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चीनी प्रधानमंत्री ली खछ्यांग 19 से 27 मई तक विदेश दौरे पर होंगे। प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी पहली विदेश यात्रा में भारत, पाकिस्तान, स्विट्जरलैंड और जर्मनी शामिल होंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि इस यात्रा से चीन यह जानकारी देगा कि चीन राजनयिक कार्य में ज्यादा सक्रिय रुख अपनाएगा।
भारत ली खछ्यांग की यात्रा का पहला पड़ाव होगा। इसके पीछे क्या वजह है, विभिन्न पक्षों के विभिन्न विचार हैं। भारत और चीन एक दूसरे का पड़ोसी देश हैं, साथ ही ब़डी जनसंख्या व नवोदित बाज़ार वाले देश भी हैं। दोनों ब्रिक्स देशों के सदस्य भी हैं।
इन वर्षों में दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग स्थिर रूप से आगे बढ़ रहा है। दोनों देशों का सहयोग नेताओं की समहति भी है। चीनी दक्षिण एशिया अध्ययन विभाग के अध्यक्ष सुन शीहाई ने कहा कि चीन-भारत संबंध द्विपक्षीय संबंधों के दायरे के बाहर हैं, क्षेत्रीय शांति व स्थिरता के लिए भी अहम हैं। उन्होंने कहा
प्रधानमंत्री ली खछ्यांग की भारत यात्रा से ज़ाहिर है कि चीन भारत को महत्व देता है। क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मामलों में दोनों देशों के पास सहयोग करने के लिए विश्वास है। इस यात्रा से चीन और भारत के बीच विश्वास आगे बढ़ाने की दिशा में भी सक्रिय प्रभाव पड़ेगा।
सुन शीहाई ने कहा कि चीन और भारत एक दूसरे के महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार हैं। लेकिन दोनों के बीच व्यापार 1 खरब डॉलर तक नहीं पहुंच पाया है। दोनों देश भविष्य में आपसी निवेश और बुनियादी संस्थापनों के निर्माण में ज़्यादा सहयोग करेंगे। सीमा मुद्दे पर उन्होंने कहा कि इस समस्या का हल करने के लिए दोनों देशों के बीच सहमति और वार्ता प्रणाली है। सीमा मुद्दा एक ऐतिहासिक मामला है, थोड़े समय में इसका समाधान नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह मामला दोनों के सहयोग के बीच बाधा नहीं बनना चाहिए।
भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों के संबंध परिपक्व हो रहे हैं। नई दौर की उच्च स्तरीय आवाजाही से दोनों देशों के संबंधों के विकास में नई शक्ति मिलेगी। भारत में अधिक लोग, खासकर युवा चीन के प्रति ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। रीना सिंह और अरुणिमा भारत के मध्य प्रदेश में विश्वविद्यालय की छात्राएं हैं, चीन के बारे में दोनों ने कहा
मैंने कई चीनी फिल्में देखी हैं, जैसे कुंगफु फिल्म, मैंने चीन के बारे में कई किताबें भी पढ़ी हैं। हमें किताबों और फिल्मों से चीन के बारे में जानकारी मिलती है। चीन हमारे लिए कोई अज्ञात देश नहीं है।
मेरे ख्याल से गत 30 सालों में चीन की विकास गति पूरी दुनिया में सबसे तेज़ है। मैं जानना चाहती हूं कि भारत चीन के विकास अनुभव में क्या सीख सकता है।
वर्ष 2003 पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा के बाद दोनों देशों के मैत्रीपूर्ण संबंध तेज़ी से आगे बढ़ने लगे। पिछले दशक में दोनों देशों के बीच राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति और शिक्षा आदि जगतों में घनिष्ठ आवाजाही हुई। खासकर व्यापारिक जगत में, वर्ष 2000 में दोनों देशों के बीच व्यापार राशि 3 अरब डॉलर से कम थी, लेकिन वर्ष 2007 में यह 74 अरब डॉलर पहुंची।
इस पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के चीन और दक्षिण पूर्व एशिया रिसर्च सेंटर के प्रोफेसर बी.आर.दीपक ने कहा
चीन और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार की राशि बहुत बड़ी है, चीन भारत का पहला व्यापारिक भागीदार बना है। हालांकि वर्ष 2012 में व्यापार में कमी आई, लेकिन मैं मानता हूं कि इस क्षेत्र में दोनों देशों के सहयोग की व्यापक संभावना है। भारत में बुनियादी संस्थापनों के निर्माण आदि क्षेत्रों में चीन के निवेश की ज़रूरत है।
इन वर्षों में दोनों देशों ने क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मामलों के सहयोग में व्यापक उपलब्धि हासिल की। प्रोफेसर दीपक का मानना है कि अच्छे द्विपक्षीय संबंधों से दोनों देशों के बीच सहयोग और आपसी हितों को लाभ मिलेगा।
चीन और भारत के अच्छे संबंध न सिर्फ दोनों देशों के लिए, बल्कि वैश्विक आर्थिक प्रणाली के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। इसलिए दोनों देशों को सहयोग आगे बढ़ाते समय बहुपक्षीय सहयोग के ढांचे भी मज़बूत करना चाहिए।
दोनों देशों के संबंधों के भविष्य पर भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि नए दौर की उच्च स्तरीय आवाज़ाही एक अच्छा संदेश है, जिससे दोनों देशों के संबंधों के विकास में नई शक्ति मिलेगी। भारत के चीन अध्ययन विभाग के अनुसंधानकर्ता डॉ. जैबाम जैकब ने कहा
मैं मानता हूं कि चीन-भारत संबंधों के विकास की बहुत संभावनाएं हैं। चीन के नए नेताओं ने मैत्रीपूर्ण संदेश दिया, चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए 5 सुझाव पेश किए हैं। इस ढांचे में दोनों देशों के संबंधों में एक नई शुरूआत होगी।
(दिनेश)