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दुनिया से कटे थाओ ह्वा य्वान में लेई चाय की चुस्की
2012-11-26 18:55:59

शायद आप को याद हो कि चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हम मध्य-दक्षिण चीन के हू नान प्रांत के थाओ ह्वा य्वान क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं जो अपने अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य व दुनिया से कटा होने से विश्वविख्यात है। आज के इस कार्यक्रम में हम आप को फिर इसी क्षेत्र में एक बहुत लोकप्रिय विशेष लेई चाय चखले के लिये ले चल रहे हैं ।

जैसा कि आप जानते हैं कि थाओ ह्वा य्वान कांऊटी मध्य चीन के हू नान प्रांत में स्थित है । प्राचीन चीन के प्रसिद्ध कवि थाओ छिन ने इस कांऊटी के एक पहाड़ी गांव के गुणगान में एक बहुत प्रसिद्ध कविता लिखी । इस कविता का भावार्थ हैः एक अपार विशाल आड़ू बागान के बीच कलकल कर छोटी नदी आगे बह जाती है , इस नदी के उद्गम स्थान पर एक छोटा शांत पहाड़ी गांव आबाद है , हरे भरे पहाड़ों से घिरे इस गांव का प्राकृतिक दृश्य अनुपम ही नहीं , वह बाहरी दुनिया से एकदम कटा हुआ है और वह एक आरामदेह व रमणीक स्थल ही है । बाद में सांसारिक जीवन से ऊब चुके लोग ऐसे प्रकार की जगह की ओर आकर्षित होने लगे ।

कवि थाऔ छ्येन की यह कविता आज से कोई 1600 साल से पहले लिखी गयी है , पर आज तक भी लोगों के जुबान पर है , साथ ही मिडिल स्कूल की पाठ्य पुस्तक में उस का चयन हो गया है । इस कारण से थाओ ह्वा य्वान आज तक भी लोगों को लुभा लेता है ।

अब थाओ ह्वा य्वान क्षेत्र को एक विशाल पर्यटन क्षेत्र का रूप दिया गयया है । यहां का प्राकृतिक दृश्य और पानी उतना ही मोहक व स्वच्छ ही नहीं , आकाश से बाते करने वाले अंगिनत प्राचीन पेड़ , घने बांस जंगल , दुर्लभ जंगली फूल घास , पत्थर सीढियां और टेढे मढ़े पथरीले रास्ते भी एकदम शांति का आभास देते हैं । विशेषकर वसंत में जब आड़ू पेड़ बागान में लाखों पेड़ों पर फूल खिलेंगे , तो फूलों से ढकी पहाड़ी घाटी का अद्भुत रंगीन दृश्य देखते ही बन जाता है ।

थाओ ह्वा य्वान पर्यटन क्षेत्र के प्रबंधन विभाग के अधिकारी श्री वांग च्यु ह्वी ने इस क्षेत्र का परिचय देते हुए कहा कि इस समूचे पर्यटन क्षेत्र का क्षेत्रफल लगभग 16 वर्गकिलोमीटर बड़ा है , हर वर्ष बड़ी तादाद में देशी विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है ।

हर वर्ष करीब पांच लाख 40 हजार पर्यटक यहां आते हैं , जिन में लगभग 20 से 30 हजार विदेशी पर्यटक शामिल हैं , साल में मार्च , अप्रैल , मई और सितम्बर , अक्तूबर व नवम्बर में पर्यटन का व्यस्त मौसम है , पर्यटक ज्यादा आते हैं ।

पर्यटक थाओ ह्वा य्वान पर्यटन क्षेत्र में मनमोहक प्राकृतिक दृश्य का लुत्फ लेने के बाद अपने ढंग की एक स्थानीय लई चा चाय चखने का मजा भी ले सकते हैं । लई चा चाय थाओ ह्वा य्वान क्षेत्र की एक अलग प्रकार की विशेष स्थानीय लोकप्रिय चाय है , वह मुख्य तौर पर ताजा अदरक , चावल और चाय पत्तियों से तैयार की जाती है ।

एक स्थानीय चायघर की सेवक ऊ येन येन ने हमें बताया कि संबंधित ऐतिहासिक ग्रंथ के अनुसार स्थानीय वासियों के बीच इसी प्रकार की लई चा चाय बनाने की परम्परा हजारों वर्ष पुरानी है । आज लई चा चाय स्थानीय वासियों के जीवन में एक अभिन्न अंक बन गयी है ।

पिछले हजारों वर्षों में इस विशेष स्थानीय चाय ने अपनी अलग पहचान बना ली है । बाद में स्थानीय लोगों ने इस चाय का स्वाद और बढ़िया बनाने के लिये मूंगफली , तिल , सोयाबिन और चावल पाउडर का प्रयोग भी कर डाला । आम तौर पर यह चाय विभिन्न प्रकार के स्थानीय पकवानों के साथ पिलाई जाती है । खासकर मां बाप अपने नन्हे बच्चे के प्रथम जन्म दिवस पर अवश्य ही बढ़िया लेइचा चाय तैयार कर रिश्तेदारों के सम्मान में भव्य भोज देते हैं ।

कुमारी ऊ येन येन ने कहा कि लेइ चा चाय स्थानीय लोगों द्वारा मेहमानों को भेंट करने वाला सब से मूल्यवान उपहार है। जब कोई मेहमान घर आता है , तो मालिक भोजन व मदिरा के बजाये लईचा चाय जरूर ही पिलाते हैं । और तो और थाओ ह्वा य्वान क्षेत्र में किसी भी घर में यदि कोई परिचित या अनजान आया , तो उसी घर के मालिक बड़े उत्साह के साथ उसे एक प्याले खुशबूदार लेइचा चाय पिला देते हैं ।

यहां के स्थानीय लोग लेइचा चाय को इतना पसंद करते हैं कि लंच पर खाना नहीं खाते , बल्कि लईचा चाय की चुस्की लेने का आनन्द उठाते हैं ।

पर्यटक वांग लेई ने लेइचा चाय पीने के बाद अपना अनुभव बताते हुए कहा

किसी भी मेहमान के लिये तीन कटोरे लेइचा चाय पीना जरूरी है । क्योंकि एक कटोरा पीने वाले को चोर समझा जाता है , दो कटोरे पीने वाले को मेहमान माना जाता है , तीन कटोरे पीने के बाद वह मालिक का मित्र माना जा सकता है । इसलिये थाओ ह्वा य्वान क्षेत्र में आप सिर्फ तीन गरमागरम कटोरे लईचा चाय पीकर ही स्थानीय वासियों की मेहमानवाजी महसूस कर पायेंगे ।

चीन भर में इस क्षेत्र के बारे में एक मशहूर किम्वदंती है। कहते हैं कि बहुत पहले एक मछुआ मछलियों का शिकार करने के बाद घर वापस लौटते समय रास्ता भटक गया और इस तरह आड़ू के फूलों से ढकी एक अनजान पहाड़ी घाटी में जा पहुंचा। उसने देखा कि बाहरी दुनिया से एकदम अपरिचित वहां के निवासी बड़ा निश्चिंत जीवन बिता रहे हैं। मछुए ने अपनी यह खोज स्थानीय लोगों को बतायी जो धीरे-धीरे आम लोगों के बीच इतनी चर्चित हुई कि सांसारिक जीवन से ऊव चुके कुछ लोग इस जगह की ओर आकर्षित होने लगे। यह स्थान आज के हूनान प्रांत के छांग तेह शहर के उपनगरीय क्षेत्र में है। पिछली शरद के एक दिन, मैं ने भी इस की यात्रा का कार्यक्रम बनाया।

छांगतेह शहर से मैं कार से कोई तीस मिनट में थाऔ ह्वा य्वान क्षेत्र पहुंची। वहां लकड़ी के एक बहुत बड़े बारीक नक्काशीदार मंडप को पार करते ही मुझे आड़ू का एक विशाल बगीचा नजर आया। इस बगीचे का क्षेत्रफल कोई 130 हैक्टर है और उसमें आड़ू के एक लाख से ज्यादा पेड़ खड़े हैं। इस विशाल उद्यान में इतने सारे पेड़ देखकर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। कल्पना की जा सकती है कि जब वसंत में इन सभी पेड़ों पर फूल खिलते होंगे, तो उनसे रंगों की कितनी सुंदर दुनिया बन पड़ती होगी।

इस उद्यान के बगल की पगडंडी पर चलते-चलते मैं एक बहुत साधारण सी गुफा के सामने जा पहुंची। और इस गुफा को पार करने के बाद खुद को किम्वदंती वाली जगह पाया। गाइड सुश्री चाओ ली इंग ने बताया कि इस छोटे से रहस्यमय गांव तक पहुंचने के लिए सबको इस गुफा से गुजरना पड़ता है।

गुफा के पार लहलहाते खेत, मकान और मछलियों से भरे तालाब नजर आये। इस पहाड़ी गांव में कुल नौ परिवार रहते हैं और सभी का कुल नाम छिन है। रोजमर्रा के काम की कुछ वस्तुएं वे पहाड़ के नीचे जाकर खरीद लाते हैं। गांव के सभी मकान लकड़ी या बांस से निर्मित हैं।

इस पुराने गांव की ऊबड़-खाबड़ सड़क पर घूमते हुए मैंने सचमुच सांसारिक जीवन से कुछ अलग महसूस किया। लकड़ी या बास से बने छोटे-छोटे मकान धान के लहलहाते खेतों और मछली तालाबों के बीच झांक रहे थे और उनके सामने बच्चे बेचैनी से खेल रहे थे। यह गांव तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है और इसके एक ओर झील है। सुनते हैं कि इस गांव के निवासियों के पूर्वज आज से दो हजार वर्ष पहले छिन राजवंश के समय युद्ध से बचने के लिए यहां आ बसे थे और धीरे-धीरे इनका बाहरी दुनिया से सम्पर्क पूरी तरह टूट गया।

हालांकि इधर कुछ सालों से पर्यटन के विकास के चलते कुछ लोग यहां आने लगे हैं, तो भी गांव का वातावरण शांत बना हुआ है और गांववासियों का स्वभाव वैसा ही सादा है। मैं ने एक मकान के द्वार के पास खड़ी एक महिला से बातचीत शुरू ही की थी कि वह तुरंत भीतर से मेरे लिए एक कटोरा खूशबूदार सूप सा कुछ ले आई। मेरे साथ चल रहे श्री थांग छी ची ने कटोरे की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह कोई सूप नही हैं, बल्कि छिन वासियों की प्रसिद्ध वह लेई चाय है जो वे अपने सब से आदरणीय मेहमान को पिलाते हैं। इसमें आम तौर पर अदरक, कच्चे चावल, चाय की हरी पत्तियों, तिल और मूंगफली को एक साथ पीसने के बाद उबाला जाता है और चाय के रूप में मेहमानों को दिया जाता है। यह चाय सर्दी, बुखार और जुकाम का इलाज भी कर सकती है।

उन्हों ने आगे बताया कि यहां के गांववासी कृषि से अवकाश के समय लेई चाय और विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार कर उनका रिश्तेदारों और मित्रों के साथ गपशप करते मजा उठाते हैं। कभी-कभार वे सुबह से शाम तक साथ बैठे गप मारते रह जाते हैं। यह सुनकर मुझे लगा कि उन का जीवन सच में बहुत आरामदेह है।

गांव में हमें एक प्रकार का अजीब चौकोना बांस भी देखने को मिला। आश्चर्य कि यह बांस देखने में गोल मालूम पड़ता है और दूसरी तरह के बांस से इसमें कोई फर्क नहीं जान पड़ता, पर हाथ से छूने पर यह चौकोना मालूम देता है। गांववासी इसी बांस से मकान बनाने हैं।

छिनवासियों को बिदा देते समय सामने खड़े थाओ य्वान पर्वत से एक धुन उठती सुनायी पड़ी। हम इस धुन की दिशा की ओर चल निकले। कुछ दूर पहुंचने पर मालूम हुआ कि यह ताओ धर्म के अनुयायियों की पूजा का स्वर था। थाओ ह्वा य्वान क्षेत्र का धार्मिक इतिहास काफी पुराना है। बौद्ध व ताओ धर्मों से पहले स्थानीय लोगों के बीच लो धर्म प्रचलित था। ताओ धर्म की उत्पत्ति के बाद ये लोग इस धर्म पर विश्वास करने लगे। पिछले कुछ हजार वर्षों में थाओ य्वान पर्वत पर अनेक मंदिर निर्मित हुए और यहां पूजा-प्रार्थना के लिए स्थानीय लोगों का तांता लगता रहा। पर चहल-पहल भरे पुराने मंदिर कब के युद्धों से क्षतिग्रस्त होकर खंडहर बन गये। आज जिस वान शाओ भवन में पूजा-प्रार्थना होती है, वह इधर के सालों में पुनर्निर्मित हुआ है।

वान शाओ भवन के 76 वर्षीय आचार्य फा युन ने इस भवन का परिचय देते हुए कहा, हालांकि आज यह भवन करीब दो हजार वर्ग मीटर विशाल है, पर प्राचीन भवन के मुकाबले में बहुत छोटा ही है।

यहां का सब से पुराना मंदिर चिन राजवंश में निर्मित हुआ। इस के बाद अनुयाइयों के बढ़ने जाने के साथ धीरे-धीरे कोई तीन किलोमीटर लम्बे रास्ते पर कुल 48 मंदिरों का निर्माण किया गया। उस समय पर्वत द्वार बंद करने के लिए घोड़े का सहारा लिया जाता था।

हालांकि तब के रौनक भरे मंदिर लुप्त हो गये हैं, पर वान शाओ भवन के सामने दो देवदार आज भी ज्यों के त्यों खड़े हैं। कोई नहीं जानता कि ये दोनों पेड़ कितने पुराने हैं। अजीब बात है कि हालांकि इन दोनों के तने खोखले हो गये हैं , फिर भी उन की सभी शाखाओं पर हरियाली पत्तियां उगती हैं। यह भी हो सकता है कि वे थाओ ह्वा य्वान में ताओ धर्म के उत्थान के साक्षी हों।

थाओ ह्वा भवन के पीछे एक सीधी खड़ी चट्टान की तलहटी से गुजर कर य्वान च्यांग नदी आगे बढ़ जाती है। पगडंडी से नदी के पास आने पर मैंने देखा कि हरे-भरे पर्वत की चोटी की परछाईं स्वच्छ पानी में बहुत सुंदर दिख रही है। नदी के बीच फैले लम्बे टीलों पर सफेद बगुले उड़ते दिखते हैं। हम अपनी गाइड सुश्री चाओ ली इंग के साथ एक पर्वत पर बने मंडप पर चढ़े और सुश्री चाओ ने हमें बताना शुरू किया

यह तीन मंजिला जलीय मंडप कोई पांच सौ साल पहले मिंग राजवंश में निर्मित हुआ। इस मंडप में मुख्य तौर पर ताओ धर्म के छी हांग आचार्य और जल प्रबंधक में लगे उनके वीरों व धन देवता की ही पूजा की जाती है।

सूर्यास्त के समय इस मंडप पर एक ही क्षण य्वान नदी में सूर्य की दो परछाइयां दिखायी देती हैं। इस पल आकाश में डूवते हुए सूर्य की पानी में बनती ये परछाइयां एक-दूसरे को अद्भुत शोभा प्रदान करती जान पड़ती हैं।

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