दोस्तो, चीन की शिनह्वा समाचार एजेंसी ने रविवार को चीन-भारत सहयोग का असाधारण महत्व शीर्षक एक समीक्षा प्रकाशित की। इसमें लिखा गया है कि चीन के प्रधान मंत्री ली ख-छ्यान 19 मई को नई दिल्ली पहुंचकर भारत की औपचारिक यात्रा शुरू की। अपनी पहली विदेश यात्रा में भारत को पहला पड़ाव चुनकर यह संकेत दिया गया है कि चीन की नई सरकार भी चीन-भारत संबंधों को भारी महत्व देती है।
चीन और भारत एक दूसरे के अहम पड़ोसी हैं और दोनों देशों की दोस्ती बहुत पुरानी है। 21वीं शताब्दी में प्रविष्ट होने के बाद दोनों देशों के नेताओं ने और अधिक व्यावहारिक एवं सकारात्मक रवैया तथा अधिक दूरगामी दृष्टि अपनाते हुए द्विपक्षीय सहयोग को अधिक व्यापक एवं विस्तृत किया है। इधर के वर्षों में दोनों देशों के संबंधों में स्थिर विकास की प्रवृत्ति बनी रही है।
ठीक जैसा प्रधान मंत्री ली ख-छ्यांग ने कहा कि चीन की नई सरकार, चीन-भारत संबंधों के विकास को बहुत महत्वपूर्ण मानती है और भारत के साथ राजनीतिक विश्वास बढाने, व्यावहारिक सहयोग को गहराई में ले जाने, गैरसरकारी क्षेत्रों में आपसी समझ एवं मैत्री को मजबूत करने और अंतर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय मामलों में अधिक विचार-विमर्श करने की इच्छुक है, ताकि चीन-भारत रणनीतिक सहयोग वाली साझेदारी को बेहत्तर ढंग से विकसित किया जा सके।
चीन और भारत ऐतिहासिक एवं यथार्थ दोनों पृष्ठभूमि के आधार पर एक दूसरे के साथ संबंधों को भारी महत्व देते हैं। विश्व में दो सब से बड़े विकासशील देश होने के नाते चीन और भारत दोनों के सामने आर्थिक विकास एवं जनजीवन में सुधार जैसे प्रमुख यथार्थ कार्य मौजूद हैं। दोनों देशों के बीच सहयोग के साथ-साथ प्रतिस्पर्द्धा भी हो रही है, लेकिन सहयोग प्रतिस्पर्द्धा से कहीं अधिक होता है, बल्कि सहयोग से प्राप्त लाभ भी सर्वविदित है।
हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच आर्थिक एवं व्यापारिक सहयोग अभूतपूर्व तौर पर फला-फूला है। पिछले साल द्विपक्षीय व्यापार 66 अरब 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर पहुंचा। चीन भारत का दूसरा सब से बड़ा व्यापारिक साझेदार और भारत चीन का दक्षिण एशिया में सब से बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है। दोनों देशों के बीच व्यापार वर्ष 2015 में 1 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का लक्ष्य पूरा होने की बड़ी आशा दिख रही है।
इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय मामलों में चीन-भारत सहयोग भी लगातार बढते गए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ, जी-20 समूह और ब्रिक्स देशों की व्यवस्था के तहत चीन और भारत ने अधिक समंवय बिठाने और सहयोग करने के जरिए वित्तीय संकट, जलवायु-परिवर्तन, ऊर्जा, आंतक-विरोध एवं खाद्यन्न-सुरक्षा जैसे वैश्विक चुनौतियों से निपटने और विकासशीन देशों के समान हितों की रक्षा करने की साझी कोशिशें की हैं।
चाहे चीन हो या भारत, दोनों को अपने-अपने राष्ट्रीय विकास के लिए शांतिपूर्ण मौहाल की बड़ी जरूरत है। दोनों देशों के बीच कोई भी मुठभेड़ किसी भी पक्ष के आर्थिक विकास और राष्ट्रीय हित से मेल नहीं खाता है। खुशी की बात यह है कि दोनों देशों के नेता सीमा-विवाद के बावजूद मैत्रीपूर्ण सलाह-मशविरे के सिद्धांत पर कायम रहते हुए हमेशा सीमा से जुड़ी समस्य़ाओं को अच्छी तरह से नियंत्रित करने में सफल रहे हैं। दोनों देशों ने सीमा पर शांति एवं अमनचैन बनाए रखने पर सहमति बनाई है और समान विचार व्यक्त किया है कि सीमा-विवाद के प्रभाव को समग्र द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ने नहीं दिया जाएगा। यह दो बड़े देशों के बीच संबंधों के परिपक्कव होते रहने की ठोस अभिव्यक्ति है।
अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति में हो रहे गहरे परिवर्तन और एशियाई क्षेत्रों के हो रहे पुनरुथान ने चीन-भारत संबंधों के विकास को बड़ा मौका दे दिया है। खासकर यूरोप और अमेरिका में आर्थिक मंदी की स्थिति में चीन-भारत के बीच अधिक सहयोग से न केवल ब्रिक्स देशों की भूमिका को अधिक दर्शाया जा सकता है, बल्कि वैश्विक आर्थिक पुनरुथान को भी बड़ी मदद मिल सकती है।
ली ख-छ्यांग की भारत-यात्रा को बहुत व्यावहारिक माना जा रहा है। यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच ऊर्जा, रेल, बिजली-पावर, व्यापार और वित्त से जुड़े अनेक समझौतों एवं दस्तावेजों पर हस्ताक्षर होंगे।
21वीं सदी में एशिया की वैश्विक राजनीति एवं अर्थतंत्र में खासी-अच्छी भूमिका हो रही है। इस तरह एशिया को वैश्विक आर्थिक वृद्धि का इंजन माना गया है। एशिया में दो बड़े देश होने के नाते चीन और भारत के सहयोग से एशिया के लिए ही नहीं, बल्कि विश्व के लिए भी लाभदायक है।
हमें पूरा यकीन है कि ली ख-छ्याग की भारत-यात्रा चीन-भारत रणनीतिक सहयोग वाले साझेदार संबंध को नई मजबूती देगी और साथ ही एशिया एवं विश्व को विकास एवं समृद्धि में बड़ी प्रेरक शक्ति भी प्रदान करेगी।