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पश्चिमी चीन का 14वां अंतर्राष्ट्रीय मेला आगामी 23 से 27 अक्तूबर तक चीन के सछवान प्रांत की राजधानी छंगतु में आयोजित होगा। मेले के दौरान पश्चिमी चीन का छठा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मंच और वर्ष 2013 चीन-भारत मंच भी 25 अक्तूबर को आयोजित होंगे। चीन और भारत के सरकारी अधिकारी, विशेषज्ञ एवं विद्वान तथा विभिन्न सामाजिक जगतों के प्रतिनिधि मंच में हिस्सा लेंगे।
वर्ष 2013 चीन-भारत मंच चीन के वाणिज्य मंत्रालय के व्यापारिक एवं आर्थिक सहयोग अनुसंधान-प्रतिष्ठान, सछ्वान प्रांत के सामाजिक विज्ञान-अकादमी, 21वीं सदी वाले चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान केंद्र और भारतीय आर्थिक एवं सामाजिक विकास अकादमी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाएगा। मंच के एक प्रमुख जिम्मेदार व्यक्ति---सछ्वान प्रांत के सामाजिक विज्ञान अकादमी के उपप्रधान क्वो श्याओ-मिन ने कहा कि चीन और भारत के इस मंच में मुख्य रूप से दोनों देशों के आर्थिक विकास एवं सहयोग से जुड़े मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाएगा। उनका कहना हैः
`इस मंच में 3 प्रमुख मुद्दों पर विचार-विमर्श होगा। एक मुद्दा यह है कि आर्थिक एवं सामाजिक विकास की दृष्टि से चीन और भारत की एक दूसरे से तुलना की जाएगी, जिसमें आर्थिक विकास की रणनीति और आर्थिक समायोजन में दोनों देशों के बीच अंतर और समानताओं की चर्चा भी शामिल होगी। दूसरा मुद्दा है ठोस मुद्दों को लेकर चीन और भारत की एक दूसरे से तुलना, जिसमें शहरीकरण के दौरान जनसंख्या, अर्थतंत्र के तेज विकास के साथ सामाजिक संयुलन, आपसी लाभ और संस्कृति के इतिहास एवं वर्तमान स्थिति संबंधी सवाल शामिल होंगे। तीसरा मुद्दा है सछ्वान और भारत के बीच आर्थिक एवं व्यापारिक विकास के आधार और सहयोग की संभावना।`
इस मंच का मुख्य विषय है खुलेपन, सहयोग और आर्थिक वृद्धि। क्वो श्याओ मिन ने कहाः
`हम मानते हैं कि वैश्विक अर्थतंत्र के मुसीबतों में फंसा होने की वर्तमान पृष्ठभूमि में उभरते अर्थव्यवस्था वाले ब्रिक्स देशों के सदस्य के रूप में चीन और भारत दोनों की आर्थिक वृद्धि की अपेक्षाकृत बड़ी विशेषताएं हैं। लेकिन दो बड़े विकासशील देश होने के नाते दोनों देशों को जनसंख्या, संसाधन और गरीबी-उम्मुलन जैसे क्षेत्रों में कई समान चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस स्थिति में दोनों देशों को द्विपक्षीय सहयोग मजबूत करना चाहिए और अपने-अपने द्वार को और अधिक खोलना चाहिए, जिससे कि अर्थतंत्र का और अधिक स्थिर एवं सतत विकास हो सके और वैश्विक अर्थतंत्र को सही दिशा की ओर बढाने में मदद मिल सके।`
दो नवोदित विकासशील देश होने के नाते चीन और भारत एशिया एवं पूरी दुनिया के विकास को बढावा देने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापार का तेज विकास होने के साथ-साथ समग्र रिश्तों में भी तात्विक प्रगति हुई है। बल्कि दोनों देशों के बीच लगातार हुए सहयोग एवं आदान-प्रदान द्विपक्षीय रिश्तों में नई मधुरता का उत्प्रेरक एजेंट साबित हुए हैं। क्वो श्याओ मिन ने विश्वास प्रकट किया कि होने वाला चीन-भारत मंच दोनों देशों के बीच सहयोग एवं आदान-प्रदान को और प्रगाढ़ बनाने में प्रेरक भूमिका निभाएगा। उन का कहना हैः
`मेरे विचार में इस मंच के आयोजन की 3 भूमिकाएं देखी जाएंगी। एक, इस मंच से चीन और भारत के बीच समझ बढेगी और दोनों देश एक दूसरे की श्रेष्ठताओं और कमजोरियों से अधिक वाकिफ़ होंगे। वर्तमान में चीन और भारत को एक दूसरे की जो जानकारी प्राप्त है, वह बेहद सीमित है। दोनों देशों के बीच समझ को आगे बढाने की जरूरत है। दो, इस मंच से चीन और भारत के बीच आदान-प्रदान को नया आयाम दिया जाएगा। चीन और भारत के बीच आर्थिक एवं व्यापारिक आदान-प्रदान में सर्वविदित भारी प्रगति हुई है, लेकिन अकादमी एवं संस्कृति के क्षेत्रों में तथा गैर सरकारी तौर पर आदान-प्रदान की अधिक निहित संभावनाएं मौजूद हैं। इस मंच से दोनों देशों के बीच संस्कृति एवं अकादमी और नीतिगत अनुसंधान के क्षेत्रों में आदान-प्रदान को बल मिलेगा। तीन, इस मंच से दोनों देशों के सहयोग का दायरा बढेगा। इस समय चीन-भारत सहयोग मुख्यतः आर्थिक एवं व्यापारिक आवाजाही जैसे अपेक्षाकृत निचले स्तर पर हो रहा है। लेकिन निवेश के क्षेत्र में दोनों देश अधिक सहयोग कर सकते हैं। इस क्षेत्र में एक दूसरे के लिए हितकारी संभावनाओं का दोहन बाकी है।`
भविष्य को देखकर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान काल में भी जब वैश्विक अर्थतंत्र सुस्ती में चल रहा है, एशिया पूरी दुनिया में आर्थिक एवं सामाजिक विकास का अगुवा है। एशिया के दो बड़े विकासशील देश होने के नाते चीन और भारत निहित शक्ति से ओत-प्रोत हैं। दोनों देशों के अपने-अपने विकास एवं आपसी सहयोग की पूरी दुनिया के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में विशेष भूमिका हो रही है और वैश्विक अर्थतंत्र के पुनरुथान की पूरी प्रक्रिया में भी इस तरह की भूमिका और अधिक ताकतवर सिद्ध होगी।