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जापानी प्रधानमंत्री शिन्जो अबे रूस रवाना
2013-04-29 18:33:59

जापानी प्रधानमंत्री शिन्जो अबे 28 अप्रैल को जापान से रूस की तीन दिवसीय यात्रा पर रवाना हुए। जापानी मीडिया के मुताबिक अबे की वर्तमान यात्रा का प्रमुख उद्देश्य दोनों देशों के बीच भूमि मुद्दे से जुड़ी वार्ता की बहाली की तैयारी करने के साथ साथ जापान-रूस शांतिपूर्ण संधि प्रक्रिया को आगे बढ़ाना है। जापानी मीडिया का अनुमान है कि भूमि मुद्दे पर वार्ता में सार्थक प्रगति नहीं हो पाएगी।

28 अप्रैल की दोपहर जापानी प्रधानमंत्री शिन्जो अबे टोक्यो से रूस की राजधानी मॉस्को के लिए रवाना हुए। यह पिछले दस सालों में किसी जापानी प्रधानमंत्री का पहला रूस दौरा है। अबे 29 अप्रैल को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ मुलाकात करेंगे। अनुमान है कि दोनों नेता भूमि मुद्दे पर वार्ता की बहाली, कोरिया प्रायद्वीप के परमाणु मुद्दे, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा आदि मसलों पर विचार-विमर्श करेंगे।

रूस के बाद 4 मई तक अबे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और तुर्की की यात्रा भी करेंगे। 28 अप्रैल को रवाना होने से पहले हवाई अड्डे पर अबे ने उम्मीद जताई कि वर्तमान यात्रा से रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ विश्वास बहाली के संबंध स्थापित होंगे और दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण संधि की वार्ता बहाल होगी।

वर्तमान में जापानी मीडिया का ध्यान भूमि वार्ता की बहाली पर केन्द्रित हो गया है। यह अबे की रूस यात्रा का प्रमुख लक्ष्य भी है। महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्तरी प्रदेश, जिसे रूस कुरिल्स द्वीप कहता है, पर जापान और रूस के बीच विवाद मौजूद है। हाल के वर्षों में इस मुद्दे पर वार्ता गतिरोध में पड़ी हुई है, जिससे जापान-रूस शांति वार्ता बाधित हुई और द्विपक्षीय आर्थिक विकास भी प्रभावित हुई। जापानी मीडिया को लगता है कि भूमि मुद्दे पर वार्ता को लेकर कोई खास प्रगति नहीं मिलने वाली है।

दूसरी ओर, 40 उद्यमों के 120 प्रतिनिधि शिन्जो अबे के साथ रूस और अन्य तीन देशों का दौरा करेंगे। इससे जाहिर है कि अबे उक्त चार देशों के साथ आर्थिक संबंध मजबूत करना चाहते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि अबे को भूमि वार्ता बहाल करने की आशा है, लेकिन सार्थक प्रगति हासिल होना मुश्किल है। जापान का उद्देश्य रूस के साथ आर्थिक आवाजाही बढ़ाकर संबंधित वार्ता के लिए बेहतर स्थिति तैयार करना है।

रूसी विश्लेषकों का मानना है कि भूमि वार्ता में प्रगति हासिल होने में कई मुश्किलें हैं, क्योंकि जापान इस बाबत इच्छुक नहीं है। वॉइस ऑफ रूस ने कहा कि अगर कुरिल्स द्वीप पर रूस की प्रभुसत्ता के बारे में जापान लगातार सवाल उठाएगा, तो इससे समस्या हल नही होगी। पुतिन सरकार इस मुद्दे पर हमेशा से कड़ा रुख रखती है। कई बड़े अधिकारी बार-बार कहते रहे हैं कि वार्ता का द्वार बन्द हो चुका है। इसके साथ ही, कई वर्षों से रूस का कुरिल्स द्वीप पर नियंत्रण है। हाल में रूस ने द्वीप में मध्य और दीर्घकालीन विकास योजना बनाई। द्वीप के समान विकास के लिए विदेशी पूंजी भी आकर्षित हो रही है। अगर विदेशी पूंजी कुरिल्स द्वीप में प्रवेश हो, तो इस द्वीप की प्रभुसत्ता के सवाल का समाधान और मुश्किल होगा।

रूसी जानकारों की नजर में आर्थिक क्षेत्र में दोनों देशों के बीच व्यापक संभावना है। उदाहरण के लिए कार और बिजली उपकरणों के लिए रूस जापान पर निर्भर करता है, जबकि नाभिकीय ऊर्जा, तेल और प्राकृतिक गैस आदि में जापान के रूस के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। रूस और जापान के बीच व्यापार 30 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है। दोनों देश ऐसे में व्यापार को बढ़ावा देना चाहते हैं।

विश्लेषकों का अनुमान है कि आने वाले समय में शिन्जो अबे चीन के प्रति सख्त रवैया रखेंगे। इसके चलते जापान-चीन संबंधों के बेहतर होने की भविष्यवाणी करना मुश्किल है।

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