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चीन की यात्रा कर रहे भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 24 अक्तूबर को चीनी कम्युनिस्टर पार्टी के सेंट्रल पार्टी स्कूल में भाषण दिया, और चीन-भारत संबंधों व क्षेत्रीय मामलों पर अपने विचार पर प्रकाश डाला।
इस बार मनमोहन के भाषण का मुद्दा है नये युग में भारत व चीन। सबसे पहले उन्होंने यह कहा कि चीन-भारत संबंध विश्व में सबसे अलग और एकमात्र हैं। क्योंकि इन दोनों देशों का हजारों वर्ष पुराना इतिहास रहा है। और दोनों ने आर्थिक विकास में अच्छी उपलब्धियां हासिल की हैं। वर्तमान में चीन व भारत विश्व में सबसे बड़े विकासशील देश भी हैं। वर्तमान की विश्व आर्थिक मंदी में चीन व भारत को मिल-जुलकर इसे दूर करना चाहिये। मनमोहन के विचार में चीन व भारत दोनों बड़े कृषि प्रधान देश हैं, इसलिये कृषि के क्षेत्र में भी दोनों के सहयोग की संभावना व्यापक है। साथ ही वे चीनी उद्यमों को भारत की बुनियादी सुविधाओं के निर्माण में पूंजी-निवेश करने का स्वागत करते हैं। इसके अलावा शहरीकरण की प्रक्रिया में चीन व भारत के सामने शायद ऊर्जा व प्रदूषण जैसे चुनौतियां मौजूद होंगी। लेकिन उन चुनौतियों का सामना करने में चीन व भारत एक दूसरे से सीख सकते हैं या अनुभव साझा कर सकते हैं, यहां तक कि सहयोग भी कर सकते हैं। साथ ही चीन व भारत के बीच सुरक्षा व प्रतिरक्षा सहयोग भी मनमोहन के भाषण में शामिल हुआ।
अपने भाषण में मनमोहन ने कहा कि चीन व भारत दोनों बड़ी जनसंख्या वाले देशों ने आर्थिक आधुनिकता व गरीबी से निपटने में बड़ी प्रगति प्राप्त की। चीन की आर्थिक सफलता ने विशाल विकासशील देशों को प्रोत्साहन दिया। बीते दस वर्षों में भारत ने भी 8 प्रतिशत की औसत वार्षिक आर्थिक वृद्धि प्राप्त की। उन्होंने जोर देकर कहा कि इतिहास से यह जाहिर है कि चीन व भारत का विकास नहीं रोका जा सकता। दोनों देशों के मन में अन्य देशों को दबाने की इच्छा भी नहीं है।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि चीन व भारत के सामने समान चुनौतियां मौजूद हैं। केवल आपसी विश्वास के आधार पर सहयोग करने से दोनों देश अर्थव्यवस्था का निरंतर विकास कर पाएंगे। मनमोहन ने कहा कि चीन व भारत सिलसिलेवार क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत कर सकते हैं। उनमें बुनियादी सुविधाओं का निर्माण, उद्यमों का प्रबंधन, ऊर्जा व विनिर्माण आदि शामिल हुए हैं। उन्हें विश्वास है कि अगर दोनों देश अच्छी तरह से सहयोग कर सके, तो कारगर रूप से सीमा व अपने क्षेत्र की शांति बहाल की जा सकेगी।
मनमोहन के मुताबिक वर्तमान में एक बहुध्रुवीय दुनिया बन रही है। पर इसकी रूपरेखा इतनी स्पष्ट नहीं है। पश्चिमी देशों में संरक्षणवाद दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। विश्व व्यापारिक व्यवस्था में भी शायद भेदभाव होगा। भारत व चीन को आशा है कि एक खुली, एकीकृत व स्थिर विश्व व्यापार व्यवस्था बहाल हो सकेगी। हालांकि हम अपने क्षेत्र में आर्थिक एकीकरण की समान कोशिश कर रहे हैं। पर साथ ही हमें व्यापार व पूंजी-निवेश का समर्थन देने से नवोदित बाजारों के सामने मौजूद खतरों को दूर करना चाहिये। ब्रिक्स देशों में विकास बैंक व भंडार बैक की स्थापना सहयोग में एक अच्छा उदाहरण है। चीन व भारत के बीच सहयोग विश्व वित्तीय संस्थाओं के सुधार को भी तेज कर पाएगा।
मनमोहन ने यह भी कहा है कि हमने राजनीतिक सिद्धांतों पर समझौता हासिल किया है। अब हम एक ढांचागत समझौते पर विचार-विमर्श कर रहे हैं। सीमा मसले का समाधान करने में यह दोनों पक्षों द्वारा स्वीकृत एक प्रस्ताव है। चीन व भारत के संबंधों में सबसे शक्तिशाली भाग आर्थिक सहयोग है। चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक व आर्थिक सहयोग साझेदार है। हालांकि दोनों देशों के बीच कुछ समस्याएं भी हैं, जैसे सीमा मसला और व्यापार का असंतुलन इत्यादि। ये मामले शायद दोनों देशों के विकास के रास्ते पर बाधाएं बनें। और चीन-भारत के बहुपक्षीय व द्विपक्षीय सहयोग पर असर पड़ेगा। लेकिन मुझे विश्वास है कि हम दोनों के बीच सहयोग करने की व्यापक संभावना मौजूद है।
चंद्रिमा