131018ss
|
भारत के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की चीन-यात्रा से पहले भारतीय अंग्रेजी अखबार—टे टेलिग्राफ़ के संवाददाता चारु सुतान कस्तुरी ने एक लेख लिखकर कहा कि चीन और भारत प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि दोस्त हैं।
कस्तुरी के लेख में लिखा गया है कि दुनिया में प्राचीन सभ्यता वाले दो बड़े देश होने के नाते चीन और भारत के बीच आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान का बहुत पुराना इतिहास है। चालू वर्ष दोनों देशों के संबंध आपसी विश्वास और स्थिरता के आधार पर परिपक्व तौर पर आगे बढ रहे हैं। भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह चीन की यात्रा पर जाने वाले हैं। उनकी इस यात्रा से प्रेरित होकर भारत-चीन संबधों पर नए दौर की चर्चा की जाएगी। लोकमत है कि भारत-चीन संबंधों में तनाव और विरोध जैसे असामंजस्यपूर्ण तत्व होने के बजाय अधिक विश्वास और मैत्री के विषय होने चाहिए।
कस्तुरी ने अपने लेख में लिखा है कि पिछले सदी के 70 वाले दशक के अंत में चीन ने सुधार एवं खुलेपन का कार्य शुरू किया। इसके बाद के 30 वर्षों से अधिक समय में चीन ने अपनी करीब तमान आबादी को गरीबी से छुटकारा दिलाकर विकास का उस लक्ष्य को पूरा कर लिया है, जिसे पूरा करने में दूसरे देशों को शादय सौ वर्ष लगाना पड़ता है। उधर भारत में आर्थिक सुधार की रेलगाड़ी पिछली शताब्दी के 1991 में भी चलनी शुरू हुई, तो भी यह गाड़ी तेजी से आगे चली और आर्थिक सुधार-कार्य में भारी प्रगति हुई। भारत और चीन दोनों देशों के नेताओं ने अर्थतंत्र के विकास और जनजीवन के स्तर की उन्नति को राष्ट्रीय विकास-कार्य में प्राथमिक स्थान पर रखा है। लेकिन दोनों देशों को अब भी गरीबी-उम्मूलन और जनजीवन-सुधार के क्षेत्र में बहुत सारे काम करने है। दोनों देशों के नेता साफ़ तौर पर जानते हैं कि हमेशा कई ऐसे देश मौजूद हैं, जो भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण माहौल बनाना पसंद करते हैं। इससे दोनों देशों को सतर्क रहना चाहिए और अपने-अपने ध्यान को आर्थिक निर्माण पर केंद्रित करना चाहिए तथा अपने-अपने आर्थिक एवं सामाजिक विकास के कार्य को बाहरी हस्तक्षेप से दूर रखना चाहिए।
कस्तुरी के लेख का कहना है कि प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और उनकी सरकार चीन के साथ और भी करीबी संबंध बनाने के कूटनीतिक रूख पर कायम हैं। उधर चीन ने अपना रूख प्रकट किया कि वह पड़ोसियों जैसी मैत्री और विकास की वैदेशिक नीति पर डटा रहेगा और भारत के साथ अपने मित्रवत संबंधों को आगे ले जाने की कोशिश करेगा। बल्कि दोनों देशों के नागरिक भारत-चीन संबंधों के विकास के प्रति दोनों देशों के नेताओं की प्रतिबद्धता पर पूरा विश्वास रखते हैं।
लेख के अनुसार भारत और चीन आर्थिक क्षेत्र में एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। चीन के लिए भारत एक बड़ा बाजार है, उसके आर्थिक विकास को इस बाजार की बड़ी आवश्यकता है। उधर भारत के लिए चीन निहित शक्ति से ओत-प्रोत एक और बड़ा बाजार है, भारतीय निवेशकों को इस बाजार से और बड़ा मुनाफ़ा प्राप्त हो सकता है। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए, तो चीन का आर्थिक वर्चस्व विनिर्माण-उद्योग पर आधारित है और भारत अपने सेवा-उद्योग के लिए ताकतवर है। दोनों देशों ने स्पष्ट रूप से इन विशेषताओं को देख लिया है, इसलिए दोनों देश द्विपक्षीय आर्थिक एवं व्यापारिक संबंधों के विकास में अवश्य ही हाथ मिलाकर कठिनाइयों को दूर करेंगे और सहयोग के रास्ते पर आगे बढेंगे।
कस्तुरी के लेख में लिखा गया है कि गत अप्रैल में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच सीमा पर छिट-पुट मुठभेड़ें हुईं। लेकिन दोनों देशों की सरकारों और राजनेताओँ ने बड़ा धैर्य और संयम दिखाया। इस तरह की आपसी समझदारी और विश्वास के कारण आखिरकार शांतिपूर्ण वार्ता के जरिए सीमा से जुड़ी समस्याओं को दूर कर लिया गया है। इससे जाहिर है कि पड़ोसियों के बीच मुठभेड़ एवं गलतफहमी धैर्य के साथ विचार-विमर्श, न ही आरोप-प्रत्यारोप और हिंसा के जरिए हल हो सकती हैं। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और प्रधान मंत्री ली खछ्यांग ने भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के साथ सीमा-मुद्दे के समाधान पर एकमतता प्राप्त की। सीमा-मुद्दे के समाधान में दोनों देशों के नेताओं ने मैत्रीपूर्ण रवैया दिखाया है।
गत मई माह में चीन के नवनिर्वाचित प्रधान मंत्री ली खछ्यांग ने भारत को अपनी पहली विदेश-यात्रा का पहला पड़ाव तय किया। इससे पूरी तरह साबित है कि चीनी नेता भारत और चीन-भारत रिश्तों को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं। इसपर सकारात्मक प्रतिक्रिया के रूप में भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जल्द ही पेइचिंग जाने वाले हैं। भारत-चीन राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद पिछले 59 वर्षों में ऐसा पहली बार होगा कि एक ही साल के भीतर दोनों देशों के शीर्ष नेता एक दूसरे के यहां यात्री पर जाते हैं।
कस्तुरी ने अपने लेख में बल देकर कहा कि अगले साल भारत के पूर्व प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू और चीन के पूर्व प्रधान मंत्री चो एनलाई द्वारा वर्ष 1954 में संयुक्त रूप से प्रस्तुत पंचशील सिद्धांत की 60वीं वर्षगॉठ होगी। इसके पहले दोनों देशों के राजनेताओं के बीच आवाजाही से भारत-चीन का परिपक्व एवं स्थाई विश्वसनीय संबंध भी जाहिर है।
चीन अपनी परंपरा के अनुसार मनमोहन सिंह के सम्मान में मदिरा पेश करेगा, हालांकि मनमोहन सिंह को मदिरा पीना नहीं आता। लेकिन भारत और चीन के बीच दोस्ती, स्थिरता और अपनापन की भावना मदिरा से प्रशंसा करने के योग्य है।