हैं, जो बहुत ही आश्चर्यजनक लगता है। बाहर से देखने पर, यह दीवार समतल दीखता है जबकि पत्थरों का आकार एक जैसा नहीं है। इन दीवारों में पत्थरों को जोड़ने के लिए किसी भी प्रकार के पदार्थ का इस्तेमाल नहीं किया गया है। लेकिन अंदर से देखने पर दीवारें समतल नहीं दिखती हैं। पत्थरों के बीच से सूर्य की रोशनी आती हुइ ऐसे दीखती है जैसे कोई जाल बना रखा हो। कुछ दूर और आगे जाने पर हमने देखा कि कुछ मकानों के पत्थर समतल हैं जबकि कुछ मकानों के पत्थर उबड़-खाबड़ हैं। उसी गांव के निवासी वांग यींग क्वी ने कहा

साधारण तौर पर लोग घर बनाने के समय पत्थरों को जस के तस इस्तेमाल कर मकान बनाते हैं इसलिए दीवारें समतल नहीं दिखती है। लेकिन कुछ अमीर लोग बड़े-बड़े पत्थरों को तराश कर मकान बनाते हैं इसलिए दीवारें समतल दिखती हैं।

एक विरान घर के सामने जब हम खड़े हुए तो घर के दरवाजे पर दो पत्थर के खंभे दिख रहे थे जिसपर सुंदर-सुंदर फूल अंकित थे, जिससे पता लगता था कि वह किसी अमीर व्यक्ति का घर था। घर के प्रांगण में दो पत्थर के बने कुर्सी भी दिख रहे थे। वहां के स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि, यह एक रईस परिवार का घर है। अगर कोई अतिथी आता है तो वह इस कुर्सी पर बैठकर घर के मालिक के आने का इंतजार करता है। आराम के समय इस कुर्सी पर बैठकर पड़ोसियों से बातचित का भी मजा लेते थे।

इस गांव में चर्चा का विषय न केवल यहां के घर हैं बल्कि घरों के पिछे बने पानी के टैंक भी हैं। इस साल 87 वर्ष के श्रीमान् छन इसी गाँव के वासी हैं। उन्होनें दसों टैंक को एक साथ खोलते हुए कहा कि

पहले यहां के पहाड़ों पर पानी का अभाव था, लोगों को कई मील चलकर पानी लाना पड़ता था। अगर घर में पानी का टैंक ज्यादा होगा तो बारिश का पानी जमा कर उसे आम जीवन में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए उस समय यह कहावत बहुत प्रचलित था "पानी भी तेल से मंहगा है, उसी के घर में शादी जिसके घर पानी का टैंक ज्यादा"। पहले के जमाने में लोग शादी के समय लड़के के परिवार पानी के टैंक की संख्या और घर के दीवार के आधार पर परिवार की संपन्नता का आकलन करते थे। और उसी घर में लड़की की शादी करते थे जिस घर में पानी का टैंक ज्यादा होता था। पानी का टैंक ज्यादा होने से लड़कियों को पानी लाने के लिए मिलों नहीं चलना पड़ता था। उस समय लड़कियों के शादी में पानी की टैंक भी दहेज के सामान के रूप में गिना जाता था।

मेरे घर में चार बहुँए हैं। चारों शादी के बाद जब हमारे घर आयी थी तब अपने साथ दो-दो पानी का टैंक लेकर आयी थी।

आज के जमाने में लोगों के पास आसानी से प्राकृतिक जल उपलब्ध है। इसलिए अब ये पानी के टैंक बिती हुई कहानियों को ही बयान करती हैं।

प्राचीन कालीन इमारतों के अलावा, इस गांव में पत्थरों के ताबूत देखे जा सकते हैं। रूंगथांग गांव के ताबूत को चीन का सबसे विशेष ताबूत की संज्ञा दी जा सकती है। रूंगथांग गांव से पश्चिम दिशा में लगभग 200 मीटर आगे जाने पर जमीन के उपर पत्थरों का नजारा देखा जा सकता है। एक ताबूत की लंबाई लगभग 2 मीटर होती है जो देखने में बिल्कुल लकड़ी के ताबूत जैसा लगता है। ताबूत को ढ़कने के लिए भी पत्थर से ही बने ढक्कन का प्रयोग किया जाता है। उसी गांव के निवासी वांग पाओ क्वी ने हमें बताया

यहां पर जमीन का बहुत अभाव है। चारों तरफ लावा पत्थर है। यहां के स्थानीय लोगों में एक कहावत प्रचलित है। यहां की जमीन तीन गज चौड़ी और तीन गज मोटी ही होती है। इसलिए लोग मरने के बाद ताबूत को अक्सर अपनी जमीन में ही रखते थे। इसलिए उस समय यह एक परंपरा भी बन गई।

इस तरह के ताबूत इस गांव में कितने हैं, इसका सही-सही अंदाजा यहां के लोगों को भी नहीं है। यहां के ताबूत भी यहां के निवासियों की तरह ही पत्थर में बनते हैं पत्थर में ही रहते हैं।

लावा पत्थरों के इस गांव में यहां की सबसे ज्यादा रहस्यमयी चीजें यहां की गुफाएं है। यहां के स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि, इस गांव से कुछ दूरी पर लावा पत्थरों का गुफा है जिससे भूगर्भियों ने लावा पत्थर का संग्रहालय नाम दिया है। उनमें, शू शिएन रन और वोलुंग गुफा सबसे बड़ा है। ये गुफाएं एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। यह सब बहुत ही रोचक और रहस्यमयी है।

रूंगथांग के दक्षिण-पश्चिम में वोलुंग गुफा स्थित है। ये गुफाएं एक-दूसरे से जुड़ी होने के कारण, किसी भूल-भूलैया महल से कम नहीं लगती है। 91वर्षिय श्रीमान् चुंग ने हमें बताया कि, जापान विरोधी युद्ध के समय, यहां के स्थानीय लोग जापानी आक्रमणकारियों से बचने के लिए इसी जगह का सहारा लेते थे।

शिएन रन गुफा, वोलुंग गुफा से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुफा के अंदर वातावरण अच्छा है, लोगों को सांस लेने में तकलीफ नहीं होती है। जब हमलोग इस गुफा में लगभग 20 मीटर आगे बढ़े तो गुफा के अंदर से आकाश दिखाई दे रहा था। गुफा में एक गोलाकार छिद्र था जिससे होकर स्वच्छ हवा अंदर आ रहा था। जब हमलोग दाहिने दिशा में कुछ दूर आगे बढ़े तो हमें लगभग हजार लोगों वाला एक बड़ा सा हॉल दिखा। कहा जाता है यहां पर एक साथ हजार लोग आसानी से बैठ सकते हैं। इस गुफा से और भी कई गुफाएं जुड़ी हुई हैं। एक छोटी सी गुफा को पार करने के बाद हमलोग एक और बड़ी गुफा में पहुंच गए। गुफा से बाहर निकलने के बाद अंदर के माहौल को बयान करना बहुत कठिन लग रहा था। सारा शरीर एक अजीब रोमांच से भरा हुआ था। गांववासी चुंग ने हमें बताया

गुफा के अंदर गर्मी, जाड़ा, वसंत सभी ऋतुओं का आनंद उठाया जा सकता है। हम हमलोग छोटे थे तब गर्मियों में स्कूल से निकलने के बाद दोपहर में यहां पर कुछ देर के लिए आराम करते थे। बहुत सुकुन महसूस होता था। ऐसा लगता था जैसै वातानुकुलित कमरे में बैठे हो। सर्दी में यह जगह काफी गर्म होता था। बचपन में हमलोग अक्सर यहां खेलने आया करते थे। सबकुछ बहुत मजेदार था।

कुछ दूर आगे जाने पर और भी बहुत सारे गुफाओं के द्वार देखे जा सकते हैं। कुछ लोगों ने हमें बताया कि, यहां पर सभी द्वार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ऐसा लगता है जैसे कोई प्राकृतिक रास्ता हो। यहां कि गुफाओं का अभी मरम्मत नहीं हुआ है इसलिए पूरी तरह से लोगों के लिए नहीं खुला है। गुफा के अंदर अभी भी वास्तविक रूप को देखा जा सकता है। पर्यटक यहां पर फोटों लेकर अपनी याद के लिए रखते हैं। हायनान विश्वविद्यालय के एक शिक्षक भी अपने दोस्तों के साथ यहां भ्रमण करने आए हुए थे।

हां, हमलोग अपने दोस्तों के साथ यहां घुमने आए हैं। इस जगह की अपनी विशेषता है। सभी जगह लावा पत्थर फैला हुआ है। ऐसा लगता है जैसे इतिहास यहीं छुपा है।

दोस्तो, रूंगथांग गाँव की तरह ही हायनान में कई ऐतिहासिक चीजें अभी भी छुपी हुई है। इन ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण ऐसा लगता है जैसे इतिहास के किसी पन्ने की सैर कर रहे हों।

श्रोताओं, आज का कार्यक्रम आपको कैसा लगा, हमें जरूर लिखिएगा। अब विकास को आज्ञा दीजिए, नमस्कार।

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