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पुराने रेशम मार्ग की यात्रा का विवरण
2013-02-03 16:30:36
यह सर्वविदित है कि रेशम मार्ग पुराने जमाने में एशिया को युरोपीय महा द्वीप से जुड़ाने वाला प्रसिद्ध थलीय व्यापारिक मार्ग के रूप में माना जाता है , उस का इतिहास आज से कोई दो हजार वर्षों से अधिक पुराना है । यह प्राचीन रेशम मार्ग पूर्व से उत्तर पश्चिमी चीन के शेनशी प्रांत के प्राचीन शहर शीआम से प्रस्थान होकर कानसू , छिंगहाई प्रांतों और निंश्या ह्वी जातीय स्वायत प्रदेश व सिंच्यांग वेगुर जातीय स्वायत प्रदेश से होकर आगे बढ़ता गया , फिर चीन से बाहर निकलकर स्वतंत्र समुदाय , अफगानिस्तान , ईरान , इराक व सीरिया से गुजरकर भूमध्य सागर के पूर्वी तट तक पहुच जाता था , चीनी रेश्मी कपड़े आदि वुस्तुएं इसी रास्ते से युरोप में पहुंचाई जाती थीं । कुल सात हजार किलोमीटर से लम्बे इस रेशम मार्ग का आधे से अधिक भाग चीन में ही है । हालांकि वर्तमान काल में इस प्रसिद्ध रेशम मार्ग पर अतीत काल का रौनकदार व्यापारिक पर्यावरण लुप्त हो गया है , पर इस रेशम मार्ग के दोनों किनारों पर रंगारंग विविधतापूर्ण जातीय रीति रिवाज , मनमोहक प्राकृतिक दृश्य और प्राचीन ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अवशेष बराबर लोगों को आकर्षित करते रहते हैं ।

उरूमुची शहर सिंच्यांग वेगुर जातीय स्वायत प्रदेश की राजधानी है और वह प्राचीन रेशम मार्ग का एक अनिवार्य पड़ाव था । जब हम ने उरूमूची शहर में कदम रखा , तो सड़कों के दोनों किनारों पर गर्मागर्म भूने मटन मिट और स्वादिष्ट पुलाव की खुशबू चारों ओर व्याप्त है , और तो और सड़कों पर वेगुर जाति की विशेष सुंदर टोपियां पहने हुए बुजुर्ग व रंगबिरंगे स्कार्फ पहनी महिलाएं और मध्य व पश्चिमी एशियाई व्यापारी देखकर जान पड़ता है कि प्राचीन रेशम मार्ग की पुरानी चहल पहल फिर वापस लौट आयी हो ।

प्रसिद्ध पेइचिंग विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की शोध छात्रा न्यू त्यान त्यान ने इस प्राचीन रेशम मार्ग के दौरे की चर्चा में कहा

इस विश्वविख्यात रेशम मार्ग ने मुझ पर बहुत गहरी छाप छोड़ रखी है , सिंच्यांग के बाजार घूमनें में बड़ा मजा आया है । क्योंकि स्थानीय पुरुष , महिलाएं और बाल बच्चे अपने सब से बढ़िया पोशोकों और आभूषणों से सुसज्जित होकर बाजार जाते हैं , यहीं नहीं, मुस्लीम महिलाएं अपना बुर्का पहनना भी नहीं भूलतीं । ऐसे मौके पर सभी पर्यटक बाजार में अपनी इच्छा से घूमते व खरीददारी करते हैं , साथ ही उन्हें खाद्य पदार्थ बाजार पर वेगुर जाति के विशेष पकवान भी चखने को मिलते हैं ।

सुश्री न्यू ने सिंच्यांग में उत्पादित खुलर नाशपाति का विशष कर उल्लेख करते हुए कहा कि दक्षिण सिंच्यांग के खुलर क्षेत्र में उत्पादित खुलर खुशबू नाशपाति बहुत विख्यात है । कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति रास्ते पर यह खुशबू नाशपाति खाते हुए घूमता हो , तो झुंट में झुंट मधुमक्खियां उस की ओर उड़ जाती हैं ।

जब आप इस खुशबूदार नाशपाति के पकने के मौसम में खुलर क्षेत्र जाते हैं , तो चाहे सड़कों के दोनों तटों , खेतों पर हो या स्थानीय वासियों के प्रांगणों में क्यों न हो , हर जगह पर पक्के खुशबूदार नाशपातियां पेड़ों पर लदे हुए दिखाई देती हैं । इतनी अधिक रसदार खूशबुदार नाशपातियां देखकर किसी भी व्यक्ति के मुंह में पानी एकदम आ सकता है । सुना जाता है कि इस प्रकार वाले नाशपाति पेड़ उगाये जाने वाला इतिहास कोई दो हजार वर्ष पुराना है । यदि यह पेड़ खुलर क्षेत्र के बाहर किसी भी जगह पर उगाया जाये , तो नाशपाति का स्वाद बदला जाता है । यदि बाहर की किसी साधारण किस्म का नाशपाति खुलर क्षेत्र में उगाया जाये , तो उस के नाशपाति का स्वाद भी पहले से अधिक मिठा होता है । इसलिये लोगों की मान्याता में खुलर क्षेत्र नाशपाती उगाने के लिये उचित स्थल ही है ।

प्रिय श्रोताओ , अब प्राचीन रेशम मार्ग पर हम आप को विशेष जातीय रीति रिवाज जानने के बाद अद्भुत प्राकृतिक दृश्य का आनन्द उठाने ले चलते हैं ।

इस प्राचीन रेशम मार्ग के दोनों किनारों पर जो मनोहर प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलता है , वह अपने अलग ढंग का है । मसलन छिंगहाई प्रांत की नमक झील , छिंगहाई झील का पक्षी द्वीप , सिंच्यांग वेगुर स्वायत प्रदेश के पाइनब्रुक घास मैदान का राजहंस प्रकृति संरक्षण क्षेत्र , थ्येनशान पर्वत की छत पर स्थित त्येनछी झील , तूर्पान बेसिन में स्थित आग्नि पर्वत और करामाई क्षेत्र का भूत शहर जैसे रमणीक क्षेत्र काफी चर्चित हैं ।

खूचेह नदी घाटी ने अपनी विशेष पहचान बना ली है । खूचेह क्षेत्र सिंच्यांग वेगुर स्वायत प्रदेश के दक्षिण भाग में स्थित है और यह क्षेत्र प्राचीन रेशम मार्ग के महत्वपूर्ण कस्बों में से एक था । जब ऊंचे थ्येनशान पर्वत पर जमी बर्फ के पिघलने वाला पानी नीचे बहकर खूचे क्षेत्र के पास उफनदी में जा मिलता , तो फिर यह नदी अनेक छोटी छोटी नहरों में बदलकर ऊंचे ऊंचे पर्वतों से होकर विशाल रेगिस्तान में विलिन हो गयी और इन नहरों के बहाव से इन ऊंचे पर्वतों ने बेशुमार अजीबोगरीब पत्थर जंगलों और खड़ी चट्टानों का रूपधारण कर लिया ।

आज तक खूचेह नदी घाटी में लाल खड़ी चट्टानों की श्रृंखलाएं नजर आती हैं , खासकर सूर्यास्त के समय जब धूप के कमजोर किरणें लाल खड़ी चट्टानों व पत्थर जंगलों पर पड़े , तो बेमिसाल सुंदर दृश्य देखते ही बन जाता है । हमारे गाईड ली वन चुन ने हमें बताया कि खूचेह नदी घाटी क्षेत्र में मात्र सुंदर प्राकृतिक दृश्य उपलब्ध ही नहीं है । उन का कहना है

खुचेह नदी घाटी क्षेत्र में बहुत से ऐतिहासिक अवशेष और गुफाएं भी पायी जाती हैं । उदाहरण के लिये दक्षिण पूर्वी खूचेह कांऊटी से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोबिस्तान के बीच महा पुराना शहर , इस कांऊटी के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित सहस्र मूर्ति गूफा और कांऊटी के पश्चिम भाग में स्थित सूचना देने वाला आग्नि टावर समेत प्राचीन सांस्कृतिक अवशेष के खंडहर पाये जाते हैं । खूचेह नदी घाटी क्षेत्र में प्राचीन रेशम मार्ग के और बहुत से प्रसिद्ध पुराने सांस्कृति अवशेष भी उपलब्ध हैं ।

जैसा कि गाईड ली ने कहा है कि विविधतापूर्ण मानवीय दृश्य प्राचीन रेशम मार्ग की सब से बड़ी विशेषता है । इस प्राचीन रेशम मार्ग पर हजारों वर्ष पुरानी गुफाओं , प्राचीन शहरों व मदिरों के खंडहरों के अतिरिक्त कानसू प्रांत का तुनह्वांग गुफा समूह भी बहुत विश्वविख्यात है ।

तुनह्वांग शहर तत्कालीन रेशम मार्ग का अहम पड़ाव था और प्रसिद्ध तुनह्वांग गुफा समूह पूर्वी व पश्चिमी संस्कृतियों के संगम का द्योकत है । मशहूर मकाओ गुफा दक्षिण पूर्वी तुनह्वांग शहर से 25 किलोमीटर दूर गरजने वाला रेत पर्वत नामक पहाड़ पर स्थित है । 1600 मीटर लम्बे पर्वत पर 600 से अधिक गुफाएं खोदी गयी हैं , जिन में 469 गुफाओं में भित्ति चित्र म मूर्तियां बनायी गयी हैं । सर्वेक्षण से पता चला है कि इन गुफाओं का निर्माण ईस्वी चौथी शताब्दी के मध्य काल से शुरू हुआ और उस का निर्माण पूरा करने में हजार वर्षों से अधिक समय लगा ।

इस प्राचीन रेशम मार्ग का दौरा बहुत चर्चित है । गत शताब्दी के 70 वाले दशक में जापान के अनुरोध के अनुसार चीनी अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन कम्पनी ने रेशम मार्ग का दौरा शुरू कर दिया । तब से लेकर आज तक प्राचीन रेशम मार्ग देखने वाले पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ती गयी है । जापानी पर्यटकों के अतिरिक्त युरोपीय व अमरीकी पर्यटक भी अधिकाधिक हो गये हैं ।

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