日印
|
जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे और भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 29 मई को तोक्यो में वार्ता की। दोनों नेताओं ने जापान और भारत के बीच परमाणु ऊर्जा वार्ता बहाल करने, बुनियादी संस्थापनों के निर्माण और सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग करने आदि के मु्द्दों पर सहमति हासिल की। लेकिन जापानी मीडिया ने कहा कि हालांकि जापान भारत के साथ सहयोग बढ़ाकर चीन को रोकना चाहता है, लेकिन इस मुद्दे पर जापान और भारत के बीच स्पष्ट मतभेद मौजूद हैं।
वार्ता में जापान और भारत के नेताओं ने फुकुशिमा दायची परमाणु संयंत्र घटना में रुकी परमाणु ऊर्जा की ढांचागत वार्ता बहाल करने पर सहमति हासिल की। दोनों पक्षों ने पुष्टि की कि जापान बुनियादी संस्थापनों के निर्माण के लिए भारत को सहायता देगा। जापान मुंबई से अहमदाबाद के बीच हाई स्पीड रेल कॉरिडोर के निर्माण सर्वेक्षण में पूंजी लगाएगा, ताकि इसमें जापान की शिंकनसेन तकनीक का इस्तेमाल हो सके। इसके अलावा, जापान मुंबई के मेट्रो निर्माण और आईआईटी भवन के निर्माण के लिए 1 खरब 1 अरब 70 करोड़ जापानी येन की ऋण देगा।
सुरक्षा क्षेत्र में दोनों नेताओं ने सहमति हासिल की कि जापानी समुद्री आत्मरक्षा बल और भारतीय नौसेना के बीच नियमित और बराबर सैन्याभ्यास आयोजित किए जाएंगे। जापान द्वारा भारत को जल-थल दोनों जगह इस्तेमाल होने वाले राहत विमान यूएस-2 का निर्यात करने के लिए संयुक्त कार्य दल स्थापित किया जाएगा।
नागरिक परमाणु ऊर्जा और आर्थिक निर्माण में जापान और भारत के बीच सहयोग की भविष्य के बारे में विश्लेषकों का मानना है कि भारत में तेजी से बढ़ रही आर्थिक वृद्धि दर शिथिल हो गई है। कमजोर बुनियादी संस्थापन भारत में आर्थिक वृद्धि को रोकने का सबसे अहम कारण बन गया है। भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जापान यात्रा का उद्देश्य जापान की सरकार और उपक्रमों से भारत में पूंजी लगाने की अपील करना है। ताकि भारत में नागरिक परमाणु ऊर्जा और बुनियादी संस्थापनों के निर्माण में सहायता दी जा सके। इसके अलावा, जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने पिछले साल के अंत से आर्थिक नीति लागू की, जिसमें जापान की बुनियादी संस्थापन परियोजना का निर्यात बढ़ाना शामिल है। इसलिए कहा जा सकता है कि नागरिक परमाणु ऊर्जा और आर्थिक निर्माण में जापान और भारत के बीच सहयोग की संभावना मौजूद है।
लेकिन विश्लेषकों ने यह भी कहा कि अब तक भारत नाभिकीय अप्रसार संधि में शामिल नहीं हुआ है। इसलिए परमाणु ऊर्जा वार्ता की बहाली के मुद्दे पर जापान सरकार और लोकमत इसका विरोध करते हैं। दूसरी तरफ, फुकुशिमा दायची परमाणु संयंत्र घटना के प्रभाव से भारत में परमाणु ऊर्जा के विरोध की आवाज भी बढ़ रही है। अनुमान है कि हालांकि इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहमति हासिल करेंगे, लेकिन परमाणु संयंत्र के निर्माण में फिर भी रुकावट का सामना करना होगा।
बुनियादी संस्थापनों का निर्माण और भारत में जापानी उपक्रमों का निवेश बढ़ाने में संभावना व्यापक हीं है। क्योंकि बुनियादी संस्थापनों के निर्माण का निजीकरण जापान में आम बात नहीं है, इसलिए अनुभव कम होने की वजह से संबंधित परियोजना का अनुबंध करना जापानी उपक्रमों के लिए मुश्किल होगा।
जानकार लोगों का विचार है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद शिंजो अबे द्वारा चलाई जा रही विदेश नीति चीन को रोकने की रणनीति मानी जा रही है। जापानी अखबार मेनीची शिम्बुन ने 29 मई को कहा कि जापान और भारत के नेताओं की शिखर वार्ता में संपन्न संयुक्त वक्तव्य में चीन की समुद्री कार्रवाई प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं हुई, सिर्फ यह जोर दिया गया है कि जापान और भारत अन्तरराष्ट्रीय कानून के ढांचे में नेविगेशन स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का वचन निभाते हैं। देख जा सकता है कि हालांकि भारत जापान के साथ सुरक्षा सहयोग मजबूत करना चाहता है, लेकिन चीन को रोकने पर भारत का रवैया नकारात्मक है। और जापान और भारत के बीच मतभेद मौजूद हैं।
इससे पहले जापानी अखबार असाही शिम्बुन ने कहा था कि हालांकि चीन और भारत के बीच सीमा विवाद मौजूद है, लेकिन चीन के व्यापक बाजार की दृष्टि से भारत चीन के साथ आर्थिक संबंधों पर ध्यान देता है। इसलिए भारत चीन का विरोध नहीं करना चाहता है।