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चीन-भारत संबंध:वार्ता और सहयोग से मज़बूत होगा
2013-03-22 10:50:52
चीन और भारत को विश्व में सबसे तेज़ गति से विकास करने वाले दो आर्थिक समुदाय माना जाता है। स्थिर अर्थव्यवस्था, अधिक जनसंख्या और मिलते-जुलते विकसित दौर की वजह से दोनों पड़ोसी देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी समान रूख देखने को मिलता है। हाल के वर्षों में चीन-भारत संबंध लगातार बढ़ रहा है और विभिन्न क्षेत्रों में आदान प्रदान और सहयोग दिन ब दिन घनिष्ठ हो रहा है।

वर्ष 2012 चीन-भारत मैत्रीपूर्ण सहयोग वर्ष था। भारतीय अख़बार टाइम्स आफ़ॅ इन्डिया में जारी हुए लेख मे कहा गया कि यह वर्ष चीन और भारत के संबंधो के लिए अच्छा था, और विवादित मुद्दे भी कम थे। इसी साल दोनों पक्षों के बीच रणनीतिक वार्ता और आर्थिक व्यापारिक सहयोग भी ज्यादा रहा और द्विपक्षीय संबंध भी लगातार घनिष्ठ हुए। चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के एशिया प्रशांत अनुसंधान केंद्र के अधीन दक्षिण एशिया अनुसंधान विभाग के विशेषज्ञ माओ य्वे ने विश्लेषण करते हुए कहा कि इधर के कुछ सालों में चीन-भारत संबंध दोनो देशों के मध्य सामान्य संबंध के स्तर तक बना रहा है। प्रतिस्पर्द्धा और सहयोग भविष्य मे लम्बे समय तक द्विपक्षीय संबंध की प्रमुख विशेषता होंगे। दोनों देश द्विपक्षीय संबंध का अच्छी तरह निपटारे करते हुए वार्ता करने को तैयार है और एक दूसरे को सकारात्मक संकेत दे रहे है।

अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर चीन और भारत के रूख मिलते-जुलते है। लेकिन अपने-अपने तेज़ गति से विकास के दौरान दोनों के बीच मतभेद फिर भी मौजद रहेगा। इतिहास द्वारा छोड़ा गया सीमा मुद्दा इसका प्रमुख उदाहरण है। चीनी अंतरराष्ट्रीय मुद्दा अनुसंधान केंद्र के अधीन विश्व अर्थंव्यवस्था और विकास अनुसंधान विभाग के विशेषज्ञ शू च्यानक्वो के विचार में सीमा मुद्दा चीन-भारत संबंध के विकास की राह मे रोड़ा नही अटकाएगा। उन्होंने कहा,"यह सच है कि चीन और भारत के बीच सबसे बड़ा मतभेद सीमा मुद्दे का है। इस पर भारतीय और पश्चिमी देशों की मीडिया ज्यादा ध्यान देती हैं। लेकिन वास्तव में दोनों देशों के बीच सीमा मुद्दा संबंधी वार्ता सुचारू रूप से की जा रही है। चीन-भारत संबंध का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, यानी वर्ष 1988 के दिसम्बर में भूतपूर्व भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चीन यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सहमति जताई, जिसे'चीन-भारत ढांचा'कहा जाता है। सीमा मुद्दे का हल न किए जाने की स्थिति में चीन और भारत आर्थिक व व्यापारिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक आदि क्षेत्रों में सर्वांगीर्ण विकास बढ़ा सकते हैं। सीमा मुद्दा चीन-भारत संबंध के विकास मे बाधा नहीं बन सकता। विशेषकर 21वीं शताब्दी में दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग तेज़ी से विकास हो रहा है। इस प्रकार का ढांचा बहुत कारगर है। भारतीय नेताओं और सरकारी अधिकारियों ने कभी खुले तौर पर नहीं कहा था कि भारत चीन को अपना सबसे बड़ा खतरा मानता है। इसके विपरित भारतीय नेताओं का कहनी हैं कि भारत किसी भी चीन विरोधी गठबंधन में भाग नहीं लेगा।"

लोकमत का अनुमान है कि भारत दूसरे देशों के प्रभाव मे आकर चीन पर प्रतिबंध रणनीति लागू करेगा। चीनी विशेषज्ञ के मुताबिक इस पर चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है। चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के विशेषज्ञ मा य्वे ने कहा कि सर्वप्रथम भारत स्वतंत्र विदेश नीति को महत्व देता है। वह किसी देश के खिलाफ़ दूसरे देश के साथ गठबंधन नहीं बनाना चाहता। दूसरा, चीन और भारत उभरे हुए बड़े देश हैं, दोनों के बीच बहुत समानताएं भी हैं जोकि अंतरराष्ट्रीय मंच पर समान हितों से भी मेल खाता है। चीन को अपना विरोधी बनाना भारत के हितों के अनुकूल नहीं है। चीन और अमेरिका के बीच संतुलन बनाना भारत का विकल्प ही है।

लेकिन कुछ पश्चिमी मीडिया कभी कभार असामंजस्यपूर्ण वातावरण बना देते हैं। उन्होंने चीन और भारत के विवाद को लेकर लेख प्रकाशित कर दोनों देशों के बीच मुठभेड़ पैदा होने की संभावना का गहरा देते है और चीन-भारत विवाद को अधिक ही तूल दे देते है। इसके प्रति माओ य्वे ने कहा कि जटिलपूर्ण अंतरराष्ट्रीय स्थिति में चीन और भारत को ऐसी आशंकाओं को दूर करने के लिए पारस्परिक विश्वास बढ़ाना चाहिए।

वर्तमान में चीन और भारत के संबंधो को नए मौके और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस वर्ष चीन और भारत पिछले पांच वर्षों में पहली बार संयुक्त सैन्याभ्यास आयोजित करेंगे। लोकमत है कि मौजूदा सैन्याभ्यास के प्रतिकात्मक अर्थ वास्तविक अर्थ से अधिक है। चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के विशेषज्ञ माओ य्वे ने कहा कि यह चीन और भारत द्वारा एक दूसरे को दिया गया सकारात्मक संकेत है।

मार्च के अंत में चीन और भारत ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। यह दोनों देशों के लिए पारस्परिक समझ, सहयोग और विकास को आगे बढ़ाने का सार्थक अवसर होगा।

चीन-भारत संबंध के विकास के भविष्य की चर्चा में चीनी अंतरराष्ट्रीय मुद्दा अनुसंधान केंद्र के अधीन विश्व अर्थंव्यवस्था और विकास अनुसंधान विभाग के विशेषज्ञ शू च्यानक्वो ने कहा,"भूतपूर्व प्रधान मंत्री वन च्यापाओ ने कहा था कि चीन और भारत की मैत्री का इतिहास दो हज़ार वर्षो से भी पुराना है। ऐसा कहा जा सकता है कि द्विपक्षीय संबंध का 99.9 प्रतिशत भाग मैत्रीपूर्ण है, जबकि विवाद का 0.1 प्रतिशत से भी कम है। बहुत ज्यादा भारतीय लोगों का विचार है कि चीन और भारत ऐतिहासिक प्रभाव को छोड़कर आगे बढेंगे। दोनों देश पंचशील सिद्धांत का पालन करते हुए द्विपक्षीय संबंध को एक नए स्तर तक पहुंचाएंगे।"

वास्तव में वार्ता, सहयोग और समान विकास चीन-भारत संबंध के विकास का एकमात्र विकल्प है। विश्वास है कि भविष्य में चीन और भारत के बीच पारस्परिक विश्वास बढ़ेगा। चुनौतियों का सकारात्मक मुकाबला करते हुए ज्यादा वास्तविक सहयोगी परिणाम मिलेगा। भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि यह दुनिया इतनी बड़ी है कि चीन और भारत के विकास को शामिल कर सकता है।
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