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कैलिकट का चीन से संबंध
2013-09-24 15:56:11

दोस्तो, भारत के शहरों का जिक्र करते ही ज्यादातर लोगों के जुबान से नई दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों के नाम निकलते हैं। आप शायद जानते होंगे कि भारत के दक्षिण पश्चिमी हिस्से में एक छोटा सा तटीय शहर—कैलिकट भी बहुत ही मशहूर है, जिसका चीन से संबंध कोई 600 सालों से अधिक पुराना है। वहां के लोग आज भी चीनी बर्तनों का इस्तेमाल करते हैं। दिल्ली स्थित हमारे संवाददाता ने हाल ही में इस शहर का दौरा किया।

कैलिकट केरल प्रदेश का तीसरा बड़ा शहर है। बहुत से लोगों को शायद इसकी ज्यादा जानकारी नहीं है। वास्तव में 600 सालों से अधिक समय पहले इस शहर का नाम चीनी पुस्तकों में देखने को मिलता था। उस समय चीन में सुंग और युआन राजवंशों का शासन था और इस शहर को दक्षिणी पड़ोसी देश या प्राचीन बौद्ध देश कहकर पुकारा जाता था। इसके बाद मिंग राजवंश में चीन से इस शहर का संबंध और अधिक करीबी हो गया। सन् 1407 में चीन के मिंग राजवंश के विख्यात नाविक जंग ह ने पहली बार अपने विशाल जहाज-बेड़े के साथ दुनिया के दौरे के दौरान भारत के इस शहर की यात्रा की थी।

एक पार्ट पर ,जहां जंग ह का जहाज-बेड़ा लंगर डाले खड़ा था, कैलिकट शहर के सांस्कृतिक धरोहर मंच के अध्यक्ष सी.के. रामचंद्रन ने जानकारी देते हुए कहाः

`जंग हे के नेतृत्व वाले बेड़े में 200 से अधिक जहाज थे और जहाजों पर कोई 27000 लोग सवार थे। तमाम जहाजों में कीमती चीजें रखी गई थीं। जहाजों में से कुछ आगे चलकर मध्य पूर्व और अफ्रीका पहुंचे और कुछ कैलिकट में रहते हुए व्यापार में लग गए।`

चीन के इस जहाज-बेड़े ने कैलिकट तक चीनी रेशमी कपड़े और चीनी मिट्टी के बर्तन ला दिए थे। उस समय इस शहर में `रेशम` नामक एक व्यापारिक सड़क थी। आज इस सड़क के मूल स्थल पर खड़ी एक चीनी व्यापारी की मूर्ति लोगों को आकर्षित कर रही है। रामचंद्रन ने कहाः

`600 सालों से अधिक समय पहले के चीन के महान नाविक जंग ह की इस शहर की यात्रा की स्मृति में यह मूर्ति खड़ी की गई है। इस मूर्ति से यह दृश्य दिखाई देता है कि एक चीनी व्यापारी एक भारतीय ग्राहक को खूबसूरब रेशमी कपड़ा दिखा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि उन दोनों के हाथ कपड़े के नीचे चोरी-छिपे एक दूसरे से मिले नजर आते हैं। हां, यह उस समय कैलिकट में प्रचलित मोल-भाव का एक तरीका था।`

चीन का यह व्यापारिक जहाज-बेड़ा कैलिकट में लगभग 4 महीनों तक रहा। इस दौरान जंग ह और अपने बेड़े के अन्य नाविक व्यापार करने के अलावा नजदीक की एक छोटी मस्जिद में नमाज पढ़ते थे। यह मस्जिद कई बार पुनःनिर्माण के बाद आज भी सुरक्षित है, जिसे स्थानीय लोगों ने `चीनी मस्जिद` का नाम दिया है। इस की चर्चा करते हुए रामचंद्रन ने कहाः

`लोग इसलिये इस मस्जिद को चीनी मस्जित कहकर पुकारते हैं, इस का कारण शायद यह है कि एक तरफ़ जंग ह और उन के जहाज-बेड़े के अन्य नाविक अक्सर इसमें नमाज पढते थे और दूसरी तरफ़ यहां चीनी मिट्टी के बर्तनों की टुकड़ियां पाई गई हैं।`

इस मस्जिद के साथ चीनी खाद्य पदार्थो के सेवन और चीनी मिट्टी के बर्तनों के प्रयोग की आदत भी आज भी स्थानीय लोगों में बनी रही है। हालांकि 600 सालों से अधिक समय बीत चुका है। जिस तरह इन चीनी वस्तुओं को पुकारा जाता था, वैसे ही आज भी स्थानीय लोग पुकार रहे हैं। केरल के सांस्कृतिक धरोहर कंद्र के प्रमुख नारायण ने कहाः

हमारे जीवन में चीन से जुड़े बहुत से विशेष शब्दों का प्रयोग होता है। आज भी हम चीनी मिट्टी के पर्तनों का इस्तेमाल करते हैं। यहां हरे रंग की एक किस्म की मिर्च मिलती है, जिसे स्थानीय लोग चीनी मिर्च कहकर पुकारते हैं।

नारायण के अनुसार चीन के महान नाविक जंग ह की पहली वैस्विक यात्रा के बाद कैलिकट और चीन के बीच व्यापारिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान लगातार कोई 30 सालों तक चला। वर्ष 1433 में कैलिकट में जंग ह का बीमारी के कारण निधन हो गया।

वर्तमान काल में कैटिकट और चीन के बीच निधियों जैसी कीमती वस्तुओं से भरा जहाज-बेडा आते-जाते नही दिख रहा है, तो भी सांस्कृतिक आदान-प्रदान लगातार होता गया है। वर्ष 2011 के शुरू में कैलिटक में पहला चीनी उत्सव मनाया गया। उत्सव के दौरान चीनी संस्कृति प्रेमी भारतीयों ने परंपरागत चीनी चिकित्सा-पद्धति-एक्यूपंक्चर, एबेकस से गणना और चीनी मुक्केबाजी का प्रदर्शन किया और अपनी संग्रहित चीनी प्राचीन वस्तुओं को दिखाया। गत अप्रैल में पूर्वी चीन के शानतुंग प्रांत में आयोजित पतंग-प्रतियोगिता में कैलिकट से लाया गया एक पतंग, जो परंपरागत भारतीय डिजाइन में बना है, पहले स्थान पर रहा।

सूत्रों के अनुसार चीन और भारत दोनों देशों के छात्र विचार कर रहे हैं कि वे अगले साल दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढाने के लिए जंग ह के कदमनक्शे पर चलेंगे। इसके अलावा कैलिकट विश्वविद्यालय भी किसी चीनी विश्वविद्यालय के साथ सहयोग के आधार पर कंफ्यूशियस-कक्षा खोलने की सोच रहा है।

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