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संयुक्त राष्ट्र विकास एवं योजना कार्यक्रम और चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी की शहरी विकास एवं पर्यावरण अनुसंधानशाला द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई वर्ष 2013 में चीन में मानव-विकास संबंधी रिपोर्ट 27 अगस्त को पेइचिंग में प्रकाशित की गई। इसके अनुसार चीन शहरीकरण के कुंजीभूत दौर में दाखिल होने वाला है। चीन को अपने शहरों पर बढते दबावों को कम या समाप्त करने के लिए ऐसे शहर बनाने चाहिए, जिनका सतत विकास हो सकता है और पर्यावरण आवास के अनुकूल होता है।
संयुक्त राष्ट्र और चीन की इस संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1978 से 2012 तक चीन में शहरीकरण 17.9 प्रतिशत की दर से बढकर 52.6 प्रतिशत की दर तक हो गई है। इससे देखा जा सकता है कि चीन में शहरीकरण की रफ़्तार एवं शहरों में आबादी का विस्तार मानव के इतिहास में अपूर्व हुआ है। अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक चीन के कुल क्षेत्रफल का कोई 70 प्रतिशत भाग शहरी रूप धारण करेगा, अथार्त चीन की करीब 1 अरब आबादी शहरों में बसेगी। जी हां, चीन में शहरीकरण आधुनिक निर्माण का एक ऐतिहासिक कार्य बन गया है और घरेलू मांगों को बढाने की एक बड़ी निहित शक्ति भी हो गई है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि चीन में सुधार एवं खुलेपन का कार्य़ शुरू होने के बाद शहरीकरण के लिए जो कदम उठाए गए हैं, वे उत्पादन एवं तकनीकों के स्तर के नीचा होने की स्थिति में पूंजी और मानव-शक्ति का अधिक निवेश करके आर्थिक लाभ प्राप्त करने पर आधारित हैं। ये कदम सतत विकास की दृष्टि से अनुचित साबित हुए हैं, च्योंकि इस कदमों से शहरीकरण में असंतुलन, अस्थाई विकास, असमंजस्य एवं गैर-समावेश जैसी गंभीर समस्याएं उभरकर आमने आई हैं, जिनसे चीन में पारिस्थितिक सभ्यता के निर्माण की प्रक्रिया बाधित हुई है। इस की चर्चा करते हुए संयुक्त राष्ट्र विकास एवं योजना कार्यक्रम के प्रभारी हेलेन. क्लर्क ने कहा कि चीन में शहरीकरण अपने कुंजीभूत दौर से गुजर रहा है। उनका कहना हैः
`अनेक संबंधित समस्याओं पर चीन को बढते दबावों का सामना करना पड़ रहा है। किस तरह से ऊर्जा एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर ढंग से प्रयोग किया जाए, कैसे शहरों की प्रबंधन-व्यवस्था को परिपूर्ण बनाया जाए, कैसे रोजगार, यातायात, आवास एवं दूसरी बुनिदायी सामाजिक सेवाओं के स्तर को उन्नत किया जाए, सुरक्षा, प्रवासी मजदूरों के जीवन, आबादी के वयोवृद्धीकरण, ढांचागत सुधार और वायु एवं जल-प्रदूषण से जुड़ी चुनौतियों को कैसे निपटाया जाए, ये सब चीन के सामने मौजूद मुख्य समस्याएं हैं।`
श्री क्लर्क ने कहा कि इन समस्याओं का खात्मा इस पर निर्भर करता है कि चीन किस तरह से अपने शहरीकरण को पूरा करेगा।
रिपोर्ट के अनुसार अब चीन में शहरीकरण की प्रणाली अधिक अयुक्तिसंगत दिखाई दे रही है। एक तरफ़ शहरीकरण के काम में गुणवत्ता की बजाए सिर्फ रफ्तार को महत्व दिया जा रहा है। दूसरी तरफ़ शहरीकरण के लिए संसाधनों से जुड़े पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचाया जा रहा है। इस स्थिति को सुधारने के लिए चीनी राजकीय विकास एवं सुधार आयोग के उपपमुख श्ये जंग ह्वा ने कहा कि चीन में शहरीकरण के परंपरागत तरीकों में रद्दोबदल होना चाहिए। उन्होंने कहाः
`आम लोगों में पर्यावरण-संरक्षण के बारे में चेतना बढने के साथ-साथ संसाधनों से विकास-कार्य को सीमित करने वाली समस्या अधिक गंभीर दिख रही है। पारिस्थितिक पर्यावरण की कीमत पर पूंजी एवं मानव-शक्ति के अधिक निवेश से शहरीकरण को आगे बढाने का तरीका अस्थाई साबित हुआ है। पुराने एवं नए शहरों के बीच जैसे-जैसे सार्वजनिक सेवाओं में अंतर बढते जा रहे हैं, सामाजिक अंतरविरोध भी साफ़ तौर पर अधिक होते जा रहे हैं। सेवाओं की लागत को कम करने के उद्देश्य से असमानता पर आधारित सार्वजनिक सेवा-कार्य के जरिए शहरीकरण को तेजी से आगे बढाने का तरीका आगे भी अपनाया जाना असंभव है। ऐसे में चीन में शहरीकरण के दौरान रफ़्तार की बजाय गुणवत्ता को प्राथमिकता देना जरूरी और अनिवार्य होगा।`
श्ये जंग ह्वा ने कहा कि चीन में शहरीकरण के नए कार्य में पारिस्थितिक सभ्यता की अवधारणा और सिद्धांत को शामिल किया जाएगा। इसमें विशेष रूप से मानव और हरित पारिस्थितिक पर्यावरण को बड़ी अहमियत दी जाएगी। उनका कहना हैः
`मानव को अहमियत देने का मतलब है कि मानव पर आधारित शहरीकरण को केंद्र बनाकर बुनियादी सेवाओं एवं बुनियादी सार्वजनिक सेवाओं का समानता के आधार पर विकास किया जाएगा, जिससे कि शहरवासी और गांववासी दोनों शहरीकरण से प्राप्त लाभ को साझा कर सके। हरित पारिस्थितिक पर्यावरण का मतलब है कि पानी, भूमि और अन्य संसाधनों की बचत के सिद्धांत पर कायम रहते हुए शहरीकरण को पूरा किया जाएगा।`
चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के शहरी विकास एवं पर्यावरण अनुसंधानशाला के प्रमुख, इस रिपोर्ट के प्रमुख संपादक फान चा ह्वा ने कहा कि चीन को अपने शहरीकरण के दौरान सतत विकास करने के तरीके को भारी महत्व देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि सतत विकास से न केवल मानव की आजादी से विकल्प चुनने की शक्ति बढेगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी लाभ मिलेगा।` फान चा ह्वा ने कहाः
`शहरों के बेहतर प्रबंधन को विभिन्न स्तरों की सरकारों, उद्यमों और शहरवासियों की समान कोशिशों की जरूरत है। इस तरह शहर अपने निर्माण, प्रबंधन, उत्पादन एवं उपभोग संबंधी क्षेत्रों में सतत विकास की राह पर आगे बढ सकते हैं। अगर हम ने सतत विकास एवं पर्यावरण के सामने मौजूद चुनौतियों का ख्याल नहीं रखा, तो पर्यावरण अपनी क्षमता से परे होकर और भी खराब बन जाएगा और इससे जो समस्या उत्पन्न होगी, वह न सिर्फ आवास, बल्कि आर्थिक एवं सामाजिक विकास को भी अंधेरे में डालेगी।`