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चीन-रूस-भारत संबंधों को पूर्ण रूप से आगे बढाना चाहिएः चीन
2013-11-11 14:20:04

10 नवम्बर की रात को चीन, रूस और भारत के विदेश मंत्रियों की 12नीं बैठक नई दिल्ली में आयोजित हुई। इसमें तीनों देशों के विदेश मंत्रियों ने त्रिपक्षीय सहयोग, समान रूचि वाले अंतर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय मुद्दों पर गहन रूप से विचार-विमर्श किया। बैठक के बाद आयोजित न्यूज ब्रीफिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग ई ने कहा कि रणनीतिक एवं चतु्र्मुखी दृष्टि से चीन-रूस-भारत सबंधों को देखना चाहिए और उन्हें आगे बढाना चाहिए।

चीन,रूस और भारत की यह विदेश मंत्री-बैठक नई दिल्ली के हैदराबाद भवन में आयोजित हुई। इसमें तीनों देशों के त्रिपक्षीय ठोस सहयोग, अफगानिस्तान और ईरान के परमाणु कार्यक्रम जैसे मुद्दों पर विचार-विनिमय किया गया। बैठक के पश्चात आयोजित न्यूज ब्रीफिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग ई ने सब से पहले बैठक में प्राप्त उपलब्धियों की जानकारी दी। उनका कहना हैः

`चीन, रूस और भारत अलग-अलग तौर पर विश्व के दो बड़े महाद्वीपों पर अवस्थित होने के कारण तीन बड़े सागरों को आपस में जोड़ते हैं और तीनों देशों की आबादी दुनिया की कुल जनसंख्या का 40 प्रतिशत भाग बनती है तथा तीनों देशों का क्षेत्रफल पूरी दुनिया के 22 प्रतिशत से अधिक भाग बनता है। बल्कि तीनों देशों को विश्व महाशक्तियों और उभरते बाजार वाले देशों के रूप में देखा गया है। इस बैठक में तीनों देशों के विदेश मंत्रियों ने समान दिलचस्पी वाले वैश्विक एवं क्षेत्रीय मसलों, खासकर त्रिपक्षीय सहयोग पर अच्छी तरह से विचारों का आदान-प्रदान किया और अहम सहमति प्राप्त की। इस बैठक से एकजुटता, समंवय और सहयोग की भावना दिखाई गई है और अनेक सकारात्मक उपलब्धियां भी हासिल की गई हैँ।`

वांग ई ने कहा कि रणनीतिक एवं चतुर्मुखी रवैया अपनाते हुए चीन-भारत-रूस के त्रिपक्षीय सहयोग को देखने के साथ-साथ उसे आगे बढाना भी चाहिए, ताकि यह सहयोग तीनों देशों में रणनीतिक विश्वास को बढाने, समान रूखों में समंवय बिठाने और व्यावहारिक सहयोग को गहन बनाने पर केंद्रित हो सके। सर्वमान्य है कि तीनों देशों के सहयोग से पूरी दुनिया लाभांवित होगी। वांग ई ने कहाः

`चीन, भारत और रूस का हाथ में हाथ मिलाकर सहयोग करना न केवल खुद इन तीनों देशों की जनता को, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों को भी लाभ पहुंचाएगा। तीनों देशों के व्यावहारिक सहयोग से पूरी दुनिया के आर्थिक विकास में बड़ी प्रेरकशक्ति का संचार होगा और तीनों देशों के अधिक रणनीतिक समंवय से यूरेशियाई महाद्वीप में शांति एवं स्थिरता की अधिक गांरटी होगी। तीनों देशों ने एक ही स्वर में कहा कि वे मानव-जाति के इतिहास की प्रक्रिया में और भी बड़ा सकारात्मक बल अर्पित करेंगे।`

अफगान मुद्दे के बारे में सवाल के जवाब में वांग ई ने कहा कि अफगान मुद्दा इस क्षेत्र में स्थित चीन, भारत और रूस समेत विभिन्न देशों का ध्यान खींचने वाले प्रमुख मुद्दों में से एक है। अफगानिस्तान चीन का एक मैत्रीपूर्ण पड़ोसी है। चीन ऐसा एक अफगानिस्तान देखना चाहता है, जो एकता के सूत्र में बंधकर विकास, सुरक्षा एवं स्थिरता की राह पर आगे बढे। वांग ई ने कहाः

`हम हमेशा अफगानिस्तान की संप्रभुत्ता, स्वतंत्रता एवं प्रादेशिख अखंडता के साथ-साथ अफगान जनता के उन के देश की वस्तुस्थिति के अनुसार विकास का रास्था चुनने के अधिकार का भी सम्मान करते हैं और हमने अफगानिस्तान के पुनःनिर्माण में सक्रियता से यथासंभव मदद दी है। हमारा मानना है कि अफगानिस्तान एक कुंजीभूत दौर से गुजर रहा है। इस स्थिति में अफगान जनता के लिए यह जरूरी है कि वे अपने देश के भविष्य के लिए एकजुटता से कोशिश करें, बेशक यह भी जरूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय सहायता का हाथ बढाए।

अफगानिस्तान के वर्तमान हालात से कैसे निपटाया जाए? इस सवाल के जवाब में वांग ई ने कहा कि संबद्ध तीन पहलुओं को ध्यान में रखा जाना अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उनके अनुसार

`सब से पहले अफगानिस्तान में आम चुनाव के बेरोकटोक एवं सफल आयोजन को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। स्थिर संक्रमणकाल अफगानिस्तान और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय दोनों के हित में होगा। दूसरे, अफगानियों की अगुवाई वाली अफगान-मुद्दे के राजनीतिक समाधान की प्रक्रिया का समर्थन किया जाना चाहिए और तीसरे, अफगानिस्तान की सहायता के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोशिशों में संयुक्त राष्ट्र को उस की अहम भूमिका जारी रखने का साथ दिया जाना चाहिए।`

इसके अलावा रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव और भारत के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने भी चीन-रूस-भारत की त्रिपक्षीय सहयोग-व्यवस्था, कोरियाई प्रायद्वीप की परिस्थिति, ईरान के परमाणु कार्यक्रम और आतंक-विरोध में सहयोग संबंधी सवालों के जवाब दिए।

गौरतलब है कि योजनानुसार सोमवार को नई दिल्ली में हो रहे 11वें यूरेशियाई विदेश मंत्री-सम्मेलन में तीनों देशों के विदेश मंत्रियों को अन्य दसियों एशियाई एवं यूरोपीय देशों के विदेश मंत्रियों के साथ समान ख्याल वाले क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श करना है।

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