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शांघाई सहयोग संगठन का वर्ष 2013 में आतंकवादी विरोधी संयुक्त युद्धाभ्यास 13 जून को कजाखस्तान में आयोजित हुआ। भीड़-भाड़ वाली जगहों में आतंकवादी समूह से निपटना, आतंकवादी कार्रवाई की रोकथाम, और बंधकों का बचाव जैसे विषय इस बार के युद्धाभ्यास का महत्व हैं। सैन्य विशेषज्ञ के अनुसार शांघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के बीच संयुक्त रूप से आतंकवादी विरोधी युद्धाभ्यास की व्यवस्था दिन-ब-दिन परिपक्व हो रही है। इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या भी बढ़ती जा रही है, और युद्धाभ्यास की स्थिति भी वास्तविकता के बहुत नजदीक होती जा रही है। अब पढ़िये इस के बारे में एक रिपोर्ट।
इस युद्धाभ्यास का आयोजन कजाखस्तान द्वारा किया गया। साथ ही किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान उसके सहायक देश हैं। तीन अन्य शांघाई सहयोग संगठन के सदस्य देश यानी चीन, रूस और उज़्बेकिस्तान के प्रतिनिधियों ने युद्धाभ्यास को देखा, भारत, ईरान, पाकिस्तान और तुर्की से आए प्रतिनिधियों और कजाखस्तान स्थित अमेरिका, फ़्रांस और इटली के राजनयिक अधिकारियों को भी इस युद्धाभ्यास को देखने का आमंत्रण दिया गया था। चीनी प्रतिरक्षा विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर वांग बाओ फ़ू के विचार में हाल के कई वर्षों में शांघाई सहयोग संगठन द्वारा आयोजित आतंकवादी विरोधी युद्धाभ्यास वास्तविकता से मेल खाता है। इन देशों में आतंकवाद के विरोध में सहयोग भी ज्यादा गहन हो रहा है।
उन्होंने कहा, हाल के कई वर्षों में सबसे स्पष्ट विशेषता तो संयुक्त कार्रवाई है। विभिन्न देश अपनी अपनी सैन्य शक्ति के द्वारा संयुक्त रूप से आतंकवाद का विरोध करते हैं। इसके अलावा वर्तमान में आतंकवाद विरोधी स्थिति के आधार पर उदाहरण के लिये भीड़-भाड़ भरे शहरों और व्यापारिक केंद्रों में आतंकवाद विरोधी युद्बाभ्यास किया जाता है। जिससे युद्धाभ्यास वास्तविकता से ज्यादा से ज्यादा नजदीक होने के साथ साथ अधिकतर प्रभावी बन जाएगा।
इस युद्धाभ्यास का आयोजन कजाखस्तान द्वारा किया गया था। किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान ने इस युद्धाभ्यास में उसकी सहायता की। इस पर चर्चा करते हुए प्रोफ़ेसर वांग ने कहा कि यह मध्य एशिया की स्थिति से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा, इस युद्धाभ्यास का पैमाना बहुत बड़ा नहीं है। केवल मध्य एशिया के कुछ देशों ने इसमें भाग लिया है। हम जानते हैं कि अब अफ़गानिस्तान एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। भविष्य में उसकी संभावनाएं स्पष्ट नहीं हैं। तालिबान और नाटो के बीच विभिन्न महत्वपूर्ण जगहों में तीव्र संघर्ष हो रहे हैं। वर्तमान में अफ़गानिस्तान में आतंकवादी कार्रवाई भी तेजी से विकसित हो रही है, जिससे मध्य एशिया के देश पीड़ित हैं। इसलिये वे इस युद्धाभ्यास के मुख्य पात्र हैं।
जानकारी के अनुसार शांघाई सहयोग संगठन के ढांचे में पहली बार संयुक्त युद्धाभ्यास वर्ष 2002 के अक्तूबर में आयोजित हुआ। दस से ज्यादा वर्षों में युद्धाभ्यास के स्थल और भागीदार लगातार बदलते रहे हैं। लेकिन युद्धाभ्यास का मुद्दा हमेशा एक ही है, यानी एक साथ पृथकतावाद, आतंकवाद, उग्रवाद का खात्मा करना, और सुरक्षा क्षेत्र में गैर परंपरागत खतरों का विरोध करना। सैन्य विशेषज्ञ इन ज्वो ने कहा कि हालांकि शांघाई सहयोग संगठन में सैन्य सहयोग शामिल है। लेकिन वह किसी तीसरे पक्ष के विरोधी नहीं हैं, वह एक सैन्य गठबंधन भी नहीं हैं। इसलिये वह आतंकवाद और पृथकतावाद के प्रति एक बहुत अच्छा धमकी है।
उन्होंने कहा, शांघाई सहयोग संगठन एक सैन्य गठबंधन नहीं है, लेकिन इसके युद्धाभ्यास में एक समान विशेषता है, यानी तीन शक्तियों के विरुद्ध है। यह मुद्दा बहुत स्पष्ट है। जो न सिर्फ़ चीन और रूस समेत शांघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों, बल्कि भारत और पाकिस्तान जैसे पर्यवेक्षक देशों की मांग से भी मेल खाता है। साथ ही शांघाई सहयोग संगठन ने स्पष्ट रूप से यह फैसला किया है कि अगर इस क्षेत्र में किसी वैध सरकार को आतंकवाद समेत तीन शक्तियों का सामना करता है तो संगठन के अन्य सदस्य देश आतंकवाद विरोध में इसको सहायता दे सकते हैं। ये एक परिपक्व सहमति है।
गौरतलब है कि शांघाई सहयोग संगठन वर्ष 2001 के जून में चीन के शांघाई में स्थापित हुआ था। जिसके सदस्य देशों में चीन, रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान और उज़्बेकिस्तान शामिल हैं। इस संगठन की स्थापना के बाद कई बार द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संयुक्त आतंकवाद विरोधी युद्धाभ्यास आयोजित किये गये हैं।
चंद्रिमा