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त्याओयू द्वीप संकट से चीन जापान आर्थिक व्यापारिक संबंध प्रभावित
2012-09-20 16:44:17

चीन और जापान के बीच त्याओयू द्वीप को लेकर पैदा संकट लगातार बढ़ने के कारण चीन जापान आर्थिक संबंध भी प्रभावित हुआ है। जापानी केन्द्रीय बैंक के गवर्नर ने 19 सितम्बर को कहा कि जापान में आर्थिक बहाली पूर्वानुमान से आधा साल देर होगी। विश्लेषकों का कहना है कि जापान द्वारा त्याओयू द्वीप खरीदने के हास्यास्पद नाटक के कारण दोनों देशों के बीच सीधा सैनिक मुकाबला होने की संभावना तो कम है, किन्तु आर्थिक जैसे क्षेत्रों में पारस्परिक शक्ति आमाइश लगातार बढ़ती जाएगी।

चीन और जापान आर्थिक दृष्टि से एक दूसरे के प्रबल पूरक हैं, दोनों देशों के बीच व्यापारिक सहयोग दोनों के आर्थिक विकास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। लेकिन त्याओ यू द्वीप के मामले से दोनों देशों के संबंधों में बड़ा तनाव आया, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में दोनों देशों के आर्थिक व व्यापारिक सहयोग बहुत प्रभावित हो गए है। जापानी केन्द्रीय बैंक के गवर्नर मासाकी शिराकावा ने 19 सितम्बर को कहा कि जापान में आर्थिक बहाली संभवतः पूर्वानुमानित वर्ष 2012 के पूर्वार्द्ध से आधा साल टल होगी। उन्हों ने जापान चीन संबंधों के संभाविक दीर्घकालिक बिगाड़ पर चिन्ता प्रकट की। जापानी आर्थिक ग्रुपों के फेडरेशन के अध्यक्ष हिरोमासा योनेकुरा ने भी कहा कि उन्हें बड़ा खेद हुआ है कि दोनों देशों के गैर सरकारी लोगों की निरंतर बड़ी मेहनत से कायम जापान चीन संबंध इस प्रकार बिगड़ गया है। उन्हों ने जापान सरकार द्वारा त्याओयू द्वीप का तथाकथित राष्ट्रीकरण करने की वजह से जापान चीन संबंधों को इतनी तेजी के साथ बिगाड़ने पर बड़ा असंतोष व्यक्त किया।

विश्लेषकों का कहना है कि चूंकि जापान त्याओयू द्वीप के स्वामित्व पर मौजूद विवाद से इनकार करता है और अपना गलत रूख नहीं त्याग देता है, जिससे दोनों देशों के मैत्रीपूर्ण संबंध को भारी नुकसान पहुंचा और बड़ी चुनौति पैदा हुई है। यदि दोनों देशों के संबंध में दुश्मनी पैदा हुई, तो सर्वप्रथम आर्थिक क्षेत्र में परस्पर शक्ति की आजमाइश होगी। और चीन तीन पहलुओं में जापान का मुकाबला कर सकेगा।

एक, चीन अपने देश में निवेश करने वाली जापानी कंपनियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाएगा। लम्बे अरसे में चीन के विशाल उपभोक्ता बाजार और सस्ती श्रम शक्ति से आकर्षिक होकर बड़ी संख्या में जापानी कारोबारों ने चीन में पूंजी का निवेश किया है। 2012 के जून तक चीन में जापान का निवेश 83 अरब 97 करोड़ अमेरिकी डालर दर्ज हुआ । चीन में जापानी कारोबारों का 70 प्रतिशत निर्माण उद्योग से जुड़ा है, इसके बाद रासायनिक रेशा उद्योग और खाद्य उद्योग आए। चीन में जापानी कारोबारों ने कॉर्परेशन की हैसियत से चीनी लोगों को अपने कर्मचारी बनाये, वे चीन में सामग्री खरीदते हैं और चीन में कर चुकाते हैं और अपने मुनाफे को स्वदेश भेजते हैं। वास्तव में ये जापानी कारोबार चीनी कारोबार की भांति काम करते हैं। हालांकि इन सालों में चीन में श्रमिकों के वेतन में बड़ा इजाफा होने के कारण कुछ जापानी कारोबारों ने अपने कारखानों को दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में स्थानांतरिक किया, लेकिन चीन का बाजार विशाल है और चीनी मजदूरों व कर्मचारियों की गुणवत्ता दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से ऊंचा है, इसलिए जापानी कारोबारों के वैज्ञानिक तकनीकी अनुसंधान जैसे कुंजीभूत विभाग चीन में बरकरार रखे गए हैं। यह स्थिति चीन के वैज्ञानिक तकनीकी विकास के लिए हितकारी है। यदि चीन में स्थित जापानी कारोबारों पर प्रतिबंध लगाया जाए, तो परिणाम चीन के लिए ज्यादा लाभदायक नहीं होगा।

दो, चीन जापान आयात निर्यात पर प्रतिबंध लगेगा। जापानी कस्टम के मुताबिक इस साल के पूर्वार्द्ध में चीन को जापान के निर्यात की रकम 73 अरब 72 करोड़ अमेरिकी डालर हुई और चीन से जापान के आयात की राशि 91 अरब 34 करोड़ डालर हुई। जाहिर है कि आर्थिक तौर पर जापान चीन पर ज्यादा निर्भर करता है। निर्यात में हुई क्षति को सहने की शक्ति चीन जापान से अधिक सिद्ध हुई है। वास्तव में 2003 में चीन ने जापान को एक बार आर्थिक मंदी से बचाने में प्रभावकारी मदद दी थी। अगर चीन आयात निर्यात के क्षेत्र में जापान के खिलाफ प्रतिबंध लगाए, तो जापान को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा।

तीन, जापान के कर्ज सवाल को लेकर जापान का मुकाबला। जापान पर सरकारी कर्ज का भार बहुत ज्यादा बढ़ गया है, पिछले साल के अंत तक जापान पर कर्ज का बोझ दस हजार खरब जापानी येन तक पहुंचा जो उस के जीडीपी के 2 दशमलव् 2 गुने के बराबर है। जापानी केन्द्रीय बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2011 के अंत तक चीन के हाथ में जापान के अल्पकालीन बांड 180 खरब येन रहे, जो 2010 से 71 फीसदी बढ़ गए हैं। वर्ष 2010 में चीन जापान का सब से बड़ा कर्जदाता देश बना। विश्लेषकों के अनुसार जापान एक ऐसा कर्जदार बना है जिस के सामने बड़ा जोखिम पड़ा है। उसे बचाने के लिए केवल चीन उपस्थित रहा है, यदि चीन इस स्थिति का लाभ उठाकर जापान पर प्रतिबंध लगाए, तो बड़ा प्रभाव निकल सकेगा।

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